दुर्गम मृत्यु-चक्र में जीवन



बचपन में सर्कस देखने जाते समय जैसा कौतूहल व अवाक् भाव लिए लौटते थे, उसमें "मौत का कुआँ" जैसे "खेले" बंद गोले में होने और मेले-ठेले में दिखाए जाने के बावजूद भी लगभग अविश्वसनीय-से और भयोत्पादक हुआ करते थे| आप सबने भी देखा ही होगा वह "मौत का कुआँ "| 

मौत का वह कुआँ इस दुर्गम अभ्यास के आगे कहाँ ठहरता है, आप भी देखिए और बताइये  -





5 टिप्‍पणियां:

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