भस्म की रस्म और पुनर्जन्म की आस
कमलकांत बुधकर
आज आख़िरी रस्म हो गई,
सबके मन में टीस बो गई ।
आज आख़िरी रस्म हो गई ।
भस्मरूप में शेष बची जो देह,
वह भी गंगाजल में बहकर
शेष हो गई।
आज आख़िरी रस्म हो गई।
किन्तु मुझे विश्वास,
लौट वे फिर आएँगे।
पुनर्जन्म के बाद
पखेरू उस आत्मा के
धरा गगन के बीच उड़ेंगे
नवजीवन ले,
फिर नाचेंगे, फिर गाएँगे,
हम सबके प्रिय
श्रीप्रभाष जी फिर आएँगे
नवल रूप में ।।
सबके मन में टीस बो गई ।
आज आख़िरी रस्म हो गई ।
भस्मरूप में शेष बची जो देह,
वह भी गंगाजल में बहकर
शेष हो गई।
आज आख़िरी रस्म हो गई।
किन्तु मुझे विश्वास,
लौट वे फिर आएँगे।
पुनर्जन्म के बाद
पखेरू उस आत्मा के
धरा गगन के बीच उड़ेंगे
नवजीवन ले,
फिर नाचेंगे, फिर गाएँगे,
हम सबके प्रिय
श्रीप्रभाष जी फिर आएँगे
नवल रूप में ।।
श्रद्धेय प्रभाष जोशी आज भस्म और अस्थिरूप में हरिद्वार के पावन हरकी पौड़ी गंगाघाट पर लाए गए। उनके दो अस्थिकलश प्रभाष जी के छोटे भाई सुभाष जोशी और पुत्र सन्दीप जोशी के हाथों में थे।
साथ में थे उदास और निढाल परिजन जिनमें आदरणीया भाभीश्री उषा प्रभाष और प्रभाष जी के छोटे पुत्र सोपान, पौत्र माधव, पौ्त्री मूमल और छोटे भाई गोपाल जोशी सहित अनेक परिजन तथा वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय भी थे।
हरिद्वार के गंगाघाट पर प्रभाष जी के सैकड़ों प्रशंसक भी उपस्थित थे।
कमलकांत बुधकर
हरिद्वार से
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प्रभाष जोशी मरे नहीं, प्रभाष जोशी कभी मरते नहीं...
जवाब देंहटाएंप्रभाष जोशी एक विचार हैं, जो हमेशा हमारे साथ रहेंगे...
जय हिंद...
खुशदीप जी से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंकैसे-कैसे लोग रुख़सत कारवां से हो गये
कुछ फ़रिश्ते चल रहे थे जैसे इंसानों के साथ।