प्रवासी साहित्य की परिभाषा क्या होनी चाहिए?




प्रवासी साहित्य की परिभाषा? भाषा?
क्षेत्र? सरोकार? ...?



मित्रो एवं साथियो !



अभी दिन पूर्व प्रो. कृष्णकुमार जी (यूके) ने अपने एक ईमेल सन्देश में बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है, बल्कि कहना चाहिए कि विचार करने की आवश्यकता बताई है. उन्होंने "प्रवासी हिन्दी साहित्य" की परिभाषा पर अपने विचार लिख भेजने, एक परिचर्चा आयोजित करने की आवश्यकता व इच्छा प्रकट की है । परस्पर विचार करने के लिए आप सभी अपने अपने मत को देवनागरी में टंकित कर भेजें ताकि आलेखात्मक विचारों को समूह से इतर पाठकों के लिए उपलब्ध करवाने की दृष्टि से पुन: समूह के ब्लॊग पर भी प्रकाशित किया जा सके।

प्रो. कृष्ण कुमार जी ने लिखा है कि -

" एक व्यापक परिभाषा की जरूरत है।

१) क्या जब तक प्रवासी रचनाओं में रचनाकार के स्थान के सरोकार न हों, तब तक वह प्रवासी साहित्य नहीं होगा?

२) क्या प्रवासी हिन्दी को तथाकथित मानक हिन्दी ही होना चाहिए ? या फिर जन-जन की हिन्दी?"

उन्होंने एक अन्य सन्देश में थोड़ा और स्पष्ट करते हुए यह प्रश्न भी उठाया है कि-

‘विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा भारत की आँचलिक बोलियों में लिखे गए साहित्य को क्या इसकी परिधि में रखा जाना चाहिए या उसे इसकी परिधि से निष्कासित रखा जाए?’


मैं आप सभी से प्रो. कृष्णकुमार जी द्वारा आहूत विषय पर अपने विचार प्रकट करने का आग्रह करती हूँ, कि कृपया उपर्युक्त बिन्दुओं को पढ़ें व हम से अपना मत बाँटें कि क्षेत्र, भाषा, सरोकार या कुछ अन्य वे तत्व क्या हैं, जो हिन्दी के प्रवासी साहित्य को परिभाषित कर सकते हैं।

आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।


- कविता वाचक्नवी


पुनश्च-
इस सन्देश के जो पाठक हिन्दीभारत समूह के सदस्य नहीं हैं, वे सीधे मेरे आईडी पर( साईडबार में एकदम ऊपर बने contact me द्वारा ) भी अपने विचार लिख कर भेज सकते हैं, उनके आलेखात्मक विचारों को भी प्रकाशित किया जाएगा व चर्चा समूह पर सभी को पठनार्थ अग्रेषित किया जाएगा।
.वा.
Thursday, 2 April, 2009, 6:35 PM





From: Prof. Dr Krishna Kumar <.........>



Dear Kavita Jee
pata naheeN kyoN Hindi meiN type naheeN ho rahaa hai. Kyaa aap ek charcha praarambh karaa saktee haiN. pravasi Hindi Saahitya kee paribhaashaa kyaa honee chaahiye. Ek vyaapak definition kee zaroorat hai. Kyaa jab tak pravasi rachnaaoN meiN rachnaakar ke sthaan ke sarokaar naa hoN tab tak woh pravasi saahitya naheeN hogaa. Kyaa pravasi Hindi ko tathaa kathit Maanak Hindi hee honaa chaahiye yaa phir jan-jan kee Hindi. Time has come to look at it more seriously and academically.
with regards.
Krishna

5 टिप्‍पणियां:

  1. कविता जी, मेरे मत से प्रवासी साहित्य वही होता है जो भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति के भारत की भूमि से बाहर रह कर
    रचा गया साहित्य है - उसमेँ भाषा की विविधता भी शामिल होगी जैसे अवधी ब्र्जभाषा तथा अन्य आँचलिक भाषाएँ -
    जैसा जीफी, गियाना, मोरेशीयसि इत्यादी के साहित्यकारोँ ने रचा -
    मैँ खुद "प्रवासी भारतीय " ही कहलाऊँगी -
    - लावण्या

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  2. सामयिक और उपयोगी चर्चा आरम्भ करके अपने बहुत अच्छा किया.

    इस विषय क्षेत्र से जुड़े और इस पर चिंतन करने वाले विद्वानों के विचारों से परिचित होने का अवसर मिलेगा इस बहाने.

    >ऋ.

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  3. कविता जी!
    प्रवासी भारतीय लोगों को यदि हिन्दी का प्रचार-प्रसार विदेशों में करने के लिए हिन्दी के मानको को ही अपनाना चाहिए। तभी हिन्दी जन-जन की भाषा के रूप में स्थापित हो सकेगी।

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  4. कृष्‍ण कुमार जी ने दो प्रश्‍न उठाए हैं। जो भारतीय विदेशों में रहकर साहित्‍य साधना कर रहे हैं, उनका दर्द उन्‍होंने सांझा करने का प्रयास किया है। लेकिन यहाँ दो शब्‍द निकलकर आते हैं एक प्रवासी साहित्‍य और दूसरा प्रवासी साहित्‍यकार।
    प्रवासी साहित्‍य से अर्थ जब भी लिया जाएगा तब स्‍थान विशेष का महत्‍व होगा। यदि भारत का कोई भी व्‍यक्ति विदेश प्रवास के दौरान लिखे गए अपने अनुभव को प्रवासी साहित्‍य के अन्‍तर्गत रखेगा? शायद नहीं। लेकिन जो लोग विदेश में बरसों से रह रहें हैं और उस स्‍थान के बारे में, वहाँ की संस्‍कृति के बारे में लिखते हैं तब वह प्रवासी साहित्‍य होना चाहिए। या फिर ऐसे प्रवासी साहित्‍यकार भारत के प्रति अपना लेखन तुलनात्‍मक अध्‍ययन के साथ लिखते हैं तब भी वह प्रवासी साहित्‍य के अन्‍तर्गत आना चाहिए। नहीं तो प्रवासी साहित्‍यकार की श्रेणी में ही वे सब लोग रहने चाहिए जो विदेश में साहित्‍य साधना कर रहे हैं।
    वैसे भी साहित्‍य सभी के हित के लिए होता है, इसे श्रेणीबद्ध करना शिक्षाविदों का तो कार्य हो सकता है लेकिन साहित्‍यकारों का नहीं।
    दूसरा प्रश्‍न भाषा को लेकर है। साहित्‍य की कोई भाषा नहीं होती। यह प्रश्‍न भी शिक्षाविदों के लिए ही है। श्रेष्‍ठ विचार शैली किसी भी भाषा में लिखी गयी हो साहित्‍य ही कहलाएगी। हाँ उसे सभी को पढ़ने के लिए उपलब्‍ध कराने के लिए अनुवादक हैं न।
    एक अन्‍य प्रश्‍न मुझसे भी किया गया था जब मैंने अकादमी में अन्‍तरराष्‍ट्रीय सम्‍मान की पहल की थी। तब मुझसे एक वरिष्‍ठ साहित्‍यकार ने पूछा था कि अन्‍तरराष्‍ट्रीय की परिभाषा क्‍या है? एक प्रवासी साहित्‍यकार कैसे अन्‍तरराष्‍ट्रीय बन सकता है? अन्‍तरराष्‍ट्रीय तो वह होगा जिसे सम्‍पूर्ण विश्‍व में पहचान मिले।
    इसलिए प्रश्‍न कई हैं, ये सारे ही प्रश्‍न शिक्षाविदों के लिए हैं, हम साहित्‍यकारों के लिए नहीं।

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  5. यहाँ प्रश्न उठाया गया है प्रवासीहिंदी साहित्य किसे कहें? इससे जुडे कई और प्रश्न भी उठाए गए हैं जिनका मन्थन करने की आवश्यकता है। प्रवासी किसे कहेंगे - वे जो विदेशों में है या विदेशों मे रह कर भारत लौट आए हैं...साहित्य किसे कहेंगे..प्रवासियों के संस्मरण या ऐसा लेखन जो कहानी, कविता, आलेख में ढल गए हैं...हिन्दी जो मानक है या देशज स्थानीय भाषा में लिखी गई जैसे हमारे कई पडोसी देशों में लिखी जा रही रचनाएं।
    इन सब का विभागीकरण करके देखें तो मूलतः हम उसे ही प्रवासी हिंदी साहित्य कहेंगे जो प्रवासी भारतीय नागरी में लिख रहे हैं..भले ही उनकी भाषा मानक हिंदी न हो पर हिंदी के पाठक उसे समझ सकते हों।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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