सूचना प्रौद्योगिकी में नागरी लिपि के फिसलते कदम



सूचना प्रौद्योगिकी में नागरी  लिपि के फिसलते  कदम

- डॉ. ओम विकास
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1983 में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन दिल्ली में हआ था ।  तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था ।  हिन्दी में कंप्यूटर के प्रयोग की संभावनाएँ दिखाने के लिए कार्य का समन्वयन दायित्व भारत सरकार के इलेक्ट्रोनिकी विभाग को  मिला ।  श्री मधुकर राव चौधरी और प्रो. रवीन्द्र श्रीवास्तव का प्रोत्साहन मिला । भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ने सम्मेलन में प्रतिभागियों के रजिस्ट्रेशन की शोध परियोजना BITS पिलानी को दी ।  वैज्ञानिकों ने उस समय सारा रजिस्ट्रेशन कार्य हिन्दी में कर दिखाया ।  सम्भावना को सकारात्मक अभिव्यक्ति दी ।  सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पिछले दो दशक में बहुत तेजी से विकास हुआ है -  कई  नए समर्थ ऑपरेटिंग सिस्टम, विश्व भाषायी यूनीकोड, ओपेन टाइप फोंट, ऑफिस सूट, विश्व व्यापी वेब, मानव भाषा संसाधन की प्रगत प्रविधियां, मशीनी अनुवाद, ओ सी आर, टेक्स्ट टू स्पीच,  इत्यादि ।

छह दशक पहले  स्वराज में अपनी भाषा और संस्कृति को समृद्ध और व्यापक बनाने का लक्ष्य था ।  अतीत पर गर्व था, और जनशक्ति पर भरोसा था ।  गूढ़ ज्ञान को खोजते हैं तो संस्कृत  वाङ् मय   में चले जाते हैं, देवनागरी लिपि में प्रचुर साहित्य भी मिल जाता है ।  21वीं सदी का एक दशक बीत रहा गया है, लेकिन पहले जैसा सकारात्मक संकल्प संशय में बदलता जा रहा है ।  “ सूचना प्रौद्योगिकी और देवनागरी लिपि “  चर्चा और मंथन का विषय बन गया है ।  अभीष्ट लक्ष्य पाने में संशय और विलम्ब से प्रबुद्ध वर्ग चर्चा करता है जिससे लोक कल्याणकारी लक्ष्य को भुला न दिया जाए ।

संकल्पनाओं और विचारों के आदान-प्रदान के लिए भाषा जन्म लेती है ।  भाषिक आदान-प्रदान तत्काल मौखिक संभव है ।  कालांतर में इसे लिपि के माध्यम से सुरक्षित रखा जा सकता है। अतीत में लोग दूर-दूर बसे थे सो उनकी भाषाएं अलग-अलग थी ।  सभ्यता के विकास और आवागमन के बढ़ने से भाषाएं और लिपियाँ एक दूसरे से प्रभावित हुई ।  पाणिनी जैसे मनीषियों ने ध्वनि एवं लेखन में ऐक्य पर बल देते हुए ध्वनियों का स्वर एवं व्यंजन में वर्गीकरण किया, उच्चारण स्थान और विधि के आधार पर लिपि संरचना सारणी बनायी ।  लिपि-व्याकरण भी दिया ।  अन्य सभी लिपियों की अपेक्षा इसका ध्वन्यात्मक, वैज्ञानिक आधार है ।  इसे देवनागरी कहा गया ।  आजकल संक्षेप में इसे नागरी लिपि कहते है ।  इसकी आधार संरचना पाणिनी-सारणी है ।


पाणिनी सारणी (Panini Table)

P = (P1,P2,P3,P4,P5), M = (M1,M2,M3,M4,M5,M6)



व्यंजन
स्वर
स्वरांत


अप्र-अघ
मप्र-अघ
अप्र-घ
मप्र-घ
नासिक्य
अलि जिह्वा
व्युत्पन्न
व्युत्पन्न
व्युत्पन्न
मूल
मूल



M1
M2
M3
M4
M5
M6
व्यंजन स्वर
दीर्ध
हस्व
हस्व
दीर्ध
मात्रा
कंठ
P1
-
-
-
- ा
तालु
P2
(इ+अ)
(अ+इ)
ि ी
मूर्ध
P3
(+अ)
-
-
ृ ॄ
दंत
P4
(लृ+अ)
-
-
लृ
लॄ
- -
ओष्ठ
P5
-
(उ+अ)
(अ+उ)
ु ू
ो ौ

P:  उच्चारण स्थान,      M: उच्चारण विधि
           
 प्रौद्योगिकी में बहुत अधिक शक्तिशाली मशीनें बनीं । मशीनों से  जोखिम भरे खतरनाक काम, भारी भरकम काम और सूक्ष्मतर कामों को नियमित रूप से बिना थके, बिना रूके किया जाना संभव हुआ । बुद्धिपरक कामों को करने के लिए कंप्यूटर विकसित हुए । पहले संख्याओं पर गणना के लिए , बाद में मानव भाषाओं को समझकर विविध संसाधन कार्यों के लिए । कंप्यूटर पर कार्य करने की मूल प्रक्रिया 0-1 के कोड समूहों पर होती है। भाषा के स्वर-व्यंजन, अक्षरों, संख्याओं, विशेष चिह्नों, संचार  चिह्नों आदि को 0-1 के बाइटों में कोडित करते हैं। कंप्यूटर का प्रथम अविष्कार और तदनन्तर विकास रोमन लिपि पर आधारित अंग्रेजी भाषी देशों में हुआ। कंप्यूटर और कम्यूनिकेशन प्रौद्योगिकियों के संयोग से सूचना का संसाधन और  संचार व्यापक हुआ ।  विश्व व्यापी वेब ने  वसुधैव समीपं  को साकार किया ।  दूरियाँ  कम हुई । सूचना की खोज, संक्षेपण, भाषान्तरण  संभव होने लगे हैं ।

            विकास की यात्रा का निष्कर्ष है कि सूचना  प्रौद्योगिकी का विकास  सैद्धांतिक रूप से लिपि या भाषा-परक नहीं है ।  जो रोमन लिपि में अंग्रेजी आदि में संभव है, वह नागरी लिपि में भी संभव है ।

            नागरी लिपि के संदर्भ में प्रौद्योगिकी विकास तो किए गए हैं ।  लेकिन उनका प्रयोग व्यापक नहीं हो पा रहा है। आओ विचार करें,  क्या है, और  क्या नहीं है?

फोंट : पहले ट्रू टाप फोंट विकसित किए गए। तदनन्तर ओपेन टाइप फोंट प्रचलन में आए ।  प्राइवेट स्तर पर और सरकारी अनुदान से बनाए गए ।  कई फोंट मुफ्त में डाउनलोड किए जा सकते है

अड़चन कहाँ है ?  फोंटों के संरचना आधार अलग-अलग होने से फाइल खोलने के लिए वह फोंट लोड किए जाने की आवश्यकता पड़ती है । माइक्रोसॉफ्ट विन्दोज़, एप्पिल का मेक ओएस, लाइनेक्स आदि ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलन में है ।  लेकिन उन पर नागरी फोंट का अलग प्रावधान लेने पर  एक दो फ़ोंट  ही मिलते है और उनमें भी पारस्परिक समानता नहीं । इन ऑपरेटिंग सिस्टमों के आधार पर ऑफिस सूट में कम से कम 10 (ओपेन टाइप फोंट) उपलब्ध कराए जाएँ ।  एक प्रकार के फोंट सभी पर उपलब्ध होने पर फाइल की सूचना का आदान-प्रदान आसान होगा ।  भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने हिन्दी सी.डी. में मुफ्त प्रयोग के लिए कई फोंट दिए हैं लेकिन उनके व्यावसायिक प्रयोग पर रोक लगी है ।  इनमें से कम से कम 10 सुंदर फोंट व्यावसायिक प्रयोग के लिए भी मुफ्त मुक्त किए जाएँ  ।  यह जनता के हित में होगा, इससे नागरी लिपि का प्रयोग संवर्धन होगा, भारतीय भाषाएँ  समृद्ध होंगी । सकल भारती फोंट को भी देने से सभी भारतीय भाषाओं को लाभ होगा ।

फोंट कन्वर्जन यूटिलिटी : फोंट विविध हैं ।  इन्हें आपस में बदलने के लिए और इन्हें यूनीकोड में परिवर्तन करने के लिए फोंट कन्वर्जन यूटिलिटी प्रोग्राम बनाए गए हैं । ये  भी व्यावसायिक प्रयोग के लिए मुफ्त मुक्त उपलब्ध हों ।  जनहित में भारत सरकार पहल करे ।

इनपुट : इनपुट के लिए की-बोर्ड ड्राइवर सॉफ्टवेयर ऑपरेटिंग सिस्टम का अभिन्न अंग है ।  रोमन के लिए QWERTY की बोर्ड सर्वाधिक प्रयोग में है ।  नागरी लिपि में इनपुट के लिए कई प्रकार के की बोर्ड बनाए गए हैं -  इंस्क्रिप्ट, फोनेटिक, रेमिंग्टन, इत्यादि ।  इन्हें अलग से लोड करना पड़ता है। भारत की राजभाषा नागरी लिपि में हिन्दी है ।  विडम्बना है, शासकीय मान्यता, जनसंख्या की बहुलता होते हुए भी सरकारी विभागों, उपक्रमों और सरकारी वित्त पोषित परियोजनाओं में नागरी की-बोर्ड ड्राइवर के पूर्व लोडित होने की अनिवार्यता नहीं है ।  शायद एक प्रतिशत से भी कम, संभवत: नगण्य,  कंप्यूटरों पर ऐसी सुविधा होगी । नागरी की-बोर्ड INSCRIT मानक के अनुसार TVS ने बनाया ।  विडम्बना है कि  सरकारी विभागों में भी खरीददार नहीं मिले । इसलिए TVS ने  इनको बनाना बंद कर दिया ।
स्टाफ सलेक्शन कमीशन (SSC) की टंकण परीक्षा में INSCRIPT  नागरी की-बोर्ड पर टैस्ट की अनिवार्यता अथवा वरीयता  नहीं है ।

कोडिंग : 1980 के दशक में ISCII कोड भारतीय भाषाओं की लिपियों के लिए बनाया गया। परिवर्धित देवनागरी को अन्य भारतीय  लिपियों के लिए आधार बनाया गया । कुछ प्रचलन में आया भी ।  दशक के अंत तक UNICODE का प्रचार-प्रसार बढ़ा ।  वैश्विक स्तर पर वेब पर बने रहने के लिए UNICODE का प्रयोग सर्वमान्य हो गया  है । (संदर्भ:   www.tdil.mit.gov.in )

नागरी लिपि ध्वन्यात्मक है ।  इसका लिपि व्याकरण भी है ।  व्यंजनों के अंत में स्वर के साथ स्वतंत्र ध्वनि को अक्षर (Syllable) कहते है ।  व्यंजन का तात्पर्य स्वर विहीन शुद्ध व्यंजन से है । देवनागरी कोड  हिन्दी, संस्कृत, नेपाली, कोंकणी, कश्मीरी, डोंगरी आदि के लिए और वैदिक संस्कृत के लिए भी प्रयुक्त होता है ।

फोनीकोड : अब तक कोडिंग का आधार रेखीय रूप में पृथक रूप (0…9 संख्या, a….z , A … Z वर्ण रूपिम ;…? पंकच्युएशन चिह्न आदि हैं ।


पाणिनी सारणी से ध्वनि लिपि का परस्पर प्रभाव समझा जा सकता है। स्वतंत्र स्वर रूपिम है, व्यंजन के अंत में स्वर का रूप बदल कर मात्रा बन जाता है जो ध्वन्यात्मक इकाई अक्षर (Syllable) है। V (स्वर), CV  (व्यंजन-स्वर) CCV (व्यंजन-व्यंजन-स्वर) आदि अक्षर हैं । मूल अक्षर (Syllable) को  कोड करके फोनीकोड सभी भाषाओं के लिए उपयुक्त होगा ।  भाषा के अनुसार इनके इनपुट-आउटपुट निश्चित किए जा सकते हैं ।  फोनीकोड भारत का विशिष्ट योगदान होगा ।

लिप्यंतरण : परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला से विश्व भाषाओं की अधिकांश ध्वनियों को अभिव्यक्त किया जा सकता है ।  जैसा लिखो, वैसा बोलो ।  यह स्वनिम-रूपिम की समानता अन्य किसी लिपि में नहीं है ।  INSROT लिप्यंतरण मानक बनाया गया था ।  लेकिन प्रयोग में विविध प्रकार की लिप्यंतरण तालिकाएँ मिलती है । (संदर्भ:   www.tdil.mit.gov.in )

वेब पर आधारित नागरी लिपि

वेब पर सूचना का आदान-प्रदान तीव्रतर और सुगमता से हो रहा है ।  2010 में इंटरनेट यूज़र ( प्रयोक्ता ) संख्या क्रम में 10 प्रमुखतम भाषाएँ  हैं -  इंग्लिश, चाइनीज, स्पैनिश, जापानी, पुर्तगीज, जर्मन, अरबी, फ्रैंच, रशियन और कोरियन। हिन्दी-भाषी जनसंख्या (1.2 बिलियन) विश्व में तीसरे स्थान पर है, लेकिन  इंटरनेट पर हिन्दी का स्थान बहुत नीचे है।   

नागरी लिपि में सुगमता के लिए कतिपय सुन्दर मानक फोंट व्यावसायिक दृष्टि से सभी IT उद्योगों को मुफ्त और मुक्त उपलब्ध है ।

डोमेन नेम URL, e-mail ID नागरी लिपि में अभी तक नहीं है ।  औपचारिक चर्चाएँ एक दशक से हो रहीं है । अरबी लिपि में डोमेन नेम हैं, यह बहुत जटिल लिपि है ।  विश्व स्तर की यह पहल सरकार ही कर सकती है ।

नागरी OCR

ओ.सी.आर. पर शोध कार्य दो दशकों से चल रहा है। लेकिन किसी सरकारी विभाग में भी नागरी ओ.सी.आर. नहीं मिलता ।  सभी ओ.सी.आर. द्विलिपिक रोमन एवं नागरी में और अन्य भारतीय भाषा लिपियों के विकल्प के साथ भी उपलब्ध कराए जाएँ ।

W3C में नागरी मानक

W3C (World Wide Web Consortium) वेब पर सूचना के सुगम आदान-प्रदान, रख-रखाव के लिए विविध प्रकार के मानक बनाता है जिन्हें IT कंपनियाँ स्वीकार कर तदनुसार सुविधा प्रदान करती है ।  HTML, XML, CSS इत्यादि में नागरी का स्पष्ट प्रावधान नहीं है ।

नागरी में यूटिलिटी सॉफ्टवेयर



लाइब्रेरी, एकाउंटिंग, स्कूल-कॉलेज, प्रबंधन, ट्रांसपोर्टेशन, पाठ-लेखन, ऑथरिंग आदि सॉफ्टवेयर नागरी लिपि में मुफ्त, मुक्त सर्वसुगम हों। जनकल्याण सॉफ्टवेयर के अंतर्गत सरकार उन्हें उपलब्ध कराए । सरकार की “वन लेपटॉप पर चाइल्ड” (OLPC) परियोजना में भी प्रत्येक  लेपटॉप पर नागरी  का भी प्रावधान हो ।



नागरी लिपि और भाषा
            नागरी लिपि का प्रयोग भाषायी जनसंख्या के हिसाब से बहुत कम है, नगण्य है ।  अंग्रेजी के मोह में भारतीय भाषाओं को राजाश्रय के बजाय राज-उपेक्षा मिलने से नागरी लिपि का प्रयोग शिक्षा, व्यापार, मीडिया में घटता जा रहा है ।

            कुछ लोग ब्लॉग आदि बना लेने से अपनी-अपनी पीठ ठोंक लेते हैं, लेकिन वस्तुस्थिति है कि समाज में नागरी लिपि का प्रयोग हेयकर बनता जा रहा हैं । इंडेन गेस के बिल , ट्रेन रिजर्वेशन के ई-टिकिट, CGHS के मेडीसिन प्रिस्क्रिप्शन  डिटेल आदि जन सेवाओं में देवनागरी में कोई सुविधा नहीं है। ई-गवर्नेंस में छुट-पुट हिन्दी का दिखावा है । क्यों न हो?  आम आदमी की जुबान ऊपर के चन्द लोगों ने कुर्सी मोह में दबाए रखी है ।

संक्षेप में   समस्या टैक्नोलोजी की नहीं, प्रत्युत राजनीतिक इच्छा शक्ति की है । नीति का प्रभावी अनुपालन हो । नीति है, पर अनुपालन नहीं होता है ।  मात्र शृगाल-विलाप है ।


कतिपय सुझाव इस प्रकार हैं -


1.                  नागरी लिपि ध्वन्यात्मक लिपि है । विज्ञान-सम्मत सर्वध्वनि-लिप्यंकण पाणिनी-सारणी का  आधार है । भाषा विषयक मानकीकरण में  पाणिनी-सारणी को ध्यान में रखा जाए ।

2.                  नागरी-रोमन परिचय चार्ट पर्यटन केन्द्रों और  एयरपोर्ट आदि पर उपलब्ध हों ।

3.                  टी.वी. चैनलों पर नागरी में केप्शन दिखाए जाएँ  ।

4.                  नागरी लिपि पर आधारित फोनीकोड का विकास किया जाए ।

5.                  नागरी लिपि के कम से कम दस सुंदर मानक ऑपेन टाइप फोंट व्यावसायिक प्रयोग के लिए भी मुफ्त, मुक्त ओपेन डोमेन में सर्वसुलभ कराए जाएँ ।  यह जनहित में दूरगामी कदम होगा ।

6.                  स्कूलों-कॉलेजों में नागरी OCR, Open Office, Library Info System, Accounting  Software, School Management Software आदि उपलब्ध कराए जाएँ ।

7.                  नागरी में कंटेट क्रियेशन और Web Service इंटीग्रेशन और  XML आदि मानकों पर भी काम किया जाए ।

8.                  वेब पर डोमेन नेम नागरी में भी स्वीकार्य हों ।


9.                  नागरी लिपि के बारे में जागरूक संस्थाएँ  एक जुट होकर तत्काल इन सिफारिशों को कार्य रूप देने के लिए भारत सरकार के संबंधित विभागों से संपर्क करें । निगरानी के लिए watch-dog संस्था बनाएँ  जो समय समय पर नागरी प्रयोग स्थिति और समस्याओं पर  सर्वे कर परिणाम प्रकाशित करे,  नीति अनुपालन के लिए दबाब डाले ।

10.              नागरी सांसद ग्रुप’ का गठन हो । प्रबुद्ध सांसद सदस्य इस मंच से नागरी लिपि और संस्कृति  के संरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है ।




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3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लेख प्रस्तुत करने के लिये आभार। वस्तुतः अभी नागरी लिपि के लिये बहुत कार्य किये जाने की आवश्यकता है।

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  2. आप का लेख पढ़ा नागरी लिपि राजनीति के भंवर मेँ फंसी है ।

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