हिंदी विदेशी भाषा की तरह है





हिंदी विदेशी भाषा की तरह है
डॉ. वेदप्रताप वैदिक 



गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले पर किसी भी हिंदीभाषी को जबरदस्त गुस्सा आ सकता है। उसने अपने एक निर्णय में कह दिया कि हिंदी तो किसी भी विदेशी भाषा की तरह है। गुस्सा करने से पहले जरा सोचें कि उसने ऐसा क्यों कहा? उसने ऐसा इसलिए कहा कि गुजरात के एक सुदूर गाँव के लोगों ने शिकायत की कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर जो नामपट लगे हुए हैं, वे सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी में हैं। वे गुजराती भाषा में क्यों नहीं हैं ?


गाँववालों का यह सवाल बिल्कुल वाजिब है। उनमें से ज्यादातर लोग अनपढ़ या अल्पशिक्षित होंगे। वे न रोमन लिपि पढ़ सकते होंगे और न ही देवनागरी। उनमें से कई तो गुजराती लिपि भी नहीं पढ़ पाते होंगे। अपनी समस्या लेकर वे अदालत में गए, यह उन्होंने ठीक किया। यदि कोई नागरिक अनपढ़ है, तो क्या उसके मानव अधिकार का हनन करने की छूट सरकार को दी जा सकती है? क्या वह नागरिक नहीं है? क्या वह मनुष्य नहीं हैं?


गुजरात में लगा हर सरकारी नामपट गुजराती में होना चाहिए। हर सरकारी काम-काज भी गुजराती में होना चाहिए। इस सिद्धांत का पालन हर प्रांत में होना चाहिए लेकिन होता क्या है? प्रांतों में प्रांतीय भाषाओं की उपेक्षा होती है और उनकी जगह अंग्रेजी और हिंदी लाद दी जाती है। खासतौर से केंद्र सरकार के दफ्तरों और कामकाज में! हिंदी तो राजभाषा है। राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा है। जोड़ भाषा है। जनभाषा है, लेकिन अंग्रेजी किसलिए थोपी जाती है? अंग्रेजी के कारण प्रांतीय भाषाओं का हक मारा जाता है। 


यदि गुजरात के गांवों के नामपटों पर गुजराती के साथ-साथ हिंदी होती तो क्या अदालत वे शब्द बोलती, जो उसने हिंदी के बारे में बोले? कभी नहीं। उसे जो अंग्रेजी के बारे में बोलना चाहिए था, वह उसने हिंदी के बारे में बोल दिया। जरा जुबान फिसल गई। वरना, इस देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का श्रेय जिन दो महापुरूषों को है, वे गुजराती ही थे। महर्षि दयानंद और महात्मा गांधी


गुजराती और देवनागरी लिपियों में जितना साम्य है, दुनिया की किन्हीं दो लिपियों में नहीं है। गुजराती और हिंदी के असंख्य शब्द और मुहावरे एक जैसे है। इसीलिए गुजरातियों के लिए हिंदी को विदेशी भाषा का दर्जा दे देना अत्यंत अतिरंजनापूर्ण है। कुछ गाँव वालों के लिए देवनागरी अजनबीपन सही, हो सकता है लेकिन उसको विदेशीपन तक खींच ले जाना उपमा का गलत प्रयोग है। लड़ाई हिंदी और गुजराती के बीच नहीं है। गुजराती का हक मारने वाली अंग्रेजी के साथ है। सर्वत्र प्रांतीय भाषाओं और हिंदी का प्रयोग होना चाहिए और अंग्रेजी के प्रयोग पर सामान्यता कानूनी प्रतिबंध होना चाहिए।



9 टिप्‍पणियां:

  1. आपनें सही निराकरण दिया है। गुजरात में हिन्दी के प्रति परायापन हो ही नहीं सकता, समस्या मूलतः अंग्रेजी से ही है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बस यही कह दिया तो फेसबुक पर 200 से ज्यादा टिप्पणियों के साथ बहस हो गई। गुजराती लिपि भोजपुरी की लिपि कैथी से मिलती है, शायद वही है। अंग्रेजी का कारण एकदम सही है। अदालत या मीडिया ने अंग्रेजी पर कुछ नहीं कहा, इस बारे में भी फेसबुक पर लिखा था मैंने।

    जवाब देंहटाएं
  3. निज भाषा उन्नति लहै ,
    सब उन्नति कै मूल
    हमे अपने देश व् भाषा का सम्मान करना चाहिए चाहे बात गुजरात की हो या इंग्लॅण्ड की !

    जवाब देंहटाएं
  4. Maaf kariyega ..computer me kharaabi kee vajah se main Hindi me type nahi kar paa rahi hun... laikin apne vichar rakhna chahati hun... hindustan me apni bhasha ka yah apmaan ..usko videshi karaar kar diya gaya ..behad dukh kee baat hai... aur hai bhi ..South me to kai prant me hindi aik dam nahi ke baraabar hai...hona yahi chaiye thaa ki prantiy bhasha aur rajbhasha ko Prathmikta milni chahiye ....laikin yaha English ko Prathmikta milti hai...aur prantiy bhashayon kee andekhi ho jaati hai... Saadar

    जवाब देंहटाएं
  5. अरे भाई !
    कौन सा बच्चा माँ -बाप को प्यारा नहीं होता लेकिन अपना बच्चा सबसे अच्छा ...ये सिद्धांत भी अटल है | आत्मा कि दृष्टि से सब एक है ,गुजरात के लोगो की अज्ञानता को ,अतृप्त मनोकामना को नजरंदाज करना ही बेहतर होगा | अपनी भाषा हिंदी तो स्वयंसिद्ध है उसके लिए लद्दी बेमानी होगी |
    डॉ दिव्या वर्मा

    जवाब देंहटाएं
  6. ARE !
    I HAVE POSTED MY COMMENT IN HINDI BUT FOUND THAT THIS CANT BE READ PROPERLY WHY ? FONT PROBLEM I THINK .
    I WANT TO CONVEY THAT PL DONT FIGHT FOR THE EXISTENCE OF HINDI . HINDI IS A SELF ESTABLISHED AND PROVED SCIENTIFICALLY AS A GRAND LANGUAGE . ONLY SUPRESS FEELINGS CAN GIVE THESE TYPE OF CRYING STATEMENT .

    जवाब देंहटाएं
  7. सवाल हिंदी या गुजराती अथवा किसी अन्य भारतीय भाषा का नहीं हॆ.सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हॆ कि सभी भारतीय भाषाओं के बीच एक विदेशी भाषा-कुछ लोगों की जिद कहें या साजिश के कारण दीवार बन कर खडी हॆ-जो हमें आपस में संवाद नहीं करने देती.हम सभी जानते हॆं कि हम भारतीयों के बीच यदि सेतु का काम कोई भाषा कर सकती हॆ तो वह हिंदी ही हो सकती हॆ-कोई ऒर भाषा नहीं.
    राजभाषा विकास मंच
    http://www.rajbhashavikasmanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  8. @ Dr. Divyaa Verma जी, आपकी देवनागरी/हिन्दी टिप्पणी सही सही पढ़ी जा रही है कहीं कोई समस्या नहीं है। केवल `लद्दी' शब्द संभवतः `लड़ाई' के स्थान पर टाईप हो गया है। अस्तु !

    मित्रो ! इस प्रकरण को गुजराती/गुजरात द्वारा हिन्दी का विरोध के रूप में न लेकर, सही सही मर्म तक पहुँचने की आवश्यकता है। भारतीय भाषाओं को अङ्ग्रेज़ी द्वारा स्थानापन्न करते चले जाने के षड्यंत्र का परिणाम हैं ये स्थितियाँ। ऐसे में हिन्दी पर अत्याचार, आक्रमण, मातृभाषा, राष्ट्रभाषा की नारेबाजी या उत्तेजक चीजों अथवा फतवों से कुछ होने-धोने वाला नहीं है। ऐसा करना केवल गुजरात को हिन्दी के विरूद्ध स्थापित कर देने की मूर्खता ही कही जाएगी। इसलिए लेख को एक बार फिर से शांत व ठंडे मन से पढ़ कर मामले की गहराई तक पहुँचना अनिवार्य है।

    जवाब देंहटाएं
  9. अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में बोर्ड तीन भाषाओं में प्रयुक्त करने की परम्परा और निर्देश हैं राज्य की राजभाषा, हिन्दी और अंग्रेज़ी। पता किया जाना चाहिये कि गुजरात में ऐसा क्योंकर न हुआ और उसके लिये कौन लोग ज़िम्मेदार हैं। स्थानीय भाषाओं के प्रति सम्वेदनशील तो होना पड़ेगा लेकिन देश की अनपढ जनता के लिये तो सभी लिपियाँ काला अक्षर भैंस बराबर ही हैं।

    जवाब देंहटाएं

आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

Comments system

Disqus Shortname