पुस्तक -चर्चा
१५० वर्ष की हिन्दी कविता का अनूठा पुनर्पाठ
जाति क्या है? एक परिभाषा यह है कि ऐसे वृहत समाज को ‘जाति’ कहेंगे जिसे एक भाषा, पूर्वज, इतिहास, संस्कृति आदि के माध्यम से जोड़ा जा सकता है; और मोटे तौर पर कहा जाए तो वह समाज जो इन तत्त्वों के प्रति गौरव का अनुभव करे। जातीयता में भाषा की अहम भूमिका होती है, जो जाति को एक सूत्र में बाँधे रखती है। भाषा है तो साहित्य है और साहित्य है तो कविता भी। भारतीय कवियों ने जातीयता पर कई रचनाएँ रचीं, जिनका स्वरूप भी समय के साथ बदलता रहा। जातीयता और उससे जुड़ी कविताओं के साहित्यिक स्वरूप की पड़ताल करती है डॉ. कविता वाचक्नवी की शोधपूर्ण कृति- ‘कविता की जातीयता’।
पुस्तक विवरण
१५० वर्ष की हिन्दी कविता का अनूठा पुनर्पाठ
जाति क्या है? एक परिभाषा यह है कि ऐसे वृहत समाज को ‘जाति’ कहेंगे जिसे एक भाषा, पूर्वज, इतिहास, संस्कृति आदि के माध्यम से जोड़ा जा सकता है; और मोटे तौर पर कहा जाए तो वह समाज जो इन तत्त्वों के प्रति गौरव का अनुभव करे। जातीयता में भाषा की अहम भूमिका होती है, जो जाति को एक सूत्र में बाँधे रखती है। भाषा है तो साहित्य है और साहित्य है तो कविता भी। भारतीय कवियों ने जातीयता पर कई रचनाएँ रचीं, जिनका स्वरूप भी समय के साथ बदलता रहा। जातीयता और उससे जुड़ी कविताओं के साहित्यिक स्वरूप की पड़ताल करती है डॉ. कविता वाचक्नवी की शोधपूर्ण कृति- ‘कविता की जातीयता’।
‘कविता की जातीयता’ को सात अध्यायों में बाँटा गया है। प्रथम अध्याय में ‘भारतीय संस्कृति और जातीयता की संकल्पना’ का परिचय मिलता है। जातीयता, भारतीय संस्कृति तथा आधुनिक हिंदी साहित्य में जातीयता जैसे विषयों को उद्धृत करेत हुए डॉ. कविता वाचक्नवी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि "साहित्यानुशीलन की जातीय दृष्टि संस्कृति, भाषा, इतिहास, दर्शन, परम्परा, पूर्वज, भौगोलिक सीमा, संविधान, जनता, लोक सभ्यता व उसकी मानवीय संवेदना और बंधुत्व इत्यादि तत्त्वों पर आधारित है।"
दूसरे अध्याय- ‘आधुनिक हिंदी कविता में अभिव्यक्त देशानुराग की भावना’ में भौगोलिक परिवेश, राष्ट्रभक्ति, भारतीय लोक, भाषा-प्रेम तथा इनसे जुड़े राष्ट्रीय नायकों के संदर्भों पर चर्चा की गई है। समयानुसार साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता तक संदेश पहुँचाते रहे हैं। इस संदर्भ में लेखिका ने ध्यान दिलाया कि " यह देखना महत्त्वपुर्ण है कि विविध कालखंडों में अपने समय को सम्बोधित करने के लिए, कभी वर्तमान की सम्भावना जगाने, कभी विचार का बीज वपन करने, कभी शौर्य और बल की उत्प्रेरक बनने के लिए वह [कविता] जिन माध्यमों का आश्रय लेती है, वे माध्यम वह कहाँ से व परम्परा में कितने गहरे डूब-उतरा कर खोजती है।"[पृ. ९९]
तीसरे अध्याय - ‘हिंदी कविता में अभिव्यक्त राष्ट्रीय हित की चिंता’ में देश के स्वतंत्रता-संघर्ष से लेकर पुनर्निर्माण की चुनौतियों तक में कविता की भूमिका पर चिंतन-मनन किया गया है। स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान साहित्य ही ने तो ‘वन्देमातरम’ और ‘इन्क़िलाब ज़िंदाबाद’ जैसे नारे दिए हैं। डॉ. कविता वाचक्नवी का विचार है कि "भारत का वर्तमान और भविष्य, उसकी सुरक्षा और सम्मान, उसके निवासियों के प्रति अपनी सन्नद्धता और इनके हित-अहित के प्रति सतर्क दृष्टि के कारण निषेध और स्वीकार के विवेक का आग्रह कविता के जातीय हित-चिंतन को अभिव्यक्त करता है।" [पृ.१२७]
‘कविता की जातीयता’ के चौथे अध्याय का शीर्षक है ‘आधुनिक हिंदी कविता में अभिव्यक्त भारतीय जनभावना’। इस अध्याय में एक कृषिप्रधान देश के संघर्षशील जन की भावनाओं से प्रेरित कविताओं को संदर्भित किया गया है। कृति के पाँचवें अध्याय में आधुनिक हिंदी कविता के उन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है जो भारतीय मानस तथा जीवन-मूल्यों से जुड़ी हैं। इस संदर्भ में डॉ. कविता वाचक्नवी कहती हैं कि "कविता ने मनुष्य में छिपी उन समस्त अच्छाइयों को उद्घाटित करने के अथक प्रयास किए, जिन्हें वातावरण, दृष्टिकोण, परिस्थितियाँ और स्वभाव आदि बीसियों परदे ढाँप-दबा देते हैं।" [पृ.२४५]
छठे अध्याय में आधुनिक हिंदी कविता में जातीयता और दर्शन पर प्रकाश डाला गया है। इस अध्याय में जीवन, आस्था, अध्यात्म और मिथक जैसे विषयों की पड़ताल करने के बाद डॉ. कविता वाचक्नवी इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि "कुल मिलाकर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पिछले लगभग डेढ़ सौ साल की काव्य-चेतना के मिथक सम्पूर्ण [इक्का-दुक्का को छोड़] भारतीय परम्परा से अधिगृहित व आयत्त किए गए हैं।"[पृ.३११]
‘उपसंहार’ में डॉ. कविता वाचक्नवी ने हिंदी कविता की डेढ़ सौ वर्ष की यात्रा का निचोड़ यह निकाला कि "आधुनिक हिंदी कविता ने इस सामासिकता, बहुलता अथवा कुटुम्ब संस्कृति के सभी पहलुओं का भारतेंदु युग से लेकर आज तक परिवर्तनशील सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सार्थक एवं सटीक चित्रण किया है।"[पृ.३३८] इस निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए लेखिका ने भारतेंदु, प्रतापनारायण मिश्र, रामनरेश त्रिपाठी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, निराला, नागार्जुन आदि से लेकर धर्मवीर भारती, कुँवर नारायण, धूमिल, देवराज, लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, ऋषभदेव शर्मा, उदय प्रकाश, राजेश रेड्डी इत्यादि ५० रचनाकारों की कविताओं का विश्लेषण किया है।
पुस्तक के ‘प्राक्कथन’ में डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने इस कृति की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा - "डॉ. कविता वाचक्नवी के इस ग्रंथ की विशेषता यह भी है कि उन्होंने साहित्य और जातीयता के पारम्परिक संबंधों को पहचानते हुए भी इस संबंध को गतिशीलता दी, उनका यह काम किसी हद तक नवीनतम जीन्स प्रौद्योगिकी के अनुरूप ही है जो जीन्स और डीएनए में वंश, जाति, देश आदि के तत्त्वों की उपस्थिति सिद्ध कर चुकी है।.....मैं डॉ. कविता वाचक्नवी को एक अनिवार्य विषय पर हिंदी पाठक का ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद देता हूँ।" आशा है यह पुस्तक पाठकों और शोधार्थियों के लिए एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोगी सिद्ध होगी।
दूसरे अध्याय- ‘आधुनिक हिंदी कविता में अभिव्यक्त देशानुराग की भावना’ में भौगोलिक परिवेश, राष्ट्रभक्ति, भारतीय लोक, भाषा-प्रेम तथा इनसे जुड़े राष्ट्रीय नायकों के संदर्भों पर चर्चा की गई है। समयानुसार साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता तक संदेश पहुँचाते रहे हैं। इस संदर्भ में लेखिका ने ध्यान दिलाया कि " यह देखना महत्त्वपुर्ण है कि विविध कालखंडों में अपने समय को सम्बोधित करने के लिए, कभी वर्तमान की सम्भावना जगाने, कभी विचार का बीज वपन करने, कभी शौर्य और बल की उत्प्रेरक बनने के लिए वह [कविता] जिन माध्यमों का आश्रय लेती है, वे माध्यम वह कहाँ से व परम्परा में कितने गहरे डूब-उतरा कर खोजती है।"[पृ. ९९]
तीसरे अध्याय - ‘हिंदी कविता में अभिव्यक्त राष्ट्रीय हित की चिंता’ में देश के स्वतंत्रता-संघर्ष से लेकर पुनर्निर्माण की चुनौतियों तक में कविता की भूमिका पर चिंतन-मनन किया गया है। स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान साहित्य ही ने तो ‘वन्देमातरम’ और ‘इन्क़िलाब ज़िंदाबाद’ जैसे नारे दिए हैं। डॉ. कविता वाचक्नवी का विचार है कि "भारत का वर्तमान और भविष्य, उसकी सुरक्षा और सम्मान, उसके निवासियों के प्रति अपनी सन्नद्धता और इनके हित-अहित के प्रति सतर्क दृष्टि के कारण निषेध और स्वीकार के विवेक का आग्रह कविता के जातीय हित-चिंतन को अभिव्यक्त करता है।" [पृ.१२७]
‘कविता की जातीयता’ के चौथे अध्याय का शीर्षक है ‘आधुनिक हिंदी कविता में अभिव्यक्त भारतीय जनभावना’। इस अध्याय में एक कृषिप्रधान देश के संघर्षशील जन की भावनाओं से प्रेरित कविताओं को संदर्भित किया गया है। कृति के पाँचवें अध्याय में आधुनिक हिंदी कविता के उन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है जो भारतीय मानस तथा जीवन-मूल्यों से जुड़ी हैं। इस संदर्भ में डॉ. कविता वाचक्नवी कहती हैं कि "कविता ने मनुष्य में छिपी उन समस्त अच्छाइयों को उद्घाटित करने के अथक प्रयास किए, जिन्हें वातावरण, दृष्टिकोण, परिस्थितियाँ और स्वभाव आदि बीसियों परदे ढाँप-दबा देते हैं।" [पृ.२४५]
छठे अध्याय में आधुनिक हिंदी कविता में जातीयता और दर्शन पर प्रकाश डाला गया है। इस अध्याय में जीवन, आस्था, अध्यात्म और मिथक जैसे विषयों की पड़ताल करने के बाद डॉ. कविता वाचक्नवी इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि "कुल मिलाकर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पिछले लगभग डेढ़ सौ साल की काव्य-चेतना के मिथक सम्पूर्ण [इक्का-दुक्का को छोड़] भारतीय परम्परा से अधिगृहित व आयत्त किए गए हैं।"[पृ.३११]
‘उपसंहार’ में डॉ. कविता वाचक्नवी ने हिंदी कविता की डेढ़ सौ वर्ष की यात्रा का निचोड़ यह निकाला कि "आधुनिक हिंदी कविता ने इस सामासिकता, बहुलता अथवा कुटुम्ब संस्कृति के सभी पहलुओं का भारतेंदु युग से लेकर आज तक परिवर्तनशील सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सार्थक एवं सटीक चित्रण किया है।"[पृ.३३८] इस निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए लेखिका ने भारतेंदु, प्रतापनारायण मिश्र, रामनरेश त्रिपाठी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, निराला, नागार्जुन आदि से लेकर धर्मवीर भारती, कुँवर नारायण, धूमिल, देवराज, लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, ऋषभदेव शर्मा, उदय प्रकाश, राजेश रेड्डी इत्यादि ५० रचनाकारों की कविताओं का विश्लेषण किया है।
पुस्तक के ‘प्राक्कथन’ में डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने इस कृति की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा - "डॉ. कविता वाचक्नवी के इस ग्रंथ की विशेषता यह भी है कि उन्होंने साहित्य और जातीयता के पारम्परिक संबंधों को पहचानते हुए भी इस संबंध को गतिशीलता दी, उनका यह काम किसी हद तक नवीनतम जीन्स प्रौद्योगिकी के अनुरूप ही है जो जीन्स और डीएनए में वंश, जाति, देश आदि के तत्त्वों की उपस्थिति सिद्ध कर चुकी है।.....मैं डॉ. कविता वाचक्नवी को एक अनिवार्य विषय पर हिंदी पाठक का ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद देता हूँ।" आशा है यह पुस्तक पाठकों और शोधार्थियों के लिए एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोगी सिद्ध होगी।
पुस्तक विवरण
पुस्तक का नाम : कविता की जातीयता
लेखक : डॉ. कविता वाचक्नवी
प्रथम संस्करण : मई २००९ई.
पृष्ठ संख्या : ३६६
मूल्य : २२५ रुपये मात्र
प्रकाशक : सचिव, हिंदुस्तानी एकेडेमी
१२ डी, कमला नेहरू मार्ग
इलाहाबाद - २११ ००१
[उ.प्र.]
कविता वाचवनी जी को बहुत बहुत बधाई इस बडिया जानकारी के लिये आभार्
जवाब देंहटाएंलेखिका को बधाई। समीक्षक को शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं"kavita ki jaatiyata" ek vistrit roop se vishway ka ankalan hai. Is tarah ka yogdaan Hindi sahitya ke liye aane wale varshon mey vardaan siddh hoga.
जवाब देंहटाएंAbhaar!
is vadiya jankaari k liye bahut-bahut aabhar or aap ko bahut-bahut badhai.................
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