हिंदी का दूसरा महाकुंभ वर्धा में


हिंदी का दूसरा महाकुंभ वर्धा में 01 फरवरी से
पाँच दिवसीय समारोह में देशभर से लगभग 200 हिंदी लेखक करेंगे विमर्श

वर्धा, 30 जनवरी 2013 

वर्धा स्थित महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय से 5 फरवरी, 2013 के दौरान ‘हिंदी का दूसरा समय’ कार्यक्रम का भव्‍य आयोजन कर रहा हैजिसमें लगभग 200 से अधिक हिंदी के साहित्‍यकारपत्रकाररंगकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता विवि‍ध विषयों पर विमर्श करेंगे।

समारोह का उद्घाटन फरवरी को प्रात: 10 बजे अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के प्रांगण में बने आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार में प्रोनामवर सिंह करेंगे। विशिष्‍ट अतिथि के रूप में प्रो.निर्मला जैन की उपस्थिति में समारोह की अध्‍यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय करेंगे।

पाँच दिवसीय इस आयोजन में विवि के पूर्व कुलपति प्रो.जी.गोपीनाथन, केदारनाथ सिंहकाशीनाथ सिंहप्रो.गंगा प्रसाद विमल, रवीन्‍द्र कालिया, खगेन्‍द्र ठाकुर, रमणिका गुप्‍ताममता कालिया, अरुण कमल, पुरूषोत्‍तम अग्रवाल, हरिराम मीणा, राजीव भार्गवसुधा सिंह, प्रदीप भार्गवमोहन आगाशेवामन केंद्रे, रमेश दीक्षित, पुण्‍य प्रसून वाजपेयीनामदेव ढसालजे.वी.पवारबद्रीनारायणअखिलेशसंजीवजयनंदनआनंद हर्शुलशिवमूर्तिकुणाल सिंहचंदन पाण्‍डेययशपाल शर्माअजित अंजुमहरि प्रकाश उपाध्‍यायजय प्रकाश कर्दमहेमलता माहेश्‍वरप्रकाश दुबेशशि शेखरसंदीप पाण्‍डेय,बी.डीशर्माप्रेमपाल शर्मारघु ठाकुरप्रेम सिंहचन्‍द्रप्रकाश द्विवेदीकैलाश वनवासीमनोज रूपड़ामहुआ माजीसृंजय,भारत भारद्वाज तथा विकास मिश्र आदि सहित विभिन्‍न नामचीन हस्तियां उपस्थित रहेंगी।

      विदित हो कि चार वर्ष पूर्व महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा ने पांच दिवसीय ‘हिंदी समय’ का आयोजन किया था। ‘हिंदी का दूसरा समय’ के आयोजन के बारे में कुलपति विभूति नारायण राय से पूछने पर उन्‍होंने बताया कि हिंदी समय के आयोजन के बाद के चार वर्षों में सभी क्षेत्रों में तेजी से बदलाव हुए हैं और सूचना-संचार की विराटता के इस युग में हिंदी का दखल बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। दुनिया के तमाम देश भारत जैसे बड़े बाजार के निमित्‍त हिंदी को अपने भविष्‍य का रास्‍ता मान रहे हैं। स्‍वयं हमारे विश्‍वविद्यालय में विदेशी छात्रों की संख्‍या में दिनोंदिन होने वाली वृद्धि विश्‍व में हिंदी की बढ़ती जरूरत और इसकी अपरिहार्यता का प्रतीक है। इसकी बढ़ती पहुँच के साथ इसके विरूद्ध षडयंत्रों की भी शुरूआत हो चुकी है। विकिपीडिया के अनुसार कुछ वर्ष पहले विश्‍वभर में संख्‍या के लिहाज से सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में जहाँ हिंदुस्‍तानी का स्‍थान दूसरा थाअब हिंदी को चौथे पायदान पर लाया गया है और मजेदार बात तो यह है कि शीर्ष की सौ भाषाओं में मैथिलीभोजपुरीअवधीहरियाणवीमगही जैसी हिंदी की बोलियों की गणना की गयी है। यह एक निर्विवाद तथ्‍य है कि इन्‍हीं बोलियों के सम्मिलित रूप को हिंदी कहा जाता है। इनसे प्राप्‍त जीवन शक्ति से हिंदी फूलती है। ठेठ हिंदी का ठाठ इन्‍हीं बोलियों के सौंदर्य से निर्मित होता है।

      श्री विभूति नारायण राय ने कहा कि हमारी इस बढ़ती स्‍वीकार्यता का एक दूसरा पहलू भी है। यदि हम गौर से देखें तो हमारा यह समय एक विराट विचारशून्‍यता का भी है। हिंदी साहित्‍य में किसी नये सिद्धांत की बात तो दूर पिछले कई दशक से हम एक सार्थक बहस चलाने में भी समर्थ नहीं हुए हैं। हमारी भाषा की अन्‍य अभिव्‍यक्तियाँ मसलन दलित विमर्श,स्‍त्री-विमर्श आदि भी अन्‍य भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में किये जा रहे कार्यों का एक अनुवादित संस्‍करण ही है। हिंदी सिनेमा जरूर किन्‍हीं हद तक अपने नये मुहावरे में बात करने की कोशिश कर रहा है परंतु वहाँ भी बाज़ार और सनसनी का एक ऐसा वातावरण पसरा है कि इस समय में श्‍याम बेनेगलऋत्विक घटकमणि कौल जैसे फिल्‍मकारों को ढूँढ़ना निरर्थकता ही मानी जाएगी।

      कमोवेश ऐसी ही स्थिति हिंदी रंगमंच और इस भूभाग की कलाओं की भी है। पिछले कई दशकों से कोई महत्‍वपूर्ण नाटक हिंदी में लिखा या मंचित हुआ होयाद नहीं आता। अन्‍य ललित कलाओं में भी कोई महत्‍वपूर्ण आंदोलन इन प्रदेशों में दिखाई नहीं देता।

      यह वक्‍त थोड़ा ठहर कर सोचने का है। ऐसा नहीं कि हमारी ऊर्जा चुक गई है अथवा हम ऐसी जड़ता से निकलने की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं। लेकिन उन कोशिशों कोजो इस विकल्‍पहीन होते समय में एक सार्थक विकल्‍प रचने की कोशिश कर रहे हैंएक साथ समग्रता में समझने की जरूरत हैनहीं तो उत्‍तर–आधुनिक सोच हमें आश्‍वस्‍त करने में सफल हो जाएगी कि प्रत्‍येक विधाप्रत्‍येक कलाप्रत्‍येक अभिव्‍यक्ति अपने आप में स्‍वायत्‍त है और उसका समाज से भी कोई सीधा संबंध नहीं है।

      आयोजन के बारे में उन्‍होंने बताया कि हम यह मानते हैं कि आप हमारे सरोकारों और चिंताओं से सहमत होंगे और पाँच दिनों तक 01 से 05 फरवरी, 2013 तक चलने वाले इस कार्यक्रम हिंदी का दूसरा समय’ में उत्‍साह और तैयारी के साथ शिरकत करेंगे ताकि हिंदी की पहचान सिर्फ सबसे ज्‍यादा बोली जाने वाली भाषा या सबसे बड़े बाजार की ही नहीं,बल्कि वह समर्थ बने तो अपने सरोकारों के कारणअपनी अभिव्‍यक्ति की अपार संभावनाओं के कारण।

      संगोष्‍ठी के संयोजक राकेश मिश्र ने कहा कि हिंदी को विश्‍वभाषा बनाने की दिशा में विश्‍वविद्यालय का यह आयोजन सार्थक पहल के रूप में साबित होगा। उन्‍होंने कहा कि हिंदी को लेकर पूरे विश्‍व में चल रही बहस को यह आयोजन दिशादर्शक सिद्ध होगा। उन्‍होंने विश्‍वास जताया कि किसी विश्‍वविद्यालय स्‍तर पर इतने बड़े पैमाने पर किया गया यह आयोजन साहित्‍य और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाएगा।

      ‘हिंदी का दूसरा समय’ का मुख्‍य समारोह अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के प्रांगण में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सभागार में सम्‍पन्‍न होगा वहीं समानांतर सत्र सआदत हसन मंटो कक्ष (स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय),महादेवी वर्मा कक्षरामचंद्र शुक्‍ल कक्ष (समता भवन), डी.डीकौसांबी कक्ष (जनसंचार विभाग), स्‍वामी अछूतानंद सभागार(महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन केंद्रीय पुस्‍तकालयमें सम्‍पन्‍न होंगे। इन सत्रों में हिंदी रचनाशीलता की पहुंच और उसका सामर्थ्‍यनव राजनैतिक विमर्श में हिंदी की उपस्थितिसंचार-सूचना की विराटता की वास्‍तविकता और हिंदीसृजनात्‍मक अभिव्‍यक्ति के दृश्‍यमान आधार और हिंदीहिंदी जातीयता का सवाल और ज्ञान का उत्‍पादनहिंदी प्रदेश की राजनीति और प्रगति‍शीलता आदि मुख्‍य विषयों पर विमर्श होगा। कार्यक्रम का समापन 5 फरवरी को दोपहर 3.00 बजे हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार में होगा। इसमें वक्‍ता के रूप में डॉ.बी.डीशर्मारघु ठाकुरराजेंद्र राजनप्रो.प्रेम सिंह और प्रेमकुमार मणि उ‍पस्थित रहेंगे।


Nathuram Godse's defense speech in court


2nd October 1869- 30th January 1948 .


More than six decades after his assassination Mohandas Karamchand Gandhi still remains,  the most iconic figure of modern India. He was one of the most widely photographed men of his time; an entire industry of nationalist prints extolled his life; and his statues abound throughout India and, increasingly, the rest of the world .

On 30 January 1948, Gandhi was shot while he was walking to a platform from which he was to address a prayer meeting. The assassin, Nathuram Godse, was a Hindu nationalist with links to the extremist Hindu Mahasabha, who held Gandhi guilty of favouring Pakistan and strongly opposed the doctrine of nonviolence.



SOME FACTS ABOUT NATHURAM GHODSE.

Nathuram Ghodse was often a misunderstood character. He was referred to as a Hindu fanatic. It was often hard to understand Godse because the Government of India had suppressed information about him. His court statements, letters etc. were all banned from the public until recently. Judging from his writings one thing becomes very clear – He was no fanatic. His court statements were very well read out and indicated a calm and collected mental disposition. He never even once speaks ill about Gandhi as a person, but only attacks Gandhi’s policies which caused ruin and untold misery to Hindus. Another interesting point to note was that Godse had been working with the Hindu refugees fleeing from Pakistan. He had seen the horrible atrocities committed on them. Despite this Godse did not harm even single Muslim in India which he could easily have. So it would be a grave mistake to call him a Hindu fanatic.


Nathu Ram Godse, touched his feet to pay respect to the Father of Nation prior to shooting Gandhi.  He was agitated over partition of India which Mahatma had agreed. Moreover, Gandhi was adamant to give Pakistan a sum of Rs 550 Million as compensation. Prime Minister Nehru and his cabinet had passed a resolution not to give Pakistan the said amount as the latter has waged tribal war against India in Kashmir. Gandhi went on fast to oppose this and ultimately cabinet had to revert its decision. This agitated Godse more.

The final remains (ashes) of Godse are still kept in his house according to his will which he wrote prior to being hanged.  Godse presented historic arguments during his case though he did not defend himself.


The judge was moved by his knowledge and commented "Though he was bound by the provisions of law to write death sentence for Godse, but if the public present in the court room was to pass a judgement, the decision would probably have gone in favor of the accused". According to the will of Godse, his ashes to be flown into Sindhu river, if ever and when India and Pakistan become one nation again. Until then they are to be preserved.


Nathuram Godse's defense speech in court

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