काफी संतुलित आलेख है यह. लेकिन उसके साथ साथ यह लेख कुछ बातों को नजरअंदाज भी कर जाता है:
हिन्दुस्तान में जब "काम" को महिमा दी जाती है तो वह भारत के लिये सर्वथा उपयुक्त एक "धार्मिक-नैतिक" सोच की पृष्ठभूमि में दी जाती है. इसके विपरीत पश्चिम "काम" को नैतिकता से परे रखकर सोचता है.
इस कारण बाह्य तौर पर साम्य होते हुए भी मूल तत्व एक नहीं है. फलस्वरूप दोनों फलसफों का अंतिम असर भी एक जैसा नहीं होता है.
मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी कही बात को मन में रख कर आप इस विषय का पुनर्मूल्यांकन करेंगी.
बौद्दिक विषयों पर आपको पढना हमेशा एक सुखद अनुभव रहता है!!
अच्छी रचना -सही परिप्रेक्ष्यों को रखती हुयी !
जवाब देंहटाएंकाफी संतुलित आलेख है यह. लेकिन उसके साथ साथ यह लेख कुछ बातों को नजरअंदाज भी कर जाता है:
जवाब देंहटाएंहिन्दुस्तान में जब "काम" को महिमा दी जाती है तो वह भारत के लिये सर्वथा उपयुक्त एक "धार्मिक-नैतिक" सोच की पृष्ठभूमि में दी जाती है. इसके विपरीत पश्चिम "काम" को नैतिकता से परे रखकर सोचता है.
इस कारण बाह्य तौर पर साम्य होते हुए भी मूल तत्व एक नहीं है. फलस्वरूप दोनों फलसफों का अंतिम असर भी एक जैसा नहीं होता है.
मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी कही बात को मन में रख कर आप इस विषय का पुनर्मूल्यांकन करेंगी.
बौद्दिक विषयों पर आपको पढना हमेशा एक सुखद अनुभव रहता है!!
सस्नेह -- शास्त्री
निश्चित तौर पर एक सुन्दर आलेख.
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