मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ.देवराज -[२]

मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ.देवराज -[२]


डॉ. देवराज के लेखन की ओर बढ़ने से पहले लेखक की जीवनी पर एक नज़र डाल लें तो शायद कृति को समझने में भी सुविधा होगी।

डॉ. देवराज का जन्म १९५५ ई. में उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद में हुआ। हिंदी में एम. ए. करने के बाद ‘नई कविता में रोमानी और यथार्थवादी अवधारणाओं की भूमिका’ को अपना विषय बनाकर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। यहाँ से उनकी साहित्य यात्रा शुरू हुई।

सन् १९८५ से उन्होंने भारत के सीमान्त राज्य मणिपुर के साथ-साथ सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत में हिंदी प्रचार आन्दोलन, हिंदी साहित्य और् हिन्दी पत्रकारिता के विकास में सक्रिय भाग लिया और मणिपुर हिन्दी परिषद्, इम्फाल के आजीवन सदस्य बने। इस परिषद् से निकलनेवाली त्रैमासिक ‘महिप पत्रिका’ का सम्पादन १९९१ से लेकर २००१ तक किया। हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु हिन्दी लेखक मंच, मणिपुर की स्थापना की और उसके संस्थापक एवं प्रथम सचिव रहे। इसी क्रम में उन्होंने हिंदीतरभाषी हिन्दी कवि सम्मेलन की परम्परा का प्रारम्भ किया। डॉ. देवराज कई साहित्यिक संस्थाओं के आजीवन सदस्य भी हैं जिनमें मणिपुर संस्कृत परिषद् - इम्फ़ाल, नागरी लिपि परिषद्- नई दिल्ली, तथा राष्ट्रीय हिन्दी परिषद्- मेरठ उल्लेखनीय हैं

अपनी कृतियों के माध्यम से भी डॉ. देवराज का हिंदी साहित्य में बडा़ योगदान रहा। चिनार, तेवरी[कविता संग्रह], नई कविता, नई कविता की परख, संवेदना का साक्ष्य, तेवरी चर्चा, मणिपुरी लोककथा संसार, नोंदोननु[लोककथा संग्रह ], संकल्प और् साधना [जीवन साहित्य] जैसी कृतियों के वे रचयिता हैं। उन्होंने कई पुस्तकों का सम्पादन भी किया है; जैसे,मीतै चनु, मणिपुर: विविध संदर्भ , मणिपुर - भाषा और् संस्कृति, नवजागरण कालीन मणिपुरी कविताएँ, आधुनिक मणिपुरी कविताएँ, प्रतिनिधि मणिपुरी कहानियाँ, फ़ागुन की धूल, माँ की आराधना, जित देखूँ, तुझे नहीं खेया नाव, आन्द्रो की आग, शिखर-शिखर , कमल- संपूर्ण रचनाएँ, बीहड़ पथ के यात्री, पाञ्चजन्य आदि।

अस्सी के दशक में डॉ. देवराज ने डॉ. ऋषभदेव शर्मा के साथ मिलकर गज़ल को एक नया आयाम दिया जिसे उन्होंने ‘तेवरी’ का नाम दिया। गज़ल को प्राय: प्रणय से जोडा़ जाता है जबकि हिंदी में इसी विधा में आक्रोश की रचनाएँ रची जा रही थी। ऐसी गज़ल जिसमें प्रेम नहीं आक्रोश और आंदोलन झलकता हो, उसे ‘तेवरी’ कहा गया और आज के साहित्यकार उस रेखा का सम्मान भी करते हैं जो गज़ल और तेवरी के बीच खींची गई है।

आचार्य, हिंदी विभाग एवं अधिष्ठाता, मानविकी संकाय, मणिपुर विश्वविद्यालय, इम्फ़ाल के पद पर रहते हुए आज भी प्रो. देवराज स्थानीय भाषा मणिपुरी को राष्ट्रभाषा हिंदी से जोड़ने का कार्य अपनी कलम के माध्यम से चला रहे हैं। इसी संदर्भ में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद की उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष व प्रोफ़ेसर ऋषभ देव शर्माजी [जो तेवरी काव्यान्दोलन के प्रवर्तकों में से एक हैं] बताते हैं :-
"...प्रो. देवराज पिछले दो द्शकों से मणिपुर में कार्यरत हैं और वहाँ हिन्दी प्रचार-प्रसार आन्दोलन तथा मणिपुरी साहित्य से निकट से जुडे़ हैं। उनके प्रयास से विपुल परिमाण में मणिपुरी साहित्य हिन्दी में आ चुका है और् हिंदी की अनेक कृतियाँ मणिपुरीभाषी पाठकों को उपलब्ध हो चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से मणिपुरी साहित्य के विविध पक्षों के सम्बन्ध में उनकी दृष्टि अधिक पैनी और तटस्थ है।"
- चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

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