हिन्दी में दक्षिण भारतीय साहित्य


पुस्तक चर्चा : ऋषभ देव शर्मा


हिन्दी में दक्षिण भारतीय साहित्य*



सभी भारतीय भाषाओँ के बीच लेन -देन और आवाजाही की परम्परा बहुत पुरानी है.इस परम्परा के निर्माण में अनुवाद का बड़ा योगदान रहा है. आज़ादी के बाद हिन्दी को राजभाषा घोषित किए जाने के बाद से इस दिशा में सुनियोजित प्रयासों की श्रंखला आरम्भ होने के कारण विविध भारतीय भाषाओँ का इतना साहित्य हिन्दी में आगया है कि लंबे समय से उसके विधिवत इतिहास लेखन और मूल्यांकन की आवश्यकता अनुभव की जाती रही है.

इसी दृष्टि से दक्षिण भारतीय भाषाओँ के साहित्यिक अनुवादों के सूचीकरण और इतिहास लेखन का प्रशंसनीय प्रयास है डॉ. विजय राघव रेड्डी संपादित ''हिन्दी में दक्षिण भारतीय साहित्य [ अनूदित साहित्य के परिप्रेक्ष्य में] ''. डॉ. रेड्डी हिन्दी - तेलुगु अनुवादक के रूप में प्रतिष्ठित विद्वान हैं और अनुवाद्केंद्रित कई राष्ट्रीय आयोजनों के श्रेय भी उन्हें प्राप्त है. इसलिए उन्हें योजनाबद्ध ढंग से इस महत्कार्य को संपन्न करने में सफलता प्राप्त हो सकी है.उन्हें चारों दक्षिण भारतीय भाषाओँ के विद्वानों,अध्येताओं और अनुवादकों का सहयोग मिला है. स्वयं इस कार्य-क्षेत्र से ईमानदारी से जुड़े लेखकों के योगदान के कारण यह कृति सहज प्रामाणिक मानी जा सकती है.

संपादित पुस्तक में चार खंड है. एक-एक खंड में एक -एक भाषा [तमिल / तेलुगु / कन्नड़ / मलयालम ] के हिन्दी में अनूदित साहित्य को लिया गया है. हर खंड में सम्बंधित भाषा से अनुवाद के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डालने के बाद प्राचीन काव्य से लेकर आधुनिक गद्य की विभिन्न विधाओं तक के हिन्दी अनुवाद-कार्यों का सर्वेक्षण अलग-अलग आलेखों में प्रस्तुत किया गया है.

तुलनात्मक साहित्य के अध्येताओं के लिए अनिवार्य इस ग्रन्थ का हिन्दी जगत में व्यापक स्वागत होना स्वाभाविक है.

[निस्संदेह मूल्य बहुत अधिक है !]

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हिन्दी में दक्षिण भारतीय साहित्य [ अनूदित साहित्य के परिप्रेक्ष्य में ] सम्पादक : डॉ. विजय राघव रेड्डी
वर्ष २००८
प्रकाशक अकादमिक प्रतिभा , ४२ , एकता अपार्टमेन्ट , गीता कालोनी , दिल्ली - ११००३१
मूल्य ४७५ रुपये


पृष्ठ २१६./ सजिल्द

5 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे लिए तो यह जानकारी मूल्यवान है परंतु २१६ प्रिष्ठोन के ग्रंथ की कीमत ४७५ रुपये रखना अन्यायपूर्ण हैं. क्या ऐसे प्रकाशनों के लिए अनुदान की व्यवस्था नही रही होगी?

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  2. दक्षिण भारत की ४ मूल्यवान धरोहर रुपी भाषाओँ के योगदान पर आधारित यह पुस्तक एक प्रषँशसनीय प्रयास है - मैँ भी इसे पढना चाहूँगी
    जानकारी का आभार जी
    - लावण्या

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  3. इस जानकारी के लिये आप का धन्यवाद जब भी कभी यह पुस्तक मिळी इसे जरुर पढूगां , शायाद इसी साल.

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  4. कविता जी,
    आपके इस ब्लॉग पर संभवत: पहली बार आ रहा हूं। अच्छा लगा।
    पटना में आपसे बातचीत में आप जो भी प्रयास कर रही हैं उसकी एक ईमानदार और गंभीर झलक मुझे दिखी थी। ब्लॉग पर आ कर उसकी आश्वस्ति भी मिली। आभार एवं शुभकामनाओं सहित।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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