मणिपुरी कविता मेरी दृष्टि में - डॉ. देवराज

‘हिन्दी भारत’ का एक उद्देश्य यह भी है कि हिन्दी के माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य पर विचार-विमर्श को सम्भव बनाया जाए। इसी क्रम के अन्तर्गत मणिपुरी कविता के विकास व प्रवृत्तियों के अध्ययन पर केन्द्रित डॊ। देवराज (अधिष्ठाता-- मानविकी संकाय, मणिपुर विश्वविद्यालय,मणिपुर) के चर्चित ग्रन्थ " मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में " के चयनित अंशों को ‘हिन्दी भारत’ के सदस्यों के लिए प्रस्तुत करने की योजना `हिन्दी भारत'( समूह) पर चल रही है

यह लेखमाला विविध भारतीय भाषाओं के साहित्य को मुख्य धारा में सम्मिलित करने व हिन्दीतर लेखन को हिन्दी के माध्यम से हिन्दी पाठकों के संज्ञान में लाने के उद्देश्य व इच्छा से आरम्भ की गई थी। मणिपुर की (बल्कि सप्तभगिनी क्षेत्र की)स्थिति इन अर्थो में बहुत दुरूह है कि एक ओर तो भौगोलिक दृष्टि से चीन उस पर छाया है, दूसरी ओर समाज-सांस्कृतिक दृष्टि से ईसाई मिशनरी अपना आधिपत्य जमाए हैं। एक और विडम्बना यह कि इन परिस्थितियों के साथ चेहरे-मोहरे आदि की भिन्नता के कारण वे देश में अलग थलग से छूटे रहे हैं। जबकि वहाँ के स्थानीय लोग भौगोलिक व सांस्कृतिक भारत से उतने ही सम्बद्ध हैं जितना कि कोई भी अन्य प्रदेश का वासी। ऐसे में उन लोगों को देश की मुख्यविरासत, धारा, संस्कृति,समाज व परिदृश्य में सम्मिलित करने की नितान्त आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उपर्युक्त बाधाओं को भुलाकर उन्हें निकटता व आत्मीयता से अपनाने की पहल प्रत्येक भारतीय को करनी ही चाहिए। ताकि वे भी स्वयम् को इस देश का अविभाज्य अंग अनुभव कर सकें। ऐसी पहल भाषा,साहित्य व व्यवहार से जिन सज्जनों ने की ,उनमें प्रो। देवराज का नाम अग्रगण्य है। वे मणिपुरी भाषा व साहित्य के संरक्षण-सम्वर्धन का कार्य अनेक प्रकार के शोधों द्वारा व उसे हिन्दी भाषा में उपलब्ध करा कर बहुत अरसे से कर रहे हैं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वहाँ की परिस्थिति जान को सदा जोखिम में पड़े रखने से इतर नहीं है। विकट परिस्थितियों से जूझते हुए सम्पन कराए इस कार्य के लिए पूरे भारतीय समाज को प्रो. देवराज सरीखे लगन के धनी व्यक्तियों का आभारी होना चाहिए, विशेषत: भारत व भारतीयता से प्रेम करने वाले जन को।

नवजागरण कालीन मणिपुरी साहित्य पुस्तक रूप में उपलब्ध है, कुछ शोध भी इस दिशा में हिन्दी में मिल सकते हैं। आगामी समय में यत्न रहेगा कि तद्विषयक अधिक जानकारी उपलब्ध कराई जाए।

इस बार से प्रस्तुत है इस लेखमाला की पहली कड़ी

मणिपुरी कविता पर केन्द्रित प्रो . देवराज की पुस्तक के लेखमाला के रूप में अनवरत प्रकाशन के लिए चन्द्रमौलेश्वर जी का जो सहयोग मिल रहा है, तदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं

~कविता वाचक्नवी

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पुस्तक का नाम : मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में
लेखक : डॉ. देवराज
प्रथम संस्करण : २००६
प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन, ७/३१, अनसारी रोड़, दरियागंज,दिल्ली-११० ००२


मणिपुरी कविता - मेरी दृष्टिमें
डॉ. देवराज
(१)
एक दिन डॉ. ऋषभदेव शर्माजी बैठा था तो मेरी नज़र उपर्युक्त पुस्तक पर पडी़। मणिपुरी कविता की जानकारी मिली जो मैं आप सब से बाँटना चाहूँगा। ज़ाहिर है कि सारी पुस्तक एक सांस में पढना ��"र उस पर पर लिखना सम्भव नहीं है, अतः हम अंशों में इस पुस्तक का अध्ययन करेंगे। तो, आइए चलें, प्रारम्भ भूमिका ही से किया जाय। मणिपुर के प्रसिद हिंदीमर्मज्ञ इबोहल सिंह काग्ङ्जम ने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है। यह माना जाता है कि मणिपुरी साहित्य का प्राचीन काल प्रथम शताब्दी से होता है। मणिपुरी साहित्य पर बंगला साहित्य का प्रभाव भी रहा। इस साहित्य में काव्यपरम्परा की विशेष भूमिका भी रही। इबोहलसिंह काङ्जम बताते हैं कि: "डॉ. देवराज पिछले बीस वर्षों से मणिपुर में रह रहे हैं। जब से वे यहा आए, तब से यहाँ के स्थानीय हिंदी प्रचारकों एवं मणिपुरीभाषा के साहित्यकारों के सम्पर्क में रहे। स्वयं कवि हैं��"र काव्य-अध्ययन में विशेष रुचि लेते हैं। बीस वर्षों के मणिपुर-प्रवास के दौरान मंणिपुर के बारे में उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया, विशेष कर मणिपुरीकाव्य-परम्परा के बारे में। मणिपुरी कविता की प्रवृत्तियों के बारे में उनका ज्ञान काफ़ी गहरा है। यह उनके लेखों तथा साहित्यिकसभादquot;ं में व्यक्त्त विचारों से मालूम होता है। उनके द्वारा तैयार किये गए लेखों का मणिपुरी अनुवाद जब धारावाहिक रूप में स्थानीय दैनिकपत्र ‘पोक्नफम’में छपा, तब जो प्रतिक्रियाएँ पाठकों ��"र अन्य साहित्यकारों से आई, वे ही उनके मणिपुरी कविता के मर्म- ज्ञानकी सबूत थीं। अब मणिपुरी कविता का जो ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया है, वे उसे हिन्दी पाठकों एवं विद्वानों तक पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। मणिपुरीभाषा-भाषी होने के नाते मैं हर्ष का अनुभव कर रहाहूँ ��"र डॉ. देवराज का ऋण भी मानता हूँ मणिपुरी भाषा��"र साहित्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया, जेसे हमें ही अपनी मातृभाषा ��"र साहित्य के लिए करना चाहिए था ��"र हम आज तक नहीं कर पाए। डॉ। देवराज धन्यवाद के पात्र हैं।"
( क्रमश: )
-चन्द्रमौलेश्वर

4 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय साहित्य के मूलभूत सरोकारों की समानता को समझने के लिए डॉ. देव राज की यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है. अतः इसे विश्वजाल पर प्रस्तुत करने के सत्संकल्प के लिए चंद्रमौलेश्वर जी बधाई के पात्र हैं.

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  2. Thanks,आभार,धन्यवाद कि हिन्दी भारत की यह लेखमाला सार्थक प्रतीत हुई!

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  3. हिन्दी एडिटर लिखने के लिए आपको धन्यवाद |

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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