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भारतीय उच्चायोग, लन्दन द्वारा “सम्मान-समारोह" संपन्न


भारतीय उच्चायोग, लन्दन द्वारा “सम्मान-समारोह" संपन्न
डॉ.कविता वाचक्नवी को ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान’ प्रदत्त

लन्दन स्थित भारतीय उच्चायुक्त डॉ जैमिनी भगवती से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान प्राप्त करते हुए डॉ. कविता वाचक्नवी.

ब्रिटेन के विभिन्न नगरों से आए लेखक, पत्रकार तथा कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित अतिथिगण. 


डॉ. कविता वाचक्नवी को प्रदत्त स्मृतिचिह्न और प्रशस्तिपत्र

 डॉ. कविता वाचक्नवी को  स्मृतिचिह्न भेंट करते हुए भारतीय उच्चायुक्त डॉ जैमिनी भगवती. 

 “जॉन गिलक्रिस्ट हिन्दी शिक्षण सम्मान” प्राप्त करते हुए प्रो. महेंद्र किशोर वर्मा

डॉ. कविता वाचक्नवी को प्रदत्त प्रशस्ति-पत्र 

भारतीय उच्चायोग, लंदन द्वारा
“ सम्मान-समारोह"
सम्पन्न

24 मार्च 2013

भारतीय जीवन मूल्यों के वैश्विक प्रचार-प्रसार की संस्था “विश्वम्भरा” की संस्थापक-महासचिव डॉ.कविता वाचक्नवी को विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में भारतीय उच्चायोग, लंदन द्वारा इण्डिया हाउस में आयोजित समारोह में “आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान” किया गया। इस अवसर पर भारत के उच्चायुक्त महामहिम डा. जे॰ भगवती ने उन्हें नकद राशि, स्मृति चिह्न, शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए। उन्हें यह सम्मान मुख्यतः इन्टरनेट व प्रिंट मीडिया द्वारा भाषा, साहित्य, संस्कृति व पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है.


उल्लेखनीय है कि अमृतसर में जन्मीं कविता वाचक्नवी समाज-भाषा-विज्ञान तथा काव्यसमीक्षा जैसे विषयों में 'दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद' से एमफिल और पीएचडी अर्जित करने के बाद सपरिवार लन्दन में रह रही हैं. भारतीय उच्चायोग द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि "आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान" ग्रहण करते हुए डॉ कविता वाचक्नवी ने अपने दादाश्री व पिताश्री का विशेष उल्लेख किया व लाहौर से हिमाचल और पंजाब तक उनके किए कार्यों व बलिदानों को उपस्थितों के साथ बाँटते हुए बताया कि कैसे हिन्दी सत्याग्रह में जेल में रहने से लेकर हिमाचल को हिन्दीभाषी राज्य का दर्जा दिलाने तक के लिए उनके परिवार ने कष्ट सहे। वाचक्नवी ने अपना सम्मान उन्हीं को समर्पित करते हुए कहा कि वे यह सम्मान उनके प्रतिनिधि के रूप में ग्रहण कर रही हैं। उन्होंने राजदूत व उच्चायोग से अनुरोध किया कि ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग की वेबसाईट को द्विभाषी बनाया जाना चाहिए व उसे अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी में भी उपलब्ध होना चाहिए।


विज्ञप्ति के अनुसार इस समारोह में दो अन्य विशिष्ट हिंदी सेवियों तथा एक हिंदी संस्था को भी सम्मान प्रदान किए गए. “जॉन गिलक्रिस्ट हिन्दी शिक्षण सम्मान” से यॉर्क विश्वविद्यालय के विख्यात भाषाविद प्रो. महेंद्र किशोर वर्मा को तथा “डा॰ हरिवंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य सम्मान” से बर्मिंघम के हिंदी लेखक डॉ॰ कृष्ण कुमार को सम्मानित किया गया जबकि नाटिङ्घम की संस्था “काव्य रंग” को “फ़्रेडरिक पिनकोट हिन्दी प्रचार सम्मान” प्रदान किया गया.


इस अवसर पर सम्मानितों को बधाई देते हुए सभा को संबोधित अपना वक्तव्य हिन्दी में देते हुए उच्चायुक्त डॉ जैमिनी भगवती ने कहा कि वे स्वयं असमिया भाषी होते हुए दिल्ली में रहने के कारण हिन्दी में व्यवहार करते रहे हैं व उनकी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी रही है। उन्होने ज़ोर देकर कहा कि निजी रूप से वे त्रिभाषा नीति को भारत के लिए श्रेयस्कर समझते हैं। विश्व पटल पर भारत से बाहर के लोगों के लिए अंग्रेजी, समस्त भारतीय कार्यकलापों के लिए हिन्दी व अपनी मातृभाषा अथवा एक प्रांतीय भाषा प्रत्येक भारतीय को अवश्य सीखनी पढ़नी चाहिए। 


“जॉन गिलक्रिस्ट यू.के.हिन्दी शिक्षण सम्मान” स्वीकार करते हुए प्रो. महेंद्र किशोर वर्मा ने अपने वक्तव्य में यॉर्क विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम हिन्दी अध्यापन प्रारम्भ होने सम्बन्धी अपने संस्मरण सुनाए और यूके में हिन्दी अध्यापन से जुड़ी स्थितियों का उल्लेख करते हुए 35 वर्ष के अध्यापन का उल्लेख किया। इसी प्रकार "डॉ. हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य सम्मान" ग्रहण करते हुए डॉ. कृष्ण कुमार ने भारत में संस्कृत, हिंदी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए भावपूर्ण अपील करते हुए चेतावनी दी कि ऐसा नहीं करने पर आने वाले दिनों में भारत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।


समारोह में “डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी प्रकाशन अनुदान योजना” के अंतर्गत श्रीमती उषा वर्मा को उनकी पुस्तक 'सिम कार्ड तथा अन्य कहानियाँ’ और डा॰ कृष्ण कन्हैया को उनके काव्य संग्रह 'किताब जिंदगी की’ के प्रकाशन हेतु नकद राशि और मानपत्र दिया गया।


लंदन स्थित इंडिया हाउस में हुए इस पुरस्कार समारोह में उप उच्चायुक्त डॉ. वीरेंद्र पाल और उच्चायोग में मंत्री (समन्वय) एसएस सिद्धू भी उपस्थित थे। सिद्धू जी ने अपना स्वागत वक्तव्य हिन्दी में दिया व धन्यवाद वक्तव्य भी डॉ वीरेंद्र पॉल द्वारा हिन्दी में ही दिया गया। कार्यक्रम का संचालन उच्चायोग के हिन्दी व संस्कृति अताशे श्री बिनोद कुमार ने सफलतापूर्वक किया। ब्रिटेन के विभिन्न नगरों से आए लेखक, पत्रकार तथा कला एवं साहित्य क्षेत्र के भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में समारोह में उपस्थित थे ।

चित्र परिचय –

1. लन्दन स्थित भारतीय उच्चायुक्त डॉ जैमिनी भगवती से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान प्राप्त करते हुए डॉ. कविता वाचक्नवी.

2. ब्रिटेन के विभिन्न नगरों से आए लेखक, पत्रकार तथा कला एवं साहित्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित अतिथिगण.

3. डॉ. कविता वाचक्नवी को प्रशस्तिपत्र और स्मृतिचिह्न भेंट करते हुए भारतीय उच्चायुक्त डॉ जैमिनी भगवती.

4. “जॉन गिलक्रिस्ट हिन्दी शिक्षण सम्मान” प्राप्त करते हुए प्रो. महेंद्र किशोर वर्मा.


[प्रेषक – डॉ. ऋषभदेव शर्मा (संवीक्षक – ‘विश्वम्भरा’), प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद-500004; मोबाइल – 08121435033]  

हिंदी का दूसरा महाकुंभ वर्धा में


हिंदी का दूसरा महाकुंभ वर्धा में 01 फरवरी से
पाँच दिवसीय समारोह में देशभर से लगभग 200 हिंदी लेखक करेंगे विमर्श

वर्धा, 30 जनवरी 2013 

वर्धा स्थित महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय से 5 फरवरी, 2013 के दौरान ‘हिंदी का दूसरा समय’ कार्यक्रम का भव्‍य आयोजन कर रहा हैजिसमें लगभग 200 से अधिक हिंदी के साहित्‍यकारपत्रकाररंगकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता विवि‍ध विषयों पर विमर्श करेंगे।

समारोह का उद्घाटन फरवरी को प्रात: 10 बजे अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के प्रांगण में बने आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार में प्रोनामवर सिंह करेंगे। विशिष्‍ट अतिथि के रूप में प्रो.निर्मला जैन की उपस्थिति में समारोह की अध्‍यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय करेंगे।

पाँच दिवसीय इस आयोजन में विवि के पूर्व कुलपति प्रो.जी.गोपीनाथन, केदारनाथ सिंहकाशीनाथ सिंहप्रो.गंगा प्रसाद विमल, रवीन्‍द्र कालिया, खगेन्‍द्र ठाकुर, रमणिका गुप्‍ताममता कालिया, अरुण कमल, पुरूषोत्‍तम अग्रवाल, हरिराम मीणा, राजीव भार्गवसुधा सिंह, प्रदीप भार्गवमोहन आगाशेवामन केंद्रे, रमेश दीक्षित, पुण्‍य प्रसून वाजपेयीनामदेव ढसालजे.वी.पवारबद्रीनारायणअखिलेशसंजीवजयनंदनआनंद हर्शुलशिवमूर्तिकुणाल सिंहचंदन पाण्‍डेययशपाल शर्माअजित अंजुमहरि प्रकाश उपाध्‍यायजय प्रकाश कर्दमहेमलता माहेश्‍वरप्रकाश दुबेशशि शेखरसंदीप पाण्‍डेय,बी.डीशर्माप्रेमपाल शर्मारघु ठाकुरप्रेम सिंहचन्‍द्रप्रकाश द्विवेदीकैलाश वनवासीमनोज रूपड़ामहुआ माजीसृंजय,भारत भारद्वाज तथा विकास मिश्र आदि सहित विभिन्‍न नामचीन हस्तियां उपस्थित रहेंगी।

      विदित हो कि चार वर्ष पूर्व महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा ने पांच दिवसीय ‘हिंदी समय’ का आयोजन किया था। ‘हिंदी का दूसरा समय’ के आयोजन के बारे में कुलपति विभूति नारायण राय से पूछने पर उन्‍होंने बताया कि हिंदी समय के आयोजन के बाद के चार वर्षों में सभी क्षेत्रों में तेजी से बदलाव हुए हैं और सूचना-संचार की विराटता के इस युग में हिंदी का दखल बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। दुनिया के तमाम देश भारत जैसे बड़े बाजार के निमित्‍त हिंदी को अपने भविष्‍य का रास्‍ता मान रहे हैं। स्‍वयं हमारे विश्‍वविद्यालय में विदेशी छात्रों की संख्‍या में दिनोंदिन होने वाली वृद्धि विश्‍व में हिंदी की बढ़ती जरूरत और इसकी अपरिहार्यता का प्रतीक है। इसकी बढ़ती पहुँच के साथ इसके विरूद्ध षडयंत्रों की भी शुरूआत हो चुकी है। विकिपीडिया के अनुसार कुछ वर्ष पहले विश्‍वभर में संख्‍या के लिहाज से सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में जहाँ हिंदुस्‍तानी का स्‍थान दूसरा थाअब हिंदी को चौथे पायदान पर लाया गया है और मजेदार बात तो यह है कि शीर्ष की सौ भाषाओं में मैथिलीभोजपुरीअवधीहरियाणवीमगही जैसी हिंदी की बोलियों की गणना की गयी है। यह एक निर्विवाद तथ्‍य है कि इन्‍हीं बोलियों के सम्मिलित रूप को हिंदी कहा जाता है। इनसे प्राप्‍त जीवन शक्ति से हिंदी फूलती है। ठेठ हिंदी का ठाठ इन्‍हीं बोलियों के सौंदर्य से निर्मित होता है।

      श्री विभूति नारायण राय ने कहा कि हमारी इस बढ़ती स्‍वीकार्यता का एक दूसरा पहलू भी है। यदि हम गौर से देखें तो हमारा यह समय एक विराट विचारशून्‍यता का भी है। हिंदी साहित्‍य में किसी नये सिद्धांत की बात तो दूर पिछले कई दशक से हम एक सार्थक बहस चलाने में भी समर्थ नहीं हुए हैं। हमारी भाषा की अन्‍य अभिव्‍यक्तियाँ मसलन दलित विमर्श,स्‍त्री-विमर्श आदि भी अन्‍य भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में किये जा रहे कार्यों का एक अनुवादित संस्‍करण ही है। हिंदी सिनेमा जरूर किन्‍हीं हद तक अपने नये मुहावरे में बात करने की कोशिश कर रहा है परंतु वहाँ भी बाज़ार और सनसनी का एक ऐसा वातावरण पसरा है कि इस समय में श्‍याम बेनेगलऋत्विक घटकमणि कौल जैसे फिल्‍मकारों को ढूँढ़ना निरर्थकता ही मानी जाएगी।

      कमोवेश ऐसी ही स्थिति हिंदी रंगमंच और इस भूभाग की कलाओं की भी है। पिछले कई दशकों से कोई महत्‍वपूर्ण नाटक हिंदी में लिखा या मंचित हुआ होयाद नहीं आता। अन्‍य ललित कलाओं में भी कोई महत्‍वपूर्ण आंदोलन इन प्रदेशों में दिखाई नहीं देता।

      यह वक्‍त थोड़ा ठहर कर सोचने का है। ऐसा नहीं कि हमारी ऊर्जा चुक गई है अथवा हम ऐसी जड़ता से निकलने की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं। लेकिन उन कोशिशों कोजो इस विकल्‍पहीन होते समय में एक सार्थक विकल्‍प रचने की कोशिश कर रहे हैंएक साथ समग्रता में समझने की जरूरत हैनहीं तो उत्‍तर–आधुनिक सोच हमें आश्‍वस्‍त करने में सफल हो जाएगी कि प्रत्‍येक विधाप्रत्‍येक कलाप्रत्‍येक अभिव्‍यक्ति अपने आप में स्‍वायत्‍त है और उसका समाज से भी कोई सीधा संबंध नहीं है।

      आयोजन के बारे में उन्‍होंने बताया कि हम यह मानते हैं कि आप हमारे सरोकारों और चिंताओं से सहमत होंगे और पाँच दिनों तक 01 से 05 फरवरी, 2013 तक चलने वाले इस कार्यक्रम हिंदी का दूसरा समय’ में उत्‍साह और तैयारी के साथ शिरकत करेंगे ताकि हिंदी की पहचान सिर्फ सबसे ज्‍यादा बोली जाने वाली भाषा या सबसे बड़े बाजार की ही नहीं,बल्कि वह समर्थ बने तो अपने सरोकारों के कारणअपनी अभिव्‍यक्ति की अपार संभावनाओं के कारण।

      संगोष्‍ठी के संयोजक राकेश मिश्र ने कहा कि हिंदी को विश्‍वभाषा बनाने की दिशा में विश्‍वविद्यालय का यह आयोजन सार्थक पहल के रूप में साबित होगा। उन्‍होंने कहा कि हिंदी को लेकर पूरे विश्‍व में चल रही बहस को यह आयोजन दिशादर्शक सिद्ध होगा। उन्‍होंने विश्‍वास जताया कि किसी विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर इतने बड़े पैमाने पर किया गया यह आयोजन साहित्‍य और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाएगा।

      ‘हिंदी का दूसरा समय’ का मुख्‍य समारोह अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के प्रांगण में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सभागार में सम्‍पन्‍न होगा वहीं समानांतर सत्र सआदत हसन मंटो कक्ष (स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय),महादेवी वर्मा कक्षरामचंद्र शुक्‍ल कक्ष (समता भवन), डी.डीकौसांबी कक्ष (जनसंचार विभाग), स्‍वामी अछूतानंद सभागार(महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन केंद्रीय पुस्‍तकालयमें सम्‍पन्‍न होंगे। इन सत्रों में हिंदी रचनाशीलता की पहुंच और उसका सामर्थ्‍यनव राजनैतिक विमर्श में हिंदी की उपस्थितिसंचार-सूचना की विराटता की वास्‍तविकता और हिंदीसृजनात्‍मक अभिव्‍यक्ति के दृश्‍यमान आधार और हिंदीहिंदी जातीयता का सवाल और ज्ञान का उत्‍पादनहिंदी प्रदेश की राजनीति और प्रगति‍शीलता आदि मुख्‍य विषयों पर विमर्श होगा। कार्यक्रम का समापन 5 फरवरी को दोपहर 3.00 बजे हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार में होगा। इसमें वक्‍ता के रूप में डॉ.बी.डीशर्मारघु ठाकुरराजेंद्र राजनप्रो.प्रेम सिंह और प्रेमकुमार मणि उ‍पस्थित रहेंगे।


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