स्वतन्त्रतादिवस पर कोई बधाई नहीं





स्वतन्त्रतादिवस पर कोई बधाई नहीं 
- कविता वाचक्नवी


स्वतन्त्रता-दिवस की पूर्व-संध्या पर देश के अमर शहीदों के दाय को प्रणाम निवेदित करते हुए भी मन जार-जार रो रहा है। क्या इन चित्रों में दीखती घटना के बाद भी वास्तव में हमें स्वतन्त्रता दिवस की बधाइयाँ लेने देने का अधिकार है ? 

किसी भी देश की नसों में ठंडे हो चुके रक्त व उसका स्थान ले चुकी कृतघ्नता के साथ स्वातांत्र्य की बधाइयाँ लेना देना हजम नहीं होता। इस बार उक्त अक्षम्य घटना के बाद हमें उल्लसित होने का तब तक कोई अधिकार नहीं जब तक अमर जवानों पर उठी जूते वाली लातों, हाथों और मानसिकता को भीषण दंड नहीं दे दिया जाता।

जो देश और जाति अपनी कुंठा के चलते अमर जवान ज्योति जैसे पवित्र स्थल तक पर ऐसे जघन्य कृत्य कर सकती है उस देश व जाति को स्वतंत्र रहने का भी कोई अधिकार नहीं। 

किस मुँह से वीरों की जय और भारत माता की जय की बात करते हैं हम ? क्या इस दिन के लिए वीरों ने लहू बहाया था ? 








19 टिप्‍पणियां:

  1. लता दीदी का वो गाना याद आ रहा है...

    पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गँवाए
    कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर ना आए
    ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी
    जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी...

    इस अभागे को यह नहीं मालूम कि यह ज्योति जिनके लिए जल रही थी उनमें कितने उसकी खुद की कौम के थे... जो सिर्फ इसलिए शहीद हो गए कि इस अभागे के माँ घर में सुरक्षित इसको जन्म दे सके, पाल सके...

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  2. हम में से किसी के खून में उबाल आएगा तब भी हमीं लोगों में से इन्हें नादान, बेक़सूर और हमें उपद्रवी बताकर शान्ति, सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता के छींटे दिए जायेंगे|
    जिस संगठन, समाज के ऐसे ऐसे नुमाइंदे बने हुए हैं, वो क्या कर रहे हैं?

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    1. हर उस हिन्दुस्तानी का खून उबलेगा ये देखकर जिसके घर से फ़ौज का कोई भी नाता है, लेकिन सवाल यही है दोस्त कि रोना ही हल बचा है न हम लोगों के पास? फिर तो कुछ समय बाद ऐसी घटनाओं पर रोना भी साम्प्रदायिक और माहौल खराब करने वाला मान लिया जाएगा|

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  4. इन बेग़ैरतों ने अपनी जन्मभूमि को ही नहीं, अपनी माँ को भी तमाचा मारा है। इन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिये और ऐसे लोगों को उकसाने और शह देने वालों को भी।

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    1. पहली जिम्मेदारी ही उन आयोजकों और रहनुमाओं की होनी चाहिए अनुरागजी| जिन्हें रीछ को काबू करना न आता हो उन्हें रीछ को नचवाने का स्वांग करने का भी हक नहीं होना चाहिए|

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  5. चूँकि इन तस्वीरो में दिखने वाले युवक पहनावे से ही नादान और थोड़े भटके हुए दिख रहे है तो कृप्या करके उन पर दया की जाये,उन्हें क्षमादान दे कर सुधरने का एक और मौका दिया जाए !
    अब जो कुछ भी शहीद वीर जवान कर चुके वो तो कर चुके भाई, इन नौजवानों को तो अभी बहुत बार वोट डालनी है !अब जो शहीद हो चुके है वो वोट डालने तो आ नहीं सकते, ये काम तो ये युवा ही कर सकते है !
    और वैसे भी स्थानीय प्रशाशन और पुलिस को क्या नहीं पता होगा कि कौन लोग है?
    पर उस पर भी सरकारी दबाव होगा!
    अब इनके खिलाफ कोई आवाज़ उठाएगा तो साम्प्रदायिक हो जाएगी बात जो कि हमारी सरकार को कतई मंजूर नहीं!
    आपकी पोस्ट पढ़ कर मै खुद को रोक नही पा रहा हूँ,इसीलिए टिपण्णी इतनी लम्बी हो रही है,
    संजय जी बिल्कुलस सही कहा है ऊपर!

    कुँवर जी,

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  6. जिन्होंने फ़ोटो खींचे वो क्या कर रहे थे, क्या वे भारत के सपूत कहलाने लायक हैं, क्या वे अपनी जान दांव पर नहीं लगा सकते थे ।

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    1. jinhone photo kheenche ve aap tak yah jaghanya kratya pahuncha rahe the - un par sawal uthana jaayaz nahi - nahi to is desh me jo thodee bahut imandar patrakaarita rah gayee hai - uska bhi gala ghont denge ham

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  7. कविता जी, आप की बातोंसे १०० प्रतिशत सहमत हूँ.

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  8. सही कहा आपने.....हमारे नसों का खून ठंढ़ा हो गया है....कोई उबाल नहीं आता ये सब देखकर भी..

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  9. दोजख़ की आज़ाब पिछा कर रही है इन बे-गैरतों की!!

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  10. जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें
    राख के ढेर में शोला है ना चिंगारी है

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  11. कविता जी, आपकी भावनाओं का मैं सम्मान करता हूँ, लेकिन आपके उक्त वाक्यांश ‘‘जो देश और जाति अपनी कुंठा के चलते अमर जवान ज्योति जैसे पवित्र स्थल तक पर ऐसे जघन्य कृत्य कर सकती है उस देश व जाति को स्वतंत्र रहने का भी कोई अधिकार नही।’’ ने मुझे यह सोचने को अवश्य ही विवश किया है कि आपको कोई भी टिप्पणी करने के पहले यह विचार अवश्य ही करना चाहिए कि आप क्या कह/लिख रही हैं। भावनाओं पर मस्तिष्कीय नियंत्रण भी आवश्यक होता है। क्या उक्त वाक्य का आशय मैं यह समझूं कि कुछ साम्प्रदायिक तत्वों अथवा असामाजिक तत्वों के इस कृत्य के कारण आप इस संपूर्ण भारत को फिर गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ देखना चाहती हैं ............? विषय बहुत गंभीर है अतः मैं और ज्यादा कुछ नहीं लिखना चाहता।-दुर्गेश गुप्त ‘राज’

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    2. सम्वेदनाओं से मृतप्रायः लाशों में सजगता फूंकने के उद्देश्य से यह कहा जाय कि - "जो लाश बनकर स्वयं को हालातों के हवाले कर देते है वे जिंदा भी मुर्दे के समान है" तो इस वाक्य का आशय यह नहीं होता कि वह सभी को मरा हुआ ही देखना चाहते है।

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  12. ये धर्मनिरपेक्ष व् अल्पसंख्यक तबके के लोग है इनके खिलाफ भारतीय राजनीति नहीं जा सकती है
    लेकिन फिर भी भारतीय नेता यह आश्वासन जरुर दे देंगे की कोई हिंदू व् बहुसंख्यक ऐसा करेगा तो उसका सबूत दिखाए उसके खिलाफ तुरंत सख्त कारवाही की जायेगी

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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