मणिपुरी कविता - मेरी दृष्टि में : डॉ. देवराज


मणिपुरी कविता - मेरी दृष्टि में : डॉ. देवराज


प्राचीन और मध्यकालीन मणिपुरी कविता //८//

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जब किसी भी प्रदेश के लोकगीतों की बात चलती है तो लोक- कथाएं और देवी-देवताओं के किस्से जुड़ ही जाते हैं। परंतु मणिपुर के लोक-साहित्य में इतनी विविधता है कि इस बगियाँ में विभिन्न प्रकार के फूल पाठक को मिलेंगे। अपनी इस कृति में डॉ. देवराज बडे़ विस्तार से मणिपुर के लोकगीतों और उनसे जुडे़ दंतकथाओं का विवरण देते हुए बताते हैं:-


"प्राचीन और पूर्व मध्यकालीन मणिपुरी भाषा में कथा-काव्य-ग्रंथों की भी सुदीर्घ परम्परा है। इनमें जहाँ रचना की प्रबन्ध शैली का सौन्दर्य है, वहीं इनकी प्रतीकात्मकता तथा अन्योक्तिपरकता उस काल के मणिपुरी लोगों की प्रतिभा की परिचायिका भी है। ऐसा ही एक ग्रन्थ है,‘नुमित काप्पा’ जिसका शाब्दिक अर्थ है - सूर्य का शिकार ।"


"इस काल का ‘खोङ्जोमनुपी नोङ्कारोल’ नामक ग्रन्थ प्रेम और उससे जुडी़ त्रासदी को मुख्य कथानक के रूप में ग्रहण करता है। पेना पर गाई जानेवाली इसकी कथा के अनुसार लुवाङ वंश की छह सुन्दर कन्याओं और छः जनजातीय युवकों के प्रेम की कथा है।... "


"प्रेम की उच्चतर मानवीय भावना और आत्मबलिदान के सौंदर्य से परिपूर्ण एक ऐतिहासिक आधारभूमि वाला काव्यात्मक ग्रंथ है ‘नाओथिङ्खॊङ द्फ्म्बाल काबा’। यह कथा निङ्थीजा वंश के राजकुमार और शौलोइ लङ्माइ [नोङ्माइजिंग पर्वतीय क्षेत्र ] के मुखिया की पुत्री ‘पीतङा’के मध्य अगाध प्रेम की गाथा है।"


"इन थोडे़ से उदाहरणों से प्राचीन और पूर्व मध्यकालीन मणिपुरी कविता के स्वरूप तथा उसकी प्रकृति को एक सीमा तक ही समझा जा सकता है, किन्तु यह सीमा इतनी संकुचित भी नहीं है। कारण यह कि इस उल्लेख से हम उस काल के मणिपुरी समाज, उसकी सांस्कृतिक चेतना और धीरे-धीरे विकास पा रही काव्य-कला को बहुत कुछ समझ सकते हैं। लाइहराओबा से जुडे़ गीतों के मूल में पूरी विचार-पद्धति तथा मानव सभ्यता के विकास की तत्कालीन अवस्था विद्यमान है। लाइहराओबा अन्य बातों के साथ सृष्टि-उत्पत्ति और मानव के सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों के विकास की जानकारी भी देता है। आज यह जानकर आश्चर्य होता है कि उस काल में मणिपुरी विचारक यह समझने लगे थे कि इस संसार की उत्पत्ति बिना किसी योजन के नहीं हो गई। उसके मूल में नर-नारी के मध्य विद्यमान आकर्षण की आदिम प्रवृत्ति है, किन्तु यह आकर्षण दैहिक आनन्द तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके साथ समाज-निर्माण की चाह बँधी हुई है।"



......क्रमश:


प्रस्तुति : चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

2 टिप्‍पणियां:

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