मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ. देवराज  (१४)

मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ. देवराज

नवजागरणकालीन मणिपुरी कविता-१४





थोकचोम मधुसिंह जैसे समाजसेवी के कारण मणिपुर में शिक्षा के मह्त्व को समझा गया। इसी शिक्षा का परिणाम यह हुआ कि लोगों में जागरूकता फैलने लगी। पत्र-पत्र-पत्रिकाएँ भी इस आग में घी का काम करने आगे आईं। इसका ब्यौरा देते हुए डॉ. देवराजजी बताते हैं :-


"मणिपुर से बाहर रहकर मणिपुरी समाज को नई दिशा देनेवाले लोगों से प्रेरणा लेकर यहां रहने वाले सगज व्यक्ति भी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में आगे आए। इस दिशा में पहला प्रयास हिजम इरावत ने किया। उन्होंने ‘मीतै चनु’ नाम से एक हस्तलिखित पत्रिका प्रकाशित करके साहित्यिक हलचल को जन्म दिया। सन १९३० में इम्फ़ाल से ‘ललित मंजरी’ पत्रिका प्रकाशित हुई। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध आने तक मणिपुर से अनक पत्रिकाएं निकलने लगी। इनमें ‘याकाइरोन’, ‘मणिपुर साहित्य परिषद पत्रिका’, ‘तरुण मणिपुरी’, ‘मणिपुर मतम’ और ‘नहारोल’ उल्लेखनीय हैं। सबसे बडी बात तो यह हुई कि इन पत्रिकाओं के माध्यम से स्वतंत्रता और मानवतावाद से प्रेरित रचनाएं प्रकाशित होती थीं, जिनका सम्बंध साहित्य से भी अधिक तत्कालीन जीवन के अन्य पक्षों से था।"


"वैचारिक क्रान्ति और आधुनिक विचारधारा का प्रचार करने में मुद्रण सुविधा के सहयोग को भी नहीं भुलाया जा सकता। मणिपुर में मुद्रण युग का प्रारम्भ सन १९१० में हुआ। उस वर्ष मकर सिंह, मुनाल, हाउदैजाम्बा चैतन्य और सनाजाओबा ने मिलकर एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। शनैः-शनैः इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव प्रकट होने लगे।"
(क्रमश:)

प्रस्तुति : चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

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