वह झुकें ना झुकें तुम सर झुकाते चलो.....




प्रभाष जोशी के लेख " अपने आप से पूछिए" पर एक प्रतिक्रिया

- कमल




शायद भारतीयों को एकता नाम से ही चिढ़ है | भोगोलिक, जातीय , भाषाई और कबीलाई बंटवारों के आन्दोलन हर प्रदेश में मुखर हैं, पर नेता प्रकट में एकता की दुहाई दे रहे हैं | हर प्रदेश सरकार स्वायत्तता चाहती है | इसमें संदेह है की भारत नाम की कोई चीज़ बचेगी भी ? चीन, अमरीका, पाकिस्तान तो पृथकतावादियों की मदद भर कर रहे हैं | अकेले चीन का क्या दोष अगर देश की मीडिया ही देश का हिस्सा नक्शों में देश के बाहर दिखाना शुरू कर दे |






प्रभाष जोशी जी का आलेख पढ़ा |

भारत के कई टुकड़े करने के नेक काम में चीन ही क्या स्वयं भारत सरकार और सभी अन्य राजनीतिक पार्टियाँ जुटी हैं | किसी भी देश के समाज को अगर टुकडों में बाँट दिया जाय तो राष्ट्र के टुकड़े होने में क्या देर लगती है ? समाज के टुकड़े करने वालों के हीरो पू० प्रधान मंत्री वी० पी० सिंह तो चले गए | खुद रोगी बने पर समाज को ऐसा रोग लगा गए जो खाज में कोढ़ कि तरह फैलता जा रहा है | भारत वास्तव में कई टुकडों में बाँट चुका है | महाराष्ट्र मराठो का, बंगाल बंगालियों का, तमिलनाडु तमिलों का और कश्मीर मुसलमानों का आदि आदि | असम, मणिपुर, मिजोरम आदि इसी प्रकार राष्ट्र से कटे हुए हैं | बंगलादेशी मुसलमानों को असम में बसा कर अगर बांग्लादेश के माध्यम से चीन भारत को ब्रह्मपुत्र के पश्चिमी तट तक फेंकने का षड़यंत्र कर रहा है तो भारत सरकार को क्या आपत्ति है | भारत-चीन भाई भाई, हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई | देश बाँटना काँग्रेस कि पुरानी परंपरा है | देश का शेष भाग जातीय प्रांतीय टुकडों में बँटा है | सरकार क्या कोई भी राजनैतिक दल इन टुकडों को बटोर कर एक राष्ट्र बनाने में समर्थ नहीं| सब अपने स्वार्थ के लिए टुकड़े करो और राज करो ( Divide and rule ) की नीति पर चल रहे हैं | जो प्रक्रिया जिन्ना और काँग्रेस ने भारत का बँटवारा करके आरम्भ की थी, वह जारी है |



अपनी एकता खोने के बाद हम अब ऐसे अंतर्राष्ट्रीय भँवर में पड़ चुके हैं जहाँ पड़ोसियों के कुचक्रों से छुटकारा संभव नहीं रहा | अगर सरदार पटेल की चली होती तो आज कश्मीर समस्या न होती | यह समस्या तो तत्कालीन प्रधान-मंत्री की देन है | आगे के प्रधान-मंत्री चाहे भा० ज० पा० के हों चाहे कांग्रेस के किसी न किसी रूप में बँटवारे की राजनीति का ही पालन कर रहे हैं | भला हुआ जो भाजपा के हाथ सत्ता नहीं गई। दोनों ही जिन्ना के पदचिन्हों पर चल कर सहर्ष देश बाँट देते | अब काँग्रेस वही काम अप्रत्यक्ष रूप से कर रही है फर्क इतना ही की उसने इसका नाम बदल कर जिन्नावाद की जगह अल्पसंख्यकवाद कर दिया है |
अगर सरदार पटेल की चली होती तो आज कश्मीर समस्या न होती | यह समस्या तो तत्कालीन प्रधान-मंत्री की देन है | आगे के प्रधान-मंत्री चाहे भा० ज० पा० के हों चाहे कांग्रेस के किसी न किसी रूप में बँटवारे की राजनीति का ही पालन कर रहे हैं | भला हुआ जो भाजपा के हाथ सत्ता नहीं गई। दोनों ही जिन्ना के पदचिन्हों पर चल कर सहर्ष देश बाँट देते | अब काँग्रेस वही काम अप्रत्यक्ष रूप से कर रही है फर्क इतना ही की उसने इसका नाम बदल कर जिन्नावाद की जगह अल्पसंख्यकवाद कर दिया है |



शायद भारतीयों को एकता नाम से ही चिढ़ है | भोगोलिक, जातीय , भाषाई और कबीलाई बंटवारों के आन्दोलन हर प्रदेश में मुखर हैं, पर नेता प्रकट में एकता की दुहाई दे रहे हैं | हर प्रदेश सरकार स्वायत्तता चाहती है | इसमें संदेह है कि भारत नाम की कोई चीज़ बचेगी भी ? चीन, अमरीका, पाकिस्तान तो पृथकतावादियों की मददभर कर रहे हैं | अकेले चीन का क्या दोष अगर देश की मीडिया ही देश का हिस्सा नक्शों में देश के बाहर दिखाना शुरू कर दे |



अगर नेहरु जी कश्मीर विभाजन रेखा पर संयुक्त राष्ट्र में अपनी मुहर लगा आये है तो मनमोहन सिंह ने बिलोचिस्तान की समस्या में भारत को लपेटने का वादा कर दिया तो क्या बुरा किया ? अमरीका और पाकिस्तान के अनुसार अगर हम कश्मीर उन्हें सौंप दें तो विश्व में तालिबान और अलकायदा आतंकवाद की समस्या ही हल हो जाय | साथ ही अगर अपने यहाँ अमरीकी सैनिक अड्डे भी बनवा दें तो चीन के खतरे की समस्या भी हल हो जाय | |विश्व-शांति के ऐसे समाधान में कांग्रेस माहिर है | आखिर पाकिस्तान कश्मीर ही तो मांग रहा है, पंजाब या तमिलनाडु तो नहीं ?



अब अमरीका के होनहार राष्ट्रपति बिचारे ओबामा की समझ में पाकिस्तान और तालिबान/अलकायदा की नूरां कुश्ती समझ में नहीं आरही है तो भारत को क्या पड़ी है कि दोनों से मोर्चा ले | बातचीत के नाटक से काम चल जायगा | डींगें तो हम बड़ी बड़ी मार लेंगे पर लड़ने को सीमा पर फौजें भेज कर फिर वापस लौटा लाना और कुछ जीता है तो वापस कर देना हमें बखूबी आता है | सरकार के अनुसार अपनी भलाई इसी में है कि अकड़ते रहो फिर मोम कि तरह पिघल कर हर छूट देते रहो और माँगें मानते रहो, देश के टुकडें हों तो हुआ करें | आपकी सत्ता को ललकारने की स्थिति में कोई दल नहीं तो हर तरह का समझौता कर लेने की आपको पूरी छूट है |


"वह झुकें ना झुकें तुम सर झुकाते चलो दिल मिले ना मिले हाथ तो मिलते चलो "



3 टिप्‍पणियां:

  1. चिंताजनक स्थिति है अगर सरकार यूं ही कबूतर बन बैठी रही तो

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  2. जब तक नेता वोट की राजनीति करते रहेंगे, देश को विभाजन का खतरा तो रहेगा ही...कभी भाषा के नाम, मज़हब के नाम, जाति के नाम, लिंग के नाम......जितने चाहो विभाजन कर लो और राज करो!!!

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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