समकालीन हिन्दी लेखकों की देन : त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी


केरल में "समकालीन हिन्दी लेखकों  की देन" विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 








कैथोलिकेट कालेज, पत्तनम्तिट्टा (केरल)
के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में दिनांक 27-29 अक्टूबर को ‘समकालीन हिन्दी लेखको की देन’ विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन हिन्दी के वरिष्ठ कवि कुमार अंबुज के करकमलों से संपन्न हुआ। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में कवि कुमार अंबुज, ड़ॉ. पल्लव (संपादक, बनास, उदयपुर), डॉ. एन. रवीन्द्रनाथ( पूर्व सम उपकुलपति, महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम), डॉ. आर. जयचन्द्रन ( रीड़र, एम. एस. विश्वविद्यालय, तिरुनलवेली, तमिलनाडु), डॉ. बाबू जोसफ़( पूर्व सदस्य, हिन्दी सलाहकार समिति, रक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार व रीड़र, हिन्दी विभाग, के. ई. कालेज मान्नानम, केरल), डॉ. वी.डी. कृष्णन नंबियार ( पूर्व प्राचार्य, महाराजास कालेज, एरणाकुलम) आदि विषय विशेषज्ञों ने समकालीन रचना धर्मिता तथा समकालीन हिन्दी लेखकों की देन को विभिन्न दृष्टि एवं आयामों से विश्लेषित किया।
मलंकरा ओर्थडोक्स सभा के कालेजों के मैनेजर पूजनीय कुरियाकोस मार क्लमीज़ ने उद्घाटन समारोह में अध्यक्ष रहे। विभागाध्यक्ष डॉ. के. जे. मैथ्यू ने सभा में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए हिन्दी की समकालीन कविता के चर्चित कवि कुमार अंबुज ने कहा कि संगोष्ठी का विषय वर्तमान समय की दृष्टि से बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि केरल जैसे गैर हिन्दी प्रान्त में हिन्दी के प्रति इतना लगाव और इतनी उत्सुकता का होना निश्चय ही सन्तोषजनक है। उद्घाटन समारोह में प्रोफ. मधु इरवन्करा, डा. स्वामीनाथन, प्रोफ. कल्पना आदि विभिन्न ख्याति नाम विषय विशेषज्ञों ने शिरकत की।


संगोष्ठी के प्रथम सत्र में ‘कविता में समकालीन विमर्श’ शीर्षक विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि कुमार अंबुज ने कहा कि आन्दोलन और विमर्श में घनिष्ठ संबन्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि समकालीन कविता में उन तमाम विषयों का चित्रण हुआ है, जो एक आम आदमी को उद्वेलित करते हैं। उन्होंने यह भी सूचित किया कि समकालीन विमर्श से मैं यह समझता हूँ कि जिस समय हम जीवित रहे हैं, उस समय जितने ही विमर्श हमारे सामने उपस्थित हैं, वे सब कविता में भी मौजूद हैं। शिक्षा का निजीकरण, विस्थापन की समस्या, स्त्री विमर्श, बाज़ारीकरण आदि पर भी उन्होंने अपने विचार प्रकट किए हैं। सामाजिक यथार्थ और समकालीनता के संबन्ध को स्पष्ट करते हुए आगे उन्होंने कहा कि समकालीनता काल को पार करती चली आ रही है। इस सत्र में डॉ. मरियाम्मा वी. वर्गीस, प्रोफ. स्मिता चाक्को, डॉ. रॉय जोसफ़, डॉ. मैथ्यू एब्राहम, डॉ. शीला जी. नायर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।  



दूसरे सत्र में युवा आलोचक और बनास के सम्पादक डॉ. पल्लव ने ‘हिन्दी कहानी की नई पीढ़ी और समकालीन सच’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आज हिन्दी में जो कहानी लिखी जा रही है, वह जीवन और परिवेश के सारे अन्तर्विरोधों को पकड़ने वाली है। उन्होंने नए दौर के अनेक कहानीकारों का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि समकालीन सच भूमण्डलीकरण और बाज़ारीकरण से भी जुडा हुआ है। डॉ. शीना ईप्पन, श्रीमती दिनीमोल एन. डी., श्री राजेशकुमार, श्रीमती जयश्री, प्रोफ. अमृता सूसन आदि ने समकालीन साहित्य के विभिन्न विषयों पर आलेख प्रस्तुत किए। 



संगोष्ठी के दूसरे दिन के प्रथम सत्र की शुरुआत कवि कुमार अंबुज के साथ शोधार्थियों एवं छात्रों के संवाद से हुई। तदनन्तर कुमार अंबुज ने ‘कविता की वैश्विक संस्कृति’ शीर्षक विषय पर भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में यह व्यक्त किया कि वैश्विक संस्कृति की सबसे बड़ी आपत्ति वैश्विक अपसंस्कृति है। दूसरे सत्र में ‘इक्कीसवीं सदी के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी उपन्यास’ विषय पर डॉ. पल्लव ने व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने भाषण में यह बात सूचित की है कि कथा साहित्य की पहली कसौटी पठनीयता है। डॉ. मिनी जॉर्ज, डॉ. मेरी वर्गीस, डॉ. ब्रिजीट पॉल, डॉ. जस्टी इम्मानुवेल, डॉ. बिनु वी., आदि ने भी अपने विचार प्रकट किये। तीसरे सत्र में ‘आज की हिन्दी कविता और आलोचना का संकट’ शीर्षक विषय पर मुख्य व्याख्यान देते हुए डॉ. बाबू जोसफ़ ने बताया कि आज आलोचना का समकालीन संकट मात्र एक साहित्यिक विधा का संकट नहीं है, साहित्य की सभी विधाएँ आज संकट से गुज़र रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी के अनेक युवा समीक्षक आलोचना में जनपक्षरता का माहौल निर्मित कर रहे हैं, जो अवश्य ही सराहनीय है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी थी कि खराब आलोचना खराब रचना से भी ज्यादा खतरनाक है। डॉ. सुधर्मा, डॉ. ए.एस. सुमेष, सुश्री प्रीती मोहन, डॉ. जानसी थोमस आदि ने भी चर्चा में अपने विचार प्रकट किए हैं।



संगोष्ठी के तीसरे दिन के प्रथम सत्र में डॉ. आर. जयचन्द्रन ने ‘उत्तराधुनिक विमर्श’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होने कहा कि हर काल में उत्तराधुनिकता है, जो केवल आधुनिकता का विकास मात्र नहीं, बल्कि हमारी पूरी जीवन शैली के परिवर्तन की उपज है। दूसरे सत्र में उन्होंने ‘पाश्चात्य साहित्य चिंतन’ विषय पर भाषण दिया। नियो क्रिटिसिसम, विखंडनवाद आदि पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि सारे साहित्य चिंतन के पीछे मनोवैज्ञानिक विश्लेषण मौजूद है। सुश्री श्यामा, श्री. अरुणकुमार(जयपुर), श्री. अनिलकुमार, सुश्री. आशाकुमारी, सुश्री. प्रीति के कारणवर, श्री. तनसीर, डॉ. एलसी, प्रोफ. चेल्लम्मा, सुश्री. आशा, सुश्री. कला आदि के साथ अनेक शिक्षक एवं छात्र-छात्राएँ भी उपस्थित रहे।



संगोष्ठी का समापन समारोह दुपहर को आयोजित किया गया। कैथोलिकेट कालेज की प्राचार्या डॉ. साराम्मा वर्गीस की अध्यक्षता में समारोह शुरु हुआ। माननीय संसद सदस्य श्री. एन्टो एन्टनी ने इस समारोह का उद्घाटन किया। उन्होंने अपने भाषण में केरल के स्कूल –कालेजों में हिन्दी भाषा के पठन-पाठन की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला। प्रोफ. जेकब के मैथ्यू, डॉ. मेरी वर्गीस, डॉ. शीला जी नायर, डॉ. जार्ज वर्गीस आदि ने भी भाषण दिया। पूरे कार्यक्रम की सफलता हेतु सभी भागीदारों ने एक स्वर में संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. मेरी वर्गीस को बधाईयाँ दीं।

                              प्रस्तुति पी एन. राजेशकुमार, शोध छात्र 

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