वियोगी बाबा रामदेव


 
 
वियोगी बाबा रामदेव
- राजकिशोर

बाबाओं के प्रति मेंरे मन में शुरू से ही श्रद्धा रही है। सच तो यह है कि मैं बचपन में खुद भी बाबा बनना चाहता था। उन दिनों बाबा-सम्राट रजनीश की बहुत धूम थी। मैंने देखा कि हर्रे-फिटकरी लगे बिना भी रंग कितना चोखा आ सकता है। पार्ट-टाइम काम मुझे बहुत पसंद हैं। नौकरी की नौकरी, आजादी की आजादी। बाबावाद में इसकी पूरी गुंजायश दिखती थी। सुबह या शाम दो घंटे भाषण दो, बाकी समय मस्त रहो। अपनी एक कमी के कारण मैं इस धंधे में जाते-जाते बचा। कमी यह थी कि मैं बहुत कम उम्र में एक समाजवादी के असर में आ चुका था। रोज झूठ बोलने का पेशा अपनाने की हिम्मत नहीं हुई।
 
 
इसलिए जब भी टीवी के रंगीन परदे पर बाबा रामदेव को देखता हूँ, तो उनके प्रति सहज ही श्रद्धा उमड़ आती है। सबसे बड़ा कमाल यह है कि उन्होंने योग को देश भर में चर्चा का विषय बना दिया है। हर कोई जानता है कि भारत वियोग का नहीं, योग का देश रहा है। सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती ... अहा, कितनी सुंदर जोड़ियाँ हैं। पूजा बजरंगबली की भी होती है, पर अपने कारण नहीं, उस युगल-मूर्ति के कारण जिसकी सेवा में उन्होंने अपनी जवानी होम कर दी। पंत जी ने (आज की पीढ़ी के लिए : गोविंद वल्लभ पंत नहीं, सुमित्रानंदन पंत) ने कहा, वियोगी होगा पहला कवि....। यह कविता वियोग की नहीं, योग को महत्व देने की कविता है। जब दो जन मिलते हैं, तब अपने आप कविता पैदा हो जाती है। वियोग में वह सिर्फ लिखी जाती है।
 
 
योग का असीम महत्व जानते हुए भी पता नहीं क्यों बाबा रामदेव समलैंगिकों को वियोग की स्थिति में देखना चाहते हैं। पहले समाजवाद के और बाद में बाबा रामदेव के प्रभाव से मैं यह मानने लगा था कि मनुष्य-मनुष्य सब एक हैं। क्या स्त्री, क्या पुरुष। दोनों को ही भगवान ने बनाया है। इनमें भेद हो सकता है, विभेद नहीं। इसलिए पुरुष-स्त्री साथ रहें, जैसा कि वे रहते आए हैं, या पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री, इससे क्या फर्क पड़ता है। साथ ही रहते हैं, एक-दूसरे के साथ थुक्का-फजीहत तो नहीं करते। आपस में प्यार ही तो करते हैं, लड़ते-झगड़ते तो नहीं। फिर समलैंगिकों को आशीर्वाद देने के पहले बाबा उनके खिलाफ अदालत जाने की क्यों सोच रहे हैं, समझ में नहीं आता।

 
बाबा को क्या यह पता नहीं कि अदालत में सत्य का परीक्षण नहीं हो सकता? अदालत का सत्य जो भी हो, वह क्षणिक होता है। भारत की एक अदालत ने भगत सिंह को फाँसी पर चढ़वा दिया था। आज उस अदालत के जज दिखाई पड़ जाएँ, तो जनता उन्हें मार-मार कर भरता बना देगी। विदेश की दर्जनों अदालतों ने ‘लेडी चैटर्ली’ज लवर’ को अश्लील करार दिया था। लोग छिप-छिप कर इस किताब को पढ़ते थे। फिर वह अदालत आई जिसने कहा कि इस उपन्यास में कहीं भी अश्लीलता नहीं है। इसलिए मैं तो ईश्वर की अदालत को छोड़ कर और किसी अदालत में विश्वास नहीं करता। मैं समझता था कि बाबा रामदेव भी ईश्वरवादी हैं। इसलिए यह देख कर बड़ी हैरत हुई कि वे ईश्वर से ज्यादा वेतनभोगी जजों पर भरोसा करते हैं। क्या जजों में भी समलैंगिकता नहीं हो सकती ?

 
बाबा रामदेव का कहना है, समलैंगिक संबंध अप्राकृतिक है। बाबा अपनी जिम्मेदारी पर ऐसा कहते हैं तो होगा। पर इस दुनिया में सर्वज्ञ कौन है? अंतिम तौर पर यह जानने का दावा कौन कर सकता है कि क्या प्राकृतिक है और क्या सांस्कृतिक। विद्वान लोग बताते हैं कि जो सांस्कृतिक है, वह प्राकृतिक भी है। यदि मानव प्रकृति में सांस्कृतिक होने की स्वाभाविक चाह न होती, तो संस्कृति का इतना बड़ा ताना-बाना कैसे खड़ा होता? फिर मानव अपनी गलतियों से सीखता भी है। सौ साल पहले तक राजशाही प्राकृतिक लगती थी। आज लोकशाही ही प्राकृतिक लगती है। आज जो राजशाही का समर्थन करेगा, उसे पागल करार दिया जाएगा।


इसी तरह, हो सकता है, आज समलैंगिकता ऊटपटांग चीज लगती हो, पर कल यही स्वाभाविक लगने लगे। स्त्रियों के जोड़े एक तरफ, पुरुषों के जोड़े एक तरफ। अभी भी धार्मिक सत्संग में, क्लबों में, शादी-ब्याह के मौकों पर क्या स्त्री-पुरुष अलग-अलग नहीं बैठते? विषमलैंगिकता को आग और फूस के साथ की तरह खतरनाक माना जाता है। इससे बेहतर है कि आग आग के साथ रहे और फूस फूस के साथ। या आग में फूस के गुण पैदा हो जाएँ और फूस में आग के। फिर, कौन किसके साथ घर बसाता है, इससे पड़ोसियों को क्या मतलब? दूसरों के बेडरूम में झाँकना  शिष्टाचार के विरुद्ध है। सोच रहा हूँ, बाबा से जल्द ही मिलूँ और उनसे पूछूँ कि योग अच्छा है या वियोग। 
 
०००


13 टिप्‍पणियां:

  1. @राजकिशोर जी जब ऊपर वाला ही सब decide करेगा तो फिर आपको हमको लिखने - टिप्पीयाने की जरुरत ही क्या है? खुलेआम कॉलेज के सामने भी शराब की दूकान और वस्यालय चलने दीजिये जिसकी जो मर्जी होगी स्वच्छंद विचरण करे ... जो decide करेगा उपरवाले के हाथ, क्यूँ?

    आपने ये भी लिखा है की बाबा बन के २-२ घंटे भासन देते और मजे करते | तो राज किशोर जी रोज भासन देकर लोगों को बाँध के रखना क्या कोई खेल है | और यदि खेल है तो आप भी आजमा के देख लीजिये ... कित्ते लोग कितने देर झेल पाते हैं इसका भी टेस्ट हो जाएगा ...

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  2. चलिए समाजवाद तो भारत की मुख्यधारा से चला गया, अब किस बात की परेशानी है? आ ही जाइए नए भारत के आध्यात्म शिरोमणि बन कर.... बस दो घंटे सुबह शाम का तो केवल मुँह चलाने का तो काम है! आप तो माशाअल्लाह उनसे कहीं अधिक अच्छी पब्लिक स्पीकिंग कर सकते हैं .

    असल में जिनमे लोगों को एक मिनट भी बाँधे रहने की क्षमता नहीं होती वही वक्ताओं को झूठा करार देते हैं. रजनीश को तो आज भी बुद्धिजीवी और युवा पढ़ते हैं. और रामदेव के टायलेट क्लीनर अभियान के बाद ही कोक और पेप्सी को कार्बोनेटेड पेयों की बिक्री कम होने के कारण रणनीति बदल कर हैल्थ फुड और ड्रिंक मार्केट मे उतरना पड़ा. आज पहले से कहीं कम भारतीय कार्बोनेटेड ड्रिंक्स पर पैसा फैंकते हैं, इसका कुछ श्रेय तो रामदेव को दिया ही जा सकता है.


    असल मे आपके लिए एक ही शब्द है........ जलनखोर या ईर्ष्यालु. और आपकी ईर्ष्या के पात्र वे हैं जिनके सामने आप योग्यता या कौशल मे बाल बारबर भी नहीं ठहरते. एक ग़रीब अहीरन एक महारानी के वैभव से ईर्ष्या करके क्या उखाड़ लेगी?

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  3. ईमेल द्वारा प्राप्त प्रतिक्रिया
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    रोचक तरीके से गम्भीर विषय पर तर्कपूर्ण चिन्तन .....


    अनूप भार्गव

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  4. ईमेल द्वारा प्राप्त प्रतिक्रया
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    आ० कविता जी,

    आपने श्री राजकिशोर जी का " वियोगी बाबा रामदेव " शीर्षक आलेख जो प्रकाशित किया है मुझे अति निम्नस्तर का और घटिया लगा | एक तो ` वियोगी ` का विशेषण बाबा रामदेव जी के लिये कहीं भी सही नहीं बैठता दूसरे सम्पूर्ण आलेख अनर्गल प्रलाप और पूर्वाग्रह ग्रस्त है | समलैंगिगता को किसी भी देश के समाज ने स्वीकार नहीं किया है |

    भारत में एक अदालत द्वारा इसके पक्ष में कोई फैसला भले रहा हो पर भारतीय समाज इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था को कभी स्वीकार नहीं करेगा | लेखक भले समाजवादी ( पार्टी ) के हों पर उनकी सोच अवश्य असमाजवादी है | समलैंगिगकता कीअवधारणा भारतीय सभ्यता और संस्कृति से मेल नहीं खाती और मेरा अनुमान है कि समूह का
    लेखक मंडल ऐसे अतिवादी और दुर्भावनापूर्ण लेखन को स्वीकार नहीं करेगा |
    कमल

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  5. ईमेल द्वारा प्राप्त प्रतिक्रया
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    योग अच्छा है या वियोग। राजकिशोर जी! मैं भी यह जानने के लिए आपके साथ बाबा से मिलने चलूंगा।

    अनिल जनविजय

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  6. ईमेल द्वारा प्राप्त राय
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    I agree with Shri Kamal Ji/ Shri SN Sharma Ji.

    Dhayavaad

    Dinesh Arya

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  7. ईमेल द्वारा प्राप्त राय
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    बहुत ही घटिया और बचकाना। निराशा हुई, अपने ग्रुप में ऐसे लेख देखकर।

    dr. smt. ajit gupta
    7 charak marg udaipur
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    visit my blog - ajit09.blogspot. com

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  8. कलम तो चल ही गई।
    लेख बचकाना हो या गम्भीर।
    आपने भी पढ़ लिया।
    हमने भी पड़ लिया और टिप्पणी भी दे दी है।

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  9. शायद राजकिशोरजी की कलम व्यंग्य लिखते-लिखते बहक गई है:)

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  10. kayi pehloo hain; ek ek karke kahoonga. baba ramdev akele aise baba hain jinhone dharm ya shastradi ki bhoolbhulayyan men na pdkar seedhe seedhe yog dwara tan va man ko swasth banaane par zor diya. cold drinks ke khilaaf unki morchebandi ne mnc ke chhake chhuda diye. homosexuality par unki tippani bharatiya maryadaon ke swaroop hai. ye sach hai ki ye vikriti hamaare samaaj men hamesha se rahi hai lekin ise samanya kabhi nahin mana gaya. kuchh deshon men ise sweekar kiya gaya hai, lekin unkee nakal kar ke aap kya saabit karenge? aur haan, prakritik kya hai? kisi sundar vastu ko dekhkat aakarshit hona, phir paane ki ichchha hona prakritik to hai lekin maanya nahin. western cultures men bahut kuchh achchha hai; khojiye aur apanaane ki himmat keejiye. vaqt ki paabandi, kartavya ke prati lagan, rashtrabhakti, eemandari, mehnat,... aapne likha ki aap samaajvadi hain, hamesha sach bolte hain; mere khayal se, sahee bolana zyada zaroori hai. banda ek aam aadmi hai, aam tareeke se sochata hai; bura na maniyega, maine apna khayal zaahir kar diya, bas.

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  11. मुझे पता नहीं था कि बाबा रामदेव से लगाव इतना व्यापक और गहरा है। खैर, पता होता, तब भी मैं यही लिखता। शायद इससे कुछ और कड़ा।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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