श्रीलंका से सबक ले पाकिस्तान
डॉ.वेदप्रताप वैदिक
श्रीलंकाई सेनापति शरत् फोनसेका ने ठीक ही कहा है कि वे 95 प्रतिशत युद्ध तो जीत ही चुके हैं। अब तो बस प्रभाकरन को गिरफ्तार करना बाकी रह गया है। प्रभाकरन के कभी दाएँ हाथ रहे कमांडर करूणा का कहना है कि वह घिर गया है। अब उसका भागना मुश्किल है। मलेशिया एकमात्र देश है, जहाँ वह छिप सकता है लेकिन वह देश पहले से ही सतर्क है। फोनसेका का कहना है कि लिट्टे से अब बात करने का सवाल ही नहीं उठता। अब तो पहले वे आत्म-समर्पण करें। जिन दो लाख तमिलों को उन्होंने अपना मानव-कवच बना रखा है, उन्हें वे पहले मुक्त करें। श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद राजपक्ष कहते हैं कि अगर हमें उन बेकसूर तमिलों का ख्याल नहीं होता तो अब तक हमारी फौजें लिट्टे का समूलोच्छेद कर देती। युद्ध-क्षेत्र में फँसे तमिलों को रसद आदि पहुँचाने का काम श्रीलंका सरकार मुस्तैदी से कर रही है। भारत तथा अनेक पश्चिमी राष्ट्र भी मदद कर रहे हैं।
वे सारे संसार में राजपक्ष के विरूद्ध शोर मचाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनकी कोई नहीं सुन रहा है, भारत सरकार भी नहीं। केंद्र सरकार को कई बार धमकियाँ मिल चुकी हैं कि तमिल पार्टियाँ अपना समर्थन वापस ले लेंगी लेकिन भारत सरकार वही कर रही है, जो उसे भारत के हित में करना चाहिए। वह ब्लेकमेल के आगे घुटने नहीं टेक रही है। उसने अपने विदेश सचिव को कोलंबो भी भेज दिया लेकिन उसने वहाँ जाकर भारत की तमिल राजनीति को श्रीलंका पर थोपने की कोशिश नहीं की। श्रीलंका के सेनापति ने खुले-आम स्वीकार किया है कि भारत उन्हें सैन्य-प्रशिक्षण दे रहा है और हवाई निगरानी के उपकरण भी ! वास्तव में भारत-श्रीलंका को आक्रामक शस्त्रास्त्र नहीं दे रहा है लेकिन वह तहे-दिल से चाहता है कि लिट्टे का समूलोच्छेद हो जाए। लिट्टे ने राजीव गाँधी के खून से ही अपने हाथ नहीं रँगे हैं, उसने श्रीलंका के अनेक श्रेष्ठ तमिल और सिंहल नेताओं की हत्या भी की है। लिट्टे की हिंसा में 70 हजार से ज्यादा नागरिक मारे गए हैं और लाखों बेघर हुए हैं। ये उजड़े हुए तमिल भी लिट्टे का विनाश चाहते हैं। दुनिया के 30 से ज्यादा देशों ने लिट्टे पर प्रतिबंध लगा रखा है। श्रीलंका के साधारण तमिल लोगों की गुप्त सहानुभूति कभी लिट्टे के साथ रहा करती थी लेकिन अब वह भी समाप्त हो गई हैं, क्योंकि लिट्टे अब लगभग फाशीवाडी संगठन बन गया था और वह तमिलों पर भी अत्याचार करने लगा था। इसी तरह श्रीलंका और भारत के बाहर बसे लाखों तमिलों से मिलनेवाला राजनीतिक और वित्तीय समर्थन पर धीरे-धीरे सूखने लगा था। लिट्टे की अपनी अंदरूनी फूट ने तो उसे कमजारे किया ही, प्रभाकरन की बढ़ती हुई उम्र और थकान ने भी छापामारों का मनोबल गिरा दिया था। यदि लिट्टे को श्रीलंका के तमिलों का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ होता तो वह बुलेट की बजाय बेलेट के सहारे अपनी सत्ता कायम करता !
क्या पाकिस्तान श्रीलंका से कोई सबक लेगा ? यदि श्रीलंका जैसा छोटा-सा देश, जिसके चारों तरफ के समुद्री दरवाजे खुले हुए हैं, एक नियमित सेना का विनाश कर सकता है तो पाकिस्तान अपने तालिबान और कट्टरपंथियों को ठिकाने क्यों नहीं लगा सकता ? श्रीलंका में सच्चा लोकतंत्र है और उसकी फौज नेताओं की छाती पर सवार नहीं है। वह आज्ञाकारी है। श्रीलंका के नेता और फौजी पाकिस्तानियों की तरह अरबों डॉलर डकार जाने में माहिर नहीं हैं। वे राष्ट्रभक्त हैं, इसीलिए आज वे खून के दरिया से तैर कर बाहर निकल आए हैं। पाकिस्तान को जितनी बेपनाह मदद पश्चिमी देशों ने दी है, यदि उतनी मदद श्रीलंका को मिली होती तो लिट्टे का सफाया अब से दस साल पहले ही हो जाता। यदि पाकिस्तान अब भी अपनी पुरानी लीक पर चलता रहा तो वह अपनी संप्रभुता तोखो ही देगा, रक्त-स्नान से भी मुक्त नहीं होगा।
जब लिट्टे नेस्तनाबूद हो सकता है तो तालिबानी भी होंगे ही अगर पाकिस्तान सबक ले। डा0 वैदिक का विश्लेषण सटीक है।
जवाब देंहटाएंलिट्टे,खालिस्तान,माआेवाद,तालिबान एक विचारधारा है। आसानी से इसे खत्म नही किया जा सकतां। किसी भी आंदोलन को तोड़ने का सरल उपाए है,उसे लंबा खींचों। उसमें अपराधी आ जाएगें । वे ही आंदोलन को खत्म कर देंगे। आंदोलनकारी युवाआेके दिलों में इस प्रकार का जहर भर देते है। कि उसके कारण युवा पढा़ई गई विचारधारा के गुलाम हो जातें है।
जवाब देंहटाएंलिट्टॆ और तालिबान में अंतर यह है कि मज़हब आडे आता है। पर जब पाकिस्तान के सिर पर आतंकवाद का टपका पडेगा , तब उन्हें बात समझ में आएगी।
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