मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में - डॉ. देवराज (६)

मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में – डॉ. देवराज - [VI]


पिछली बार हमने ‘लाइ-हराओबा’ अनुष्ठान के बारे में कहा था। इस धार्मिक अनुष्ठान सम्बंधी जानकारी और इससे जुडे़ लोकगीतों की जानकारी के बारे में डॉ. देवराजजी बताते हैं:
"यह अनुष्ठान विभिन्न चरणों में सम्पन्न होता है। सबसे पहले ‘लाइ फ़ि सेत्पा’ होता है, जिसके अन्तर्गत लाइहराओबा उत्सव से पहले देव-स्थान की अच्छी तरह सफ़ाई होती है और देवताओं को नव-परिधान अर्पित किया जाता है। ...एक ओर सृष्टि-उत्पत्ति की कथा विस्तार के साथ गाई जाती है और दूसरी ओर नृत्याभिनय द्वारा उसे दृष्याकार दिया जाता रहता है। माइबा-माइबी भक्तों के साथ गायन करके देवता को प्रसन्न करते हैं। कई बार वे इस प्रकार गाते हैं :

हो हो होइ हा हा हा
के रिल्लो कै रिला
नृत्य के क्रम में शारीरिक चेष्टाओं, नेत्रों और चेहरे की भंगिमाओं के माध्यम से गर्भाधान से लेकर प्रसव तक के दृश्य प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके साथ गायन चलता रहता है, जैसे-
आ......आ...आ.....आ
नुमिदाङ्वाइगीना मतमदा आ
नुमित्ना चिङ्या थाङ्लक्ले ए
चेङ्गीना मैना तमया थेङ्
तमगीन मैनबु खोङ्मै नेम.....
["आ, सन्ध्या-काल में आ। पश्चिम में सूर्यास्त हो रहा है। पर्वत की अग्नि भी पाद-प्रदेश तक जा पहुंची है। तलहटी की अग्नि भी चरण-वन्दना में लगी है।"....डॉ. इबोहल सिंह द्वारा किया गया भावानुवाद।]

"लाइहराओबा के अवसर पर कभी-कभी लोकगीत शैली के गीतों का गायन भी किया जाता है, जैसे:
अङौबा शगोल तोङ्बरा
निङ्थौरेलगी शगोलदि
ममै गे गे साओबनि
अङौबा शगोल तोङ्बरा
[क्या तुम सफ़ेद घोडे़ की सवारी कर रहे हो? राजा के घोडे़ की पूँछ गे गे करती है। क्या तुम सफ़ेद घोडे़ पर सवार हो! - स. लनचेनबा मीतै द्वारा किया गया भावानुवाद।]

"लाइहराओबा के अवसर पर अनेक प्रकार के नृत्य के अन्तर्गत थाबलचोङ्बा शैली का नृत्य भी होता है। इसके साथ गाये जानेवाले एक गीत का उदाहरण निम्नांकित है:
के-के-के-मो-मो
यङ्गेन सम्बा श्याओ श्याओ
तोक्पगा काम्बगा कैगा येन्गा
येनखोङ् फ्त्ते चाशिङ्ल्लु
लाइगी येन्नी चाफ्दे
के-के-के-मो-मो
["बन बिलाव के साथ काम्बा तथा बाघ के संग मुर्गा लड़ने को उद्यत है। मुर्गा अच्छा नहीं है। उसे खा डालो। किन्तु मुर्गा देवता का है। उसे खाया नहीं जा सकता।" डॉ. इ.सिं.काङ्जम द्वारा किया गया भावानुवाद्।]

"लाइहराओबा के अवसर पर कभी-कभी लोकगीत शैली के गीतों का गायन भी किया जाता है, जैसे:
अङौबा शगोल तोङ्बरा
निङ्थौरेलगी शगोलदि
ममै गे गे लाओबनि
अङौबा शगोल तोङ्बरा
[क्या तुम साफ़ेद घोडे़ की सवारी कर रहे हो? राजा के घोडे़ की पूँछ गे गे करती है। क्या तुम सफ़ेद घोडे़ पर सवार हो! - स्.लनचेनबा मीतै द्वारा किया गया भावानुवाद।]"
घोडे़ का विषय तो भारत के ही नहीं, समस्त विश्व के साहित्य में एक विशेष स्थान रखता है। फ़िल्मों में भी नायक का घोडे़ पर सवार होकर प्रेमिका से मिलने जाने का दृश्य आ
म है। यह है देशकाल और भाषा से परे प्राकृतिक प्रभाव का अच्छा उदाहरण ; जो हर समाज एवं साहित्य में व्याप्त है।
..........क्रमशः
(प्रस्तुति : चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद )

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