मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ. देवराज (१५)

मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ. देवराज

नवजागरणकालीन मणिपुरी कविता- १५
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नवजागरण का पहला बिगुल बजाया था हिजम इरावत सिंह ने ‘मितै चनु’ पत्रिका के माध्यम से । राज परिवार के इस विद्रोही नेता के बारे में डॉ. देवराजजी विस्तार से बताते हैं:

"परिवर्तन के उसी दौर में सामन्ती प्रभाव वाली सामाजिक और राजनीतिक-व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह उठ खडा हुआ। यह झंडा हिजम इरावत सिंह ने उठाया। उनका जन्म ३० सितम्बर, १८९६ को इम्फ़ाल में हुआ था। वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे, अतः जैसे-जैसे बडे़ हुए उनके मन में अपने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा बलवती होती गई। सन१९२४ में उन्होंने कोलकाता में महात्मा गांधी के जेल से छूटने के अवसर पर आयोजित एक विशाल जनसभा में भाग लिया। वहीं उन्हें अपने लिए कार्य-दिशा निर्धारित करने की प्रेरणा मिली। सन १९२७ में जब उन्हें मणिपुर के महाराजा द्वारा मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गय़ा तो उन्होंने ‘फ़्यूडल-सिस्टम’ का विरोध करने का निश्चय किया। हिजम इरावत केवल राज्य के अधिकारी ही नहीं थे, बल्कि उनका विवाह भी चूडा़चाँद महाराजा की भतीजी से हुआ था। फ़िर भी उन्होंने लोगों से मिलकर उनकी वास्तविक समस्याओं को समझना और सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए कार्य करना शुरू किया। उन्होंने ३० मई १९३४ को ‘निखिल हिंदू मणिपुरी महासभा’ का गठन किया और तत्कालीन महाराजा के नियन्त्रण में संचालित प्रतिक्रियावादी धार्मिक संस्था ‘ब्रह्म सभा’ की कार्य पद्धति का विरोध किया। मणिपुर इतिहास में यह पहला अवसर था जब राजा की निर्विरोध सत्ता को सफ़लतापूर्वक चुनौती दी गई। यह एक प्रकार से सामन्तवाद के टूटने और मणिपुरी समाज के नई खुली हवा में सांसें लेने की घोषणा थी।"


"उस काल के स्वरूप का निर्धारण करने में बंगला, संस्कृत, मैथिली, असमिया आदि भाषाओं से मणिपुर के सम्पर्क की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। इसी के साथ विद्यापति, जयदेव, बंकिम, शरत,रवीन्द्र का साहित्य भी यहां पहुंचा। बीसवीं सदी के प्रारम्भिक दशकों में मणिपुरी जीवन में जो नवजागरण आया, उसकी पृष्ठभूमि विशाल, व्यापक, जटिल और विविधवर्णी थी। साधारणतः यह विश्वास किया जाता है कि नवजागरण अंग्रेज़ी शिक्षा, साहित्य और पश्चिमी [विशेषत: यूरोपीय] समाज से मुक्त-संपर्क की सुविधा के फ़लस्वरूप प्रस्फुटित हुआ, किन्तु इस विश्वास को नवजागरण का एकमात्र आधार मान लेना बहुत बडा़ भ्रम है। नवजागरण के संदर्भ में उस हलचल पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है, जिसका उदय अंग्रेज़ों द्वारा राजनीति की आड़ में धार्मिक और सांस्कृतिक आक्रमण के कारण हुआ। अंग्रेज़ों ने मणिपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति को पराजित बनाए रखने के हर सम्भव प्रयास किए। कमल, चाओबा,अङाङ्हल, मयुरध्वज, नवद्वीपचंद्र आदि महान नवजागरणकालीन कवियों के साहित्य में इस आत्म-चेतना और सामाजिक सांस्कृतिक हलचल के दर्शन आसानी से किए जा सकते हैं।

.......क्रमशः

प्रस्तुति : चंद्रमौलेश्वर

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