मित्रो!
जैसा कि आपको ज्ञात ही है कि कविता कार्यशाला का यह आयोजन आप सभी के अत्यन्त उत्साह व सार्थक सहयोग से सम्पूर्ण हुआ।
मैं आप सभी भागीदारों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहूँगी कि आपने इसे जीवन्त, सक्रिय और सफल बनाया। अनेक रचनाकारों की रचनाएँ दिए गए चित्र व विषय को केन्द्र में रखकर समस्यापूर्ति के रूप में उपलब्ध हुईं। समस्यापूर्ति के अन्य अनेक लाभों के अतिरिक्त एक लाभ आज के समय में यह भी है कि यह स्वयं में कॉपी पेस्ट ( किसी अन्य की तैयार रचना को लगा देना/लेना) को हतोत्साहित करती है व कुछ न कुछ नया लिखने, व सटीक लिखने को प्रेरित करती है।
हमें अनेकानेक अर्थवत्ताओं को लेकर बुनी गई अलग अलग शैली की कविताएँ इस बहाने पढ़ने को मिलीं। आनन्द आया। यह कोई प्रतियोगिता नहीं थी कि किसी को श्रेष्ठ व किसी को कमतर आँका जाए।
कुछ मित्रों ने प्रश्न किया कि क्या वे आयोजन के पश्चात् भी इन कविताओं को देख / पढ़ सकते हैं, तो उनसे निवेदन है कि समूह के आयोजन (EVENT) के रूप में इसका लिंक समूह पर स्थाई बना रहेगा, वहाँ से अथवा/ और सीधे भी कोई भी इसे देख पढ़ सकता है क्योंकि यह एक खुला (OPEN EVENT) आयोजन था।
कुछ मित्र जानना चाह्ते थे कि क्या इसमें प्रस्तुत की गई कविताओं को वे पुनर्प्रयोग कर सकते हैं । उन्हें सूचनार्थ निवेदन है कि वे मूल रचनाकार के नाम/ लिंक सहित ( जो कि वहाँ स्वयं दिखाई दे ही रहा है ) कविताओं का प्रयोग, रचनाकार को सूचना देते हुए, यदि करें तो सम्भवत: किसी को भी आपत्ति न होगी।
उदाहरणार्थ देखें कि श्री रेक्टर कथूरिया जी ने ( पंजाब स्क्रीन) पर इस कार्यशाला के विषय में एक बहुत अच्छा लेख लिखा है और कई मित्रों की कविताओं को उसमें सम्मिलित भी किया है ताकि फ़ेसबुक से इतर पाठक भी उसे पढ़ सकें। मैं समूह की ओर से कथूरिया जी का धन्यवाद करना चाह्ती हूँ कि उन्होंने इस आयोजन को प्रसारित करने में अपना अमूल्य योगदान दिया।
यों तो इस कार्यशाला में कैनेडा, यूके, भारत, अमेरिका आदि कई देशों के रचनाकारों ने उपस्थित हो कर आयोजन का मान बढ़ाया और कइयों ने स्वयं आकर वॉल पर अपनी शुभकामनाएँ भी व्यक्त कीं किन्तु इस का सबसे सुखद पक्ष था कि पाकिस्तान के वरिष्ठ रचनाकर/ गज़लकार/ पत्रकार श्री गुल खान (देहलवी) जी ने दिए गए विषय पर स्वयं अपनी एक रचना दे कर आयोजन को कृतार्थ किया। यह निस्सन्देह उनका बड़प्पन है। उनके इस स्नेह के लिए समूह उनका अतिशय आभारी है। उनकी यहाँ प्रस्तुत रचना को मैं पुन: आप सभी से बाँटना चाहूँगी -
शाम ढलने वाली है सोचते हैं घर जाएँ
फिर खयाल आता है किस तरफ़ किधर जाएँ
दूसरे किनारे प’ तीसरा न हो कोई
फिर तो हम भी दरिया में बे- खतर उतर जाएँ
हिज़रती परिन्दों का कुछ यकीं नहीं होता
कब हवा का रुख बदले कब ये कूच कर जाएँ
धूप के मुसाफ़िर भी क्या अजब मुसाफ़िर हैं
साए में ठहर कर ये साए से ही डर जाएँ
उनकी इस रचना ने कार्यशाला को मानो चार चाँद लगा दिए । उनके प्रति पुन: आभार व्यक्त करती हूँ।
दूसरी ओर खेद के साथ कहना पड़ता है कि कई वरिष्ठ हिन्दी कवियों ने आना तो दूर अपनी शुभकामनाएँ देने/भेजने की औपचारिकता की आवश्यकता भी नहीं समझी; यद्यपि यह हिन्दी कविता की कार्यशाला थी।
अस्तु ! ऐसी चीजों से हमें हतोत्साहित होने की आवशयकता नहीं है। हम भविष्य में भी समयानुसार ऐसे आयोजन करते रहेंगे। आपकी उपस्थिति उन्हें प्राण्वान् बना देगी।
यदि आपका कोई सुझाव अथवा आदेश हो तो कृपया मुझे लिखिएगा। यह आयोजन फ़ेसबुक पर Poetry : Hindi Kavita (हिन्दी-कविता) समूह का था और उसमें लगभग ४०० सदस्य हैं। समय समय पर उन्हें पढ़ने सराहने या समूह से जुड़ने के लिए उपर्युक्त लिंक को देखा जा सकता है।
पुन: आपकी सहभागिता के लिए आभार व्यक्त करते हुए आयोजन को विराम देती हूँ।
सद्भाव बनाए रखें
शुभकामनाओं सहित
नि:सन्देह सराहनीय कार्य की सम्पन्नता
जवाब देंहटाएंइस प्रकार की गतिविधियाँ लोगों में कविता की समझ को गहरा क्रेंगी ऐसा मुझे लगता है ।
जवाब देंहटाएंइस सार्वजनिक सृजनात्मक आयोजन की सफलता पर अभिनंदन!
जवाब देंहटाएंदृढ विश्वास है कि कार्यशाला उपलब्धियों के कीर्तिमान स्थापित करेगी.
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