अब हिंदी माध्‍यम से (दूरस्थ शिक्षा के रूप में भी) कीजिए एमबीए, बीबीए की पढ़ाई : नए प्रवेश प्रारम्भ



अब हिंदी माध्‍यम से (दूरस्थ शिक्षा के रूप में भी) कीजिए एमबीए, बीबीए की पढ़ाई  नए प्रवेश प्रारम्भ 

                  देशभर में ढाई सौ अध्‍ययन केंद्रो के माध्यम से सैकड़ों विद्यार्थी कर रहे हैं प्रबंधन की पढ़ाई



हिंदी भाषा को ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में समृद्ध करने तथा रोज़गारोन्‍मुख बनाने के उद्देश्‍य से स्‍थापित महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय (केंद्रीय विश्‍वविद्यालय), वर्धा ने दूरस्‍थ शिक्षा (डिस्‍टेंस लर्निंग) के माध्‍यम से मैनेजमेंट के क्षेत्र में 'मास्‍टर ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन(एमबीए), बैचलर ऑफ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन (बीबीए), पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा इन मैनेजमेंट (पीजीडीएम), डिप्‍लोमा इन मैनेजमेंट (डीबीएम) के पाठ्यक्रम शुरू किया, देशभर में लगभग ढाई सौ अध्‍ययन केंद्रों के माध्यम से  सैकड़ों विद्यार्थी प्रबंधन के पाठ्यक्रमों में अध्‍ययन कर रहे हैं।


विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय से एमबीए व बीबीए जैसे रोज़गारप‍रक पाठ्यक्रम को हिंदी माध्‍यम से चलाए जाने के संदर्भ में पूछने पर वे कहते हैं कि पहले हिंदी माध्‍यम से पढ़ाई करने पर उच्‍च वेतनमान पर नौकरी पाना बहुत आसान नहीं था, खासकर प्रबंधन व आईटी के क्षेत्रों में। गरीब विद्यार्थी अंग्रेज़ी माध्‍यम से शिक्षा न प्राप्‍त कर पाने के कारण बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों में मोटी तनख्‍वाह पर रोज़गार पाने में असमर्थ हो जाते थे लेकिन अब वे हिंदी के बूते मैनेजमेंट के क्षेत्र में भी अपना लक्ष्‍य पूरा कर उच्‍च्‍ा वेतनमान पर नौकरी पा सकते हैं। विश्‍वविद्यालय ने पहली बार हिंदी माध्‍यम से एमबीए बीबीए की पढ़ाई शुरू की तो हिंदी भाषी लोगों में एक विशेष उत्‍साह दिखा, यही कारण है कि करीब हज़ार से भी अधिक विद्यार्थियों ने प्रबंधन पाठ्यक्रमों में प्रवेश लिया, केंद्र सरकार ने अब स्‍कूल ऑफ मैनेजमेंट खोलने की अनुमति दी है। उन्‍होंने कहा कि इससे पहले प्रबंधन जैसे व्‍यावसायिक पाठ्यक्रमों को हिंदी में चलाया जाना एक मिथक के रूप में लिया जाता था, लेकिन इस विश्‍वविद्यालय ने जोखिम उठाकर य‍ह प्रमाणित कर दिखाया कि प्रबंधन पाठ्यक्रम हिंदी माध्‍यम से भी चलाए जा सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि हिंदी विश्‍व की प्रमुख भाषाओं में से एक है। अधिकांश बहुराष्‍ट्रीय कंपनियाँ हिंदी के माध्‍यम से उपभोक्‍ताओं तक पहुँचना चाहती हैं। हिंदी माध्‍यम से एमबीए करने पर तुरंत ही रोज़गार मिलेगा क्‍योंकि हिंदी अधिकांश उपभोक्‍ताओं की भाषा है। यहाँ से एमबीए करने वाले किसी भी कंपनी में बेहतर ढंग से काम कर सकेंगे। 



दूरस्‍थ शिक्षा केंद्र के निदेशक व प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन का कहना है कि वस्तुतः यह संस्‍थान उन सभी व्‍यक्तियों के लिए रोज़गारपरक शिक्षा प्राप्ति का एक विशेष अवसर प्रदान कर सकेगा जो चाहत रखते हुए भी किसी कारण से प्रबंधन की पढ़ाई नहीं कर सकते हैं। प्रबंधन पाठ्यक्रमों के संयोजक डॉ.एम.एम. मंगोड़ी कहते हैं कि हिंदी माध्‍यम से और खासकर घर बैठे एमबीए की पढ़ाई कराने की मंशा को लोग खूब सराह रहे हैं, यही कारण है कि गत वर्ष गरीब और हाशिए के लोगों ने भी एमबीए की पढ़ाई करने के लिए दाखिला लिया | दरअसल यहाँ विद्यार्थियों को प्रबंधन के सिद्धांत के साथ-साथ व्‍यावहारिक ज्ञान से भी रू-ब-रू कराया जाता है ताकि प्रबंधन पाठ्यक्रमों में दक्षता एवं विश्‍वास एक साथ पैदा हो सके। विपणन प्रबंधन, मानव संसाधन प्रबंधन, वित्‍तीय प्रबंधन, उत्‍पादन एवं परिचालन प्रबंधन, व्‍यावसायिक वातावरण, व्‍यायसायिक नीतियाँ एवं रणनीतिक प्रबंधन, प्रबंधन सूचना प्रणाली एवं संगणक अनुप्रयोग, व्‍यावसायिक नियामक प्रारूप तथा वैकल्पिक के रूप में विपणन, मानव संसाधन प्रबंधन एवं बीमा, वित्‍तीय प्रबंधन आदि विषयों को एमबीए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। छात्र मोहन आर्य स्‍वीकारते हैं कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से नौकरी करनी पड़ी, कंपनी के मित्र कहते थे कि आपको एमबीए कर लेना चाहिए पर अंग्रेज़ी अच्‍छी न होने के कारण यह मेरे लिए एक सपना था जिसे हिंदी विश्‍वविद्यालय ने पूरा किया। निश्चित रूप से अब हम नौकरी करते हुए एमबीए की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं। 


प्रवेश हेतु आवेदन कैसे प्राप्‍त करें : प्रवेश हेतु आवेदन पत्र विश्‍वविद्यालय की वेबसाइट www.hindivishwa.org से डाउनलोड करने पर या अध्‍ययन केंद्रों से लेने पर आवेदन पत्र के साथ किसी राष्‍ट्रीयकृत बैंक से रु. पाँच सौ (एमबीए व पीजीडीएम के लिए) तथा रु. तीन सौ (बीबीए व डीबीएम के लिए) का डीडी संलग्‍न कर निदेशक, दूरस्‍थ शिक्षा केंद्र, म.गा.अ.हि.वि.वि. के नाम से, जो वर्धा में देय हो, भेजना होगा। बैंक डिमांड ड्राफ्ट के पीछे नाम, पता व पाठ्यक्रम का नाम लिखकर निदेशक, दूरस्‍थ शिक्षा केंद्र, म‍हात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, गांधी हिल, वर्धा (महाराष्‍ट्र) के पते पर भेजना होगा। आवेदन पत्र डाक से मंगाने पर क्रमश: रु.550 और रु.350 के डीडी भेजने होंगे। 


प्रवेश प्रक्रिया: एमबीए व पीजीडीबीएम में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा देनी होती है तथा अन्‍य पाठ्यक्रमों में सीधे प्रवेश दिया जाता है। 


विद्यार्थियों के लिए सुविधाएँ : दूरस्‍थ शिक्षा केंद्र के दिल्‍ली, इलाहाबाद कोलकाता सहित देशभर में लगभग 250 अध्‍ययन केंद्र हैं। अध्‍ययन केंद्र में विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ इंटरनेट युक्‍त संगणक केंद्र आदि की सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। विद्यार्थियों को नामांकन के उपरांत अध्‍ययन सामग्री उनके घर पर भेजी जाएगी। परीक्षार्थी के निकटवर्ती अध्‍ययन केंद्र में परीक्षा ली जाती है। अनु.जाति एवं अनु.जनजाति के विद्यार्थियों के लिए उनके जनपद के समाज कल्‍याण अधिकारियों से छात्रवृत्ति प्राप्‍त करने का अवसर भी प्राप्‍त होता है। 


विश्‍वविद्यालय के दूरस्‍थ शिक्षा अंतर्गत एमबीए, बीबीए आदि पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु नामांकन प्रक्रिया जारी है। अंतिम तिथि 31 अगस्‍त तथा विलम्‍ब शुल्‍क सहित 30 सितम्‍बर 2011 है। पाठ्यक्रमों की विस्‍तृत जानकारी हेतु विश्‍वविद्यालय की वेबसाइट www.hindivishwa.org पर लॉग-आन किया जा सकता है। साथ ही संयोजक, एमबीए व बीबीए पाठ्यक्रम, दूरस्‍थ शिक्षा केंद्र, म‍हात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, गांधी हिल, वर्धा (महाराष्‍ट्र) व दूरभाष वर्धा 07152-232957, 251613, नई दिल्‍ली 011-41613875, इलाहाबाद 0532-2424442 पर संपर्क किया जा सकता है। 

संबंधों का नया मानचित्र




संबंधों का नया क्षेत्रीय नक्शा



प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की यह काबुल यात्रा ऐतिहासिक मानी जाएगी, क्योंकि पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान में भारत को क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में प्रतिबिंबित किया है। अब तक काबुल जाने वाले हमारे नेताओं ने हमेशा सिर्फ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध बढ़ाने की बात कही है।


वे यह मानकर चलते रहे कि गुटनिरपेक्ष होने के बावजूद भारत के संबंध अफगानिस्तान के साथ इसलिए घनिष्ठ नहीं हो सकते कि बीच में पाकिस्तान बैठा है और पाकिस्तान की पीठ पर अमेरिका का हाथ है। दूसरे शब्दों में अफगानिस्तान में कितनी भी बड़ी उथल-पुथल हो जाए, भारत सिर्फ तमाशबीन बना रहेगा।


यों भी पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पहुँचने के लिए भारत को कभी खुलकर रास्ता नहीं दिया। अफगानिस्तान जाने वाले रास्तों को कभी भारत से झगड़ा होने पर वह बंद कर देता है और कभी अफगानिस्तान से झगड़ा होने पर! इस घेराबंदी को अब भारत ने तोड़ दिया है। अफगान-ईरान सीमांत पर भारत ने लगभग 200 किमी की जरंज-दिलाराम सड़क बनाकर दुनियाभर के लिए एक वैकल्पिक थल मार्ग खड़ा कर दिया है।


इस वैकल्पिक मार्ग का भी कोई ठोस फायदा दिखाई नहीं पड़ रहा था। इसके दो कारण हैं। एक तो ईरान से अमेरिका के संबंध खराब हैं और दूसरा भारत की विदेश नीति अभी तक पुराने र्ढे पर घूम रही थी। सिर्फ अफगानिस्तान को हजारों करोड़ रुपया देते रहो और जैसा अमेरिका कहे, वैसा करते रहो।


इस नीति में अब बुनियादी परिवर्तन के संकेत सामने आ रहे हैं। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और विदेश सचिव निरुपमा राव को इस बात का श्रेय मिलना चाहिए कि उन्होंने अफगानिस्तान के साथ ‘सामरिक संबंध’ स्थापित करने की पहल की।


इस नए भारत-अफगानिस्तान समीकरण से अब अमेरिका को भी क्या आपत्ति हो सकती है? अमेरिका इस समय भारत और अफगानिस्तान के जितने करीब है, पाकिस्तान के नहीं है। इस सामरिक संबंध का विरोध सिर्फ चीन कर सकता है, लेकिन भारत अपनी कूटनीतिक चतुराई से चीन को भी पटा सकता है।


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष ने अभी तीन हफ्ते पहले काबुल जाकर हामिद करजई को यह सलाह दी थी कि वे अब अमेरिका के बजाय चीन के साथ नत्थी हो जाएं। पाकिस्तान को भनक लग गई थी कि भारत, अफगानिस्तान और अमेरिका मिलकर अब सामरिक संबंधों का कोई नया क्षेत्रीय नक्शा बना रहे हैं।


इस सामरिक संबंध का अर्थ क्या है? इसका सीधा-सादा अर्थ यह है कि आंतरिक शांति और व्यवस्था बनाए रखने में अफगानिस्तान की मदद करना और बाहरी आक्रमणों से उसकी रक्षा करना! इन दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति में अफगान और अमेरिकी सरकारें पिछले 10 साल से नाकाम रही हैं।


अमेरिका ने सवा सौ अरब डॉलर फूँक दिए और हजारों अमेरिकी, यूरोपीय और अफगान जवान कुर्बान कर दिए, लेकिन ओबामा प्रशासन को अभी भी अफगानिस्तान से निकल भागने का रास्ता नहीं मिल पा रहा है। वह जुलाई 2011 में अफगानिस्तान खाली करना शुरू करेगा और 2014 तक उसे खाली कर पाएगा या नहीं, उसे खुद पता नहीं है।


ऐसे में भारत का मैदान में कूद पड़ना बहुत ही स्वागतयोग्य है। यह बात मैं पिछले दस साल से कह रहा हूँ और पिछले पाँच साल में इसे मैंने कई बार दोहराया है कि अफगानिस्तान अमेरिका की नहीं, भारत की जिम्मेदारी है। यदि अफगानिस्तान बेचैन होगा तो भारत कभी चैन से नहीं रह सकता।


हमारे सदियों पुराने इतिहास ने यह सिद्ध किया है। भारत में आतंकवाद ने तभी से जोर पकड़ा, जबसे अफगानिस्तान में अराजकता फैली है। अफगानिस्तान की अराजक भूमि का इस्तेमाल पहले रूस, फिर अमेरिका और सबसे ज्यादा पाकिस्तान ने किया।


सबसे ज्यादा नुकसान भारत का ही हुआ, लेकिन इस नुकसान की जड़ उखाड़ने का बीड़ा भारत ने कभी नहीं उठाया। वह अमेरिका पर अंधविश्वास करता रहा और अमेरिका पाकिस्तान पर अंधविश्वास करता रहा। अब ओसामा कांड ने इस अंधविश्वास के परखच्चे उड़ा दिए हैं।


अब भारत ने थोड़ी हिम्मत दिखाई है। पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा है कि अफगानिस्तान की समस्या हमारी क्षेत्रीय समस्या है। अफगानिस्तान अपनी सुरक्षा जब खुद करेगा तो उसकी मदद करने में भारत पीछे नहीं रहेगा। यानी अमेरिका की वापसी के बाद भारत की कोई न कोई भूमिका जरूर होगी।


अब भी भारत यह कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है कि हम पांच लाख जवानों की राष्ट्रीय अफगान फौज और पुलिस खड़ी करने में आपकी मदद करेंगे। यह काम जितने कम खर्च और कम समय में भारत कर सकता है, दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता। इसका खर्च तो अमेरिका सहर्ष उठा सकता है और इसके लिए अफगान सरकार भी तैयार है।


पिछले नवंबर में अपनी काबुल यात्रा के दौरान मैंने अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई, उनके प्रमुख मंत्रियों, फौज और गुप्तचर विभाग के सर्वोच्च अधिकारियों और लगभग सभी अन्य प्रमुख नेताओं से बात की थी। अफगानिस्तान के उज्ज्वल भविष्य के लिए सबको यही एकमात्र विकल्प मालूम पड़ता है, लेकिन हमारी सरकार पता नहीं क्यों ठिठकी हुई है?



उसे पाकिस्तान पर शक है। यह स्वाभाविक है। पाकिस्तान इस विकल्प को अपनी मौत समझता है। यदि पाँच लाख जवानों की फौज काबुल के पास हो तो पाकिस्तान अफगानिस्तान को अपना पाँचवाँ प्रांत कैसे बना सकता है?


इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री ने न तो अफगान संसद के अपने भाषण में और न ही संयुक्त वक्तव्य में कहीं भी पाकिस्तान पर हमला किया। यह अच्छा किया।


उन्होंने सीमापार आतंकवाद और आतंकवादी अड्डों का जिक्र तक नहीं किया। उन्होंने हामिद करजई की तालिबान से बात करने की पहल का भी स्वागत किया। माना यह जा रहा है कि अब भारत अफगान पुलिस को प्रशिक्षण देगा। यदि यही काम बड़े पैमाने पर शुरू हो जाए तो मान लीजिए कि हमने आधा मैदान मार लिया।


पाकिस्तान हमारा विरोध करेगा। रास्ता भी नहीं देगा। यदि जरंज-दिलाराम सड़क इस वक्त काम नहीं आएगी तो कब आएगी? पाकिस्तान से हुए अमेरिकी मोहभंग की वेला में अगर भारत इतना भी नहीं कर सके तो उसे अपने आपको न तो अफगानिस्तान का दोस्त कहने का अधिकार है और न ही दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय महाशक्ति!


- वेदप्रताप वैदिक

सूचना प्रौद्योगिकी में नागरी लिपि के फिसलते कदम



सूचना प्रौद्योगिकी में नागरी  लिपि के फिसलते  कदम

- डॉ. ओम विकास
Mobile : 09868404129



1983 में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन दिल्ली में हआ था ।  तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था ।  हिन्दी में कंप्यूटर के प्रयोग की संभावनाएँ दिखाने के लिए कार्य का समन्वयन दायित्व भारत सरकार के इलेक्ट्रोनिकी विभाग को  मिला ।  श्री मधुकर राव चौधरी और प्रो. रवीन्द्र श्रीवास्तव का प्रोत्साहन मिला । भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ने सम्मेलन में प्रतिभागियों के रजिस्ट्रेशन की शोध परियोजना BITS पिलानी को दी ।  वैज्ञानिकों ने उस समय सारा रजिस्ट्रेशन कार्य हिन्दी में कर दिखाया ।  सम्भावना को सकारात्मक अभिव्यक्ति दी ।  सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पिछले दो दशक में बहुत तेजी से विकास हुआ है -  कई  नए समर्थ ऑपरेटिंग सिस्टम, विश्व भाषायी यूनीकोड, ओपेन टाइप फोंट, ऑफिस सूट, विश्व व्यापी वेब, मानव भाषा संसाधन की प्रगत प्रविधियां, मशीनी अनुवाद, ओ सी आर, टेक्स्ट टू स्पीच,  इत्यादि ।

छह दशक पहले  स्वराज में अपनी भाषा और संस्कृति को समृद्ध और व्यापक बनाने का लक्ष्य था ।  अतीत पर गर्व था, और जनशक्ति पर भरोसा था ।  गूढ़ ज्ञान को खोजते हैं तो संस्कृत  वाङ् मय   में चले जाते हैं, देवनागरी लिपि में प्रचुर साहित्य भी मिल जाता है ।  21वीं सदी का एक दशक बीत रहा गया है, लेकिन पहले जैसा सकारात्मक संकल्प संशय में बदलता जा रहा है ।  “ सूचना प्रौद्योगिकी और देवनागरी लिपि “  चर्चा और मंथन का विषय बन गया है ।  अभीष्ट लक्ष्य पाने में संशय और विलम्ब से प्रबुद्ध वर्ग चर्चा करता है जिससे लोक कल्याणकारी लक्ष्य को भुला न दिया जाए ।

संकल्पनाओं और विचारों के आदान-प्रदान के लिए भाषा जन्म लेती है ।  भाषिक आदान-प्रदान तत्काल मौखिक संभव है ।  कालांतर में इसे लिपि के माध्यम से सुरक्षित रखा जा सकता है। अतीत में लोग दूर-दूर बसे थे सो उनकी भाषाएं अलग-अलग थी ।  सभ्यता के विकास और आवागमन के बढ़ने से भाषाएं और लिपियाँ एक दूसरे से प्रभावित हुई ।  पाणिनी जैसे मनीषियों ने ध्वनि एवं लेखन में ऐक्य पर बल देते हुए ध्वनियों का स्वर एवं व्यंजन में वर्गीकरण किया, उच्चारण स्थान और विधि के आधार पर लिपि संरचना सारणी बनायी ।  लिपि-व्याकरण भी दिया ।  अन्य सभी लिपियों की अपेक्षा इसका ध्वन्यात्मक, वैज्ञानिक आधार है ।  इसे देवनागरी कहा गया ।  आजकल संक्षेप में इसे नागरी लिपि कहते है ।  इसकी आधार संरचना पाणिनी-सारणी है ।


पाणिनी सारणी (Panini Table)

P = (P1,P2,P3,P4,P5), M = (M1,M2,M3,M4,M5,M6)



व्यंजन
स्वर
स्वरांत


अप्र-अघ
मप्र-अघ
अप्र-घ
मप्र-घ
नासिक्य
अलि जिह्वा
व्युत्पन्न
व्युत्पन्न
व्युत्पन्न
मूल
मूल



M1
M2
M3
M4
M5
M6
व्यंजन स्वर
दीर्ध
हस्व
हस्व
दीर्ध
मात्रा
कंठ
P1
-
-
-
- ा
तालु
P2
(इ+अ)
(अ+इ)
ि ी
मूर्ध
P3
(+अ)
-
-
ृ ॄ
दंत
P4
(लृ+अ)
-
-
लृ
लॄ
- -
ओष्ठ
P5
-
(उ+अ)
(अ+उ)
ु ू
ो ौ

P:  उच्चारण स्थान,      M: उच्चारण विधि
           
 प्रौद्योगिकी में बहुत अधिक शक्तिशाली मशीनें बनीं । मशीनों से  जोखिम भरे खतरनाक काम, भारी भरकम काम और सूक्ष्मतर कामों को नियमित रूप से बिना थके, बिना रूके किया जाना संभव हुआ । बुद्धिपरक कामों को करने के लिए कंप्यूटर विकसित हुए । पहले संख्याओं पर गणना के लिए , बाद में मानव भाषाओं को समझकर विविध संसाधन कार्यों के लिए । कंप्यूटर पर कार्य करने की मूल प्रक्रिया 0-1 के कोड समूहों पर होती है। भाषा के स्वर-व्यंजन, अक्षरों, संख्याओं, विशेष चिह्नों, संचार  चिह्नों आदि को 0-1 के बाइटों में कोडित करते हैं। कंप्यूटर का प्रथम अविष्कार और तदनन्तर विकास रोमन लिपि पर आधारित अंग्रेजी भाषी देशों में हुआ। कंप्यूटर और कम्यूनिकेशन प्रौद्योगिकियों के संयोग से सूचना का संसाधन और  संचार व्यापक हुआ ।  विश्व व्यापी वेब ने  वसुधैव समीपं  को साकार किया ।  दूरियाँ  कम हुई । सूचना की खोज, संक्षेपण, भाषान्तरण  संभव होने लगे हैं ।

            विकास की यात्रा का निष्कर्ष है कि सूचना  प्रौद्योगिकी का विकास  सैद्धांतिक रूप से लिपि या भाषा-परक नहीं है ।  जो रोमन लिपि में अंग्रेजी आदि में संभव है, वह नागरी लिपि में भी संभव है ।

            नागरी लिपि के संदर्भ में प्रौद्योगिकी विकास तो किए गए हैं ।  लेकिन उनका प्रयोग व्यापक नहीं हो पा रहा है। आओ विचार करें,  क्या है, और  क्या नहीं है?

फोंट : पहले ट्रू टाप फोंट विकसित किए गए। तदनन्तर ओपेन टाइप फोंट प्रचलन में आए ।  प्राइवेट स्तर पर और सरकारी अनुदान से बनाए गए ।  कई फोंट मुफ्त में डाउनलोड किए जा सकते है

अड़चन कहाँ है ?  फोंटों के संरचना आधार अलग-अलग होने से फाइल खोलने के लिए वह फोंट लोड किए जाने की आवश्यकता पड़ती है । माइक्रोसॉफ्ट विन्दोज़, एप्पिल का मेक ओएस, लाइनेक्स आदि ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलन में है ।  लेकिन उन पर नागरी फोंट का अलग प्रावधान लेने पर  एक दो फ़ोंट  ही मिलते है और उनमें भी पारस्परिक समानता नहीं । इन ऑपरेटिंग सिस्टमों के आधार पर ऑफिस सूट में कम से कम 10 (ओपेन टाइप फोंट) उपलब्ध कराए जाएँ ।  एक प्रकार के फोंट सभी पर उपलब्ध होने पर फाइल की सूचना का आदान-प्रदान आसान होगा ।  भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने हिन्दी सी.डी. में मुफ्त प्रयोग के लिए कई फोंट दिए हैं लेकिन उनके व्यावसायिक प्रयोग पर रोक लगी है ।  इनमें से कम से कम 10 सुंदर फोंट व्यावसायिक प्रयोग के लिए भी मुफ्त मुक्त किए जाएँ  ।  यह जनता के हित में होगा, इससे नागरी लिपि का प्रयोग संवर्धन होगा, भारतीय भाषाएँ  समृद्ध होंगी । सकल भारती फोंट को भी देने से सभी भारतीय भाषाओं को लाभ होगा ।

फोंट कन्वर्जन यूटिलिटी : फोंट विविध हैं ।  इन्हें आपस में बदलने के लिए और इन्हें यूनीकोड में परिवर्तन करने के लिए फोंट कन्वर्जन यूटिलिटी प्रोग्राम बनाए गए हैं । ये  भी व्यावसायिक प्रयोग के लिए मुफ्त मुक्त उपलब्ध हों ।  जनहित में भारत सरकार पहल करे ।

इनपुट : इनपुट के लिए की-बोर्ड ड्राइवर सॉफ्टवेयर ऑपरेटिंग सिस्टम का अभिन्न अंग है ।  रोमन के लिए QWERTY की बोर्ड सर्वाधिक प्रयोग में है ।  नागरी लिपि में इनपुट के लिए कई प्रकार के की बोर्ड बनाए गए हैं -  इंस्क्रिप्ट, फोनेटिक, रेमिंग्टन, इत्यादि ।  इन्हें अलग से लोड करना पड़ता है। भारत की राजभाषा नागरी लिपि में हिन्दी है ।  विडम्बना है, शासकीय मान्यता, जनसंख्या की बहुलता होते हुए भी सरकारी विभागों, उपक्रमों और सरकारी वित्त पोषित परियोजनाओं में नागरी की-बोर्ड ड्राइवर के पूर्व लोडित होने की अनिवार्यता नहीं है ।  शायद एक प्रतिशत से भी कम, संभवत: नगण्य,  कंप्यूटरों पर ऐसी सुविधा होगी । नागरी की-बोर्ड INSCRIT मानक के अनुसार TVS ने बनाया ।  विडम्बना है कि  सरकारी विभागों में भी खरीददार नहीं मिले । इसलिए TVS ने  इनको बनाना बंद कर दिया ।
स्टाफ सलेक्शन कमीशन (SSC) की टंकण परीक्षा में INSCRIPT  नागरी की-बोर्ड पर टैस्ट की अनिवार्यता अथवा वरीयता  नहीं है ।

कोडिंग : 1980 के दशक में ISCII कोड भारतीय भाषाओं की लिपियों के लिए बनाया गया। परिवर्धित देवनागरी को अन्य भारतीय  लिपियों के लिए आधार बनाया गया । कुछ प्रचलन में आया भी ।  दशक के अंत तक UNICODE का प्रचार-प्रसार बढ़ा ।  वैश्विक स्तर पर वेब पर बने रहने के लिए UNICODE का प्रयोग सर्वमान्य हो गया  है । (संदर्भ:   www.tdil.mit.gov.in )

नागरी लिपि ध्वन्यात्मक है ।  इसका लिपि व्याकरण भी है ।  व्यंजनों के अंत में स्वर के साथ स्वतंत्र ध्वनि को अक्षर (Syllable) कहते है ।  व्यंजन का तात्पर्य स्वर विहीन शुद्ध व्यंजन से है । देवनागरी कोड  हिन्दी, संस्कृत, नेपाली, कोंकणी, कश्मीरी, डोंगरी आदि के लिए और वैदिक संस्कृत के लिए भी प्रयुक्त होता है ।

फोनीकोड : अब तक कोडिंग का आधार रेखीय रूप में पृथक रूप (0…9 संख्या, a….z , A … Z वर्ण रूपिम ;…? पंकच्युएशन चिह्न आदि हैं ।


पाणिनी सारणी से ध्वनि लिपि का परस्पर प्रभाव समझा जा सकता है। स्वतंत्र स्वर रूपिम है, व्यंजन के अंत में स्वर का रूप बदल कर मात्रा बन जाता है जो ध्वन्यात्मक इकाई अक्षर (Syllable) है। V (स्वर), CV  (व्यंजन-स्वर) CCV (व्यंजन-व्यंजन-स्वर) आदि अक्षर हैं । मूल अक्षर (Syllable) को  कोड करके फोनीकोड सभी भाषाओं के लिए उपयुक्त होगा ।  भाषा के अनुसार इनके इनपुट-आउटपुट निश्चित किए जा सकते हैं ।  फोनीकोड भारत का विशिष्ट योगदान होगा ।

लिप्यंतरण : परिवर्धित देवनागरी वर्णमाला से विश्व भाषाओं की अधिकांश ध्वनियों को अभिव्यक्त किया जा सकता है ।  जैसा लिखो, वैसा बोलो ।  यह स्वनिम-रूपिम की समानता अन्य किसी लिपि में नहीं है ।  INSROT लिप्यंतरण मानक बनाया गया था ।  लेकिन प्रयोग में विविध प्रकार की लिप्यंतरण तालिकाएँ मिलती है । (संदर्भ:   www.tdil.mit.gov.in )

वेब पर आधारित नागरी लिपि

वेब पर सूचना का आदान-प्रदान तीव्रतर और सुगमता से हो रहा है ।  2010 में इंटरनेट यूज़र ( प्रयोक्ता ) संख्या क्रम में 10 प्रमुखतम भाषाएँ  हैं -  इंग्लिश, चाइनीज, स्पैनिश, जापानी, पुर्तगीज, जर्मन, अरबी, फ्रैंच, रशियन और कोरियन। हिन्दी-भाषी जनसंख्या (1.2 बिलियन) विश्व में तीसरे स्थान पर है, लेकिन  इंटरनेट पर हिन्दी का स्थान बहुत नीचे है।   

नागरी लिपि में सुगमता के लिए कतिपय सुन्दर मानक फोंट व्यावसायिक दृष्टि से सभी IT उद्योगों को मुफ्त और मुक्त उपलब्ध है ।

डोमेन नेम URL, e-mail ID नागरी लिपि में अभी तक नहीं है ।  औपचारिक चर्चाएँ एक दशक से हो रहीं है । अरबी लिपि में डोमेन नेम हैं, यह बहुत जटिल लिपि है ।  विश्व स्तर की यह पहल सरकार ही कर सकती है ।

नागरी OCR

ओ.सी.आर. पर शोध कार्य दो दशकों से चल रहा है। लेकिन किसी सरकारी विभाग में भी नागरी ओ.सी.आर. नहीं मिलता ।  सभी ओ.सी.आर. द्विलिपिक रोमन एवं नागरी में और अन्य भारतीय भाषा लिपियों के विकल्प के साथ भी उपलब्ध कराए जाएँ ।

W3C में नागरी मानक

W3C (World Wide Web Consortium) वेब पर सूचना के सुगम आदान-प्रदान, रख-रखाव के लिए विविध प्रकार के मानक बनाता है जिन्हें IT कंपनियाँ स्वीकार कर तदनुसार सुविधा प्रदान करती है ।  HTML, XML, CSS इत्यादि में नागरी का स्पष्ट प्रावधान नहीं है ।

नागरी में यूटिलिटी सॉफ्टवेयर



लाइब्रेरी, एकाउंटिंग, स्कूल-कॉलेज, प्रबंधन, ट्रांसपोर्टेशन, पाठ-लेखन, ऑथरिंग आदि सॉफ्टवेयर नागरी लिपि में मुफ्त, मुक्त सर्वसुगम हों। जनकल्याण सॉफ्टवेयर के अंतर्गत सरकार उन्हें उपलब्ध कराए । सरकार की “वन लेपटॉप पर चाइल्ड” (OLPC) परियोजना में भी प्रत्येक  लेपटॉप पर नागरी  का भी प्रावधान हो ।



नागरी लिपि और भाषा
            नागरी लिपि का प्रयोग भाषायी जनसंख्या के हिसाब से बहुत कम है, नगण्य है ।  अंग्रेजी के मोह में भारतीय भाषाओं को राजाश्रय के बजाय राज-उपेक्षा मिलने से नागरी लिपि का प्रयोग शिक्षा, व्यापार, मीडिया में घटता जा रहा है ।

            कुछ लोग ब्लॉग आदि बना लेने से अपनी-अपनी पीठ ठोंक लेते हैं, लेकिन वस्तुस्थिति है कि समाज में नागरी लिपि का प्रयोग हेयकर बनता जा रहा हैं । इंडेन गेस के बिल , ट्रेन रिजर्वेशन के ई-टिकिट, CGHS के मेडीसिन प्रिस्क्रिप्शन  डिटेल आदि जन सेवाओं में देवनागरी में कोई सुविधा नहीं है। ई-गवर्नेंस में छुट-पुट हिन्दी का दिखावा है । क्यों न हो?  आम आदमी की जुबान ऊपर के चन्द लोगों ने कुर्सी मोह में दबाए रखी है ।

संक्षेप में   समस्या टैक्नोलोजी की नहीं, प्रत्युत राजनीतिक इच्छा शक्ति की है । नीति का प्रभावी अनुपालन हो । नीति है, पर अनुपालन नहीं होता है ।  मात्र शृगाल-विलाप है ।


कतिपय सुझाव इस प्रकार हैं -


1.                  नागरी लिपि ध्वन्यात्मक लिपि है । विज्ञान-सम्मत सर्वध्वनि-लिप्यंकण पाणिनी-सारणी का  आधार है । भाषा विषयक मानकीकरण में  पाणिनी-सारणी को ध्यान में रखा जाए ।

2.                  नागरी-रोमन परिचय चार्ट पर्यटन केन्द्रों और  एयरपोर्ट आदि पर उपलब्ध हों ।

3.                  टी.वी. चैनलों पर नागरी में केप्शन दिखाए जाएँ  ।

4.                  नागरी लिपि पर आधारित फोनीकोड का विकास किया जाए ।

5.                  नागरी लिपि के कम से कम दस सुंदर मानक ऑपेन टाइप फोंट व्यावसायिक प्रयोग के लिए भी मुफ्त, मुक्त ओपेन डोमेन में सर्वसुलभ कराए जाएँ ।  यह जनहित में दूरगामी कदम होगा ।

6.                  स्कूलों-कॉलेजों में नागरी OCR, Open Office, Library Info System, Accounting  Software, School Management Software आदि उपलब्ध कराए जाएँ ।

7.                  नागरी में कंटेट क्रियेशन और Web Service इंटीग्रेशन और  XML आदि मानकों पर भी काम किया जाए ।

8.                  वेब पर डोमेन नेम नागरी में भी स्वीकार्य हों ।


9.                  नागरी लिपि के बारे में जागरूक संस्थाएँ  एक जुट होकर तत्काल इन सिफारिशों को कार्य रूप देने के लिए भारत सरकार के संबंधित विभागों से संपर्क करें । निगरानी के लिए watch-dog संस्था बनाएँ  जो समय समय पर नागरी प्रयोग स्थिति और समस्याओं पर  सर्वे कर परिणाम प्रकाशित करे,  नीति अनुपालन के लिए दबाब डाले ।

10.              नागरी सांसद ग्रुप’ का गठन हो । प्रबुद्ध सांसद सदस्य इस मंच से नागरी लिपि और संस्कृति  के संरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है ।




----------------------------------------------------------------------- 

Comments system

Disqus Shortname