ओसामा के बाद की राजनीति







 ओसामा के बाद की राजनीति


ओसामा के उन्मूलन ने पाकिस्तान को बेनकाब कर दिया है। यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान ही विश्व आतंकवाद का अड्डा है। उन सभी पाकिस्तानी शासकों के मुंह पर कालिख पुत गई है, जो बार-बार दावा करते थे कि ओसामा या तो मर गया है या अफगान पहाड़ों की अगम्य गुफाओं में छिपा हुआ है। पिछले पांच साल से वह उनकी नाक के नीचे रह रहा था। इस्लामाबाद से सिर्फ 50 किमी दूर एबटाबाद में और काकुल सैन्य अकादमी सेदो फर्लाग की दूरी पर!



अमेरिकी नीति निर्माता पाकिस्तान के इस दोमुंहे खेल को समझ गए थे, इसलिए उन्होंने कोई झगड़ा मोल नहीं लिया। पाक सरकार या फौज को सुराग तक न लगने दिया और ओसामा को मार गिराया। पाकिस्तानी सरकार हतप्रभ है। लगभग 12 घंटे तक उसकी घिग्घी बंधी रही। वह बोले तो क्या बोले? अगर वह यह कहती है कि ओसामा को मारने में उसने मदद की है तो जनता उसके खिलाफ हो जाएगी और अगर वह यह कहती है कि यह काम अमेरिकियों ने खुद-ब-खुद किया है तो लोग कहेंगे कि तुम अमेरिकियों की कठपुतली हो! यही बात मुशर्रफ ने लंदन में यों घुमाकर कही कि अमेरिकियों ने पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन किया है। इस प्रश्न को पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री टाल गए। उन्होंने ओसामा के उन्मूलन पर सिर्फ संतोष प्रकट कर दिया। आश्चर्य की बात है कि पाकिस्तान के लोगों ने अपनी इस ‘निकम्मी’ सरकार के विरुद्ध अभी तक कोई हुड़दंग क्यों नहीं मचाया?


असली प्रश्न यही है कि पाकिस्तान के प्रति अब अमेरिका का रुख क्या होगा? जाहिर है कि अमेरिकी रवैये में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं होगा, क्योंकि उसे पाकिस्तान की जरूरत अभी भी है। ओसामा के मरने से आतंकवादियों का मनोबल जरूर ध्वस्त होगा, लेकिन वे अपनी दुकानें एकदम बंद कैसे कर देंगे? पिछले दस वर्षो में आतंकवाद अपने आप में एक महाउद्योग बन गया है, जिसका सबसे बड़ा शेयर होल्डर पाकिस्तान का सत्ता-प्रतिष्ठान है। अलकायदा और तालिबान की शाखाएं दुनिया के लगभग 40 देशों में खुल गई हैं और उनमें से ज्यादातर स्वायत्त और आत्मनिर्भर हैं। पाकिस्तान चाहेगा कि उसे डॉलर और हथियार लगातार मिलते रहें, इसीलिए वह आतंकवादी प्रतिक्रिया को बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित करेगा। अमेरिका उसकी बात पर विश्वास भी करेगा, क्योंकि पिछले दिनों ही विकीलीक्स से पता चला था कि अलकायदा के लोगों ने भयंकर धमकी दी है। उन्होंने कहा है कि यदि ओसामा को पकड़ा या मारा गया तो वे कुछ यूरोपीय शहरों को परमाणु बमों से उड़ा देंगे। यों भी सीआईए को पता है कि अलकायदा के लोगों ने उक्रेन, कजाकिस्तान और पूर्वी यूगोस्लाविया के राज्यों से परमाणु हमले के पूरे साधन जुटा रखे हैं।



अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे राष्ट्रों को ऐसे हमलों के प्रति सतर्क तो रहना ही होगा, लेकिन अमेरिका का सबसे बड़ा सिरदर्द यह है कि अगले दो-तीन साल में अफगानिस्तान से उसकी ससम्मान वापसी कैसे हो? ओसामा के सफाये ने ओबामा की छवि में चार चांद जरूर टांक दिए हैं, लेकिन अगर उन्हें चुनाव जीतना है तो वे अफगानिस्तान को अधर में लटकाकर भाग नहीं सकते। अधर में लटका हुआ अफगानिस्तान अमेरिका के लिए अभी से भी ज्यादा खतरनाक और खर्चीला सिद्ध होगा। वह अनेक ओसामाओं की जन्मस्थली बन जाएगा। इसीलिए अमेरिका को अब आतंकवाद के समूल नाश का संकल्प लेना होगा। यह समूल नाश अफगान लोग ही करेंगे। यदि पांच लाख जवानों की शक्तिशाली अफगान फौज खड़ी कर दी जाए तो वह आतंकवादियों से ही नहीं, उनके संरक्षकों से भी निपट लेगी। यह काम बहुत कम समय और बहुत कम खर्च में भारत कर सकता है। इस समय अफगानिस्तान में भारत की लोकप्रियता शिखर पर है। यदि अफगान फौज खड़ी करने में पाकिस्तान सहयोग करे तो बहुत अच्छा, वरना उसके बिना भी अमेरिका को इस लक्ष्य की पूर्ति हर कीमत पर करनी ही चाहिए। खासतौर से यह सिद्ध हो जाने के बाद कि पाकिस्तान ने ही ओसामा को छिपा रखा था।


राष्ट्रपति ओबामा ने यह स्पष्ट करके ठीक ही किया कि अमेरिका की लड़ाई इस्लाम के विरुद्ध नहीं है। वास्तव में ओसामा का आचरण इस्लाम के उच्च और शांतिपूर्ण सिद्धांतों के विरुद्ध था। जिहाद के नाम पर उसने हजारों बेकसूरों को मौत के घाट उतारा। उसने इस्लाम को आतंकवाद और हिंसा का पर्याय बना दिया। आश्चर्य है कि भारत के कुछ जाने-माने तथाकथित मुसलमान नेताओं ने ओसामा को आतंकवादी कहने पर एतराज जताया है। अमेरिका के विरुद्ध उनका गुस्सा बहुत हद तक जायज है, क्योंकि यदि ओसामा छोटा आतंकवादी है तो अमेरिका बड़ा आतंकवादी है, जिसने झूठे बहाने से सद्दाम को खत्म किया और अब गद्दाफी पर ताकत आजमा रहा है, लेकिन यह कैसे माना जा सकता है कि ओसामा आतंकवादी ही नहीं था? बड़ा कांटा छोटे को उखाड़ रहा है, इसका अर्थ यह नहीं कि हम छोटे कांटे को गुलाब कहने लगें।



ओसामा का उन्मूलन जिस तरीके से हुआ, वह भारत के लिए काफी फायदेमंद है। यदि इसमें पाकिस्तान को जरा भी श्रेय मिल जाता तो वह अमेरिकियों को जमकर निचोड़ता। अमेरिकियों से जो भी अतिरिक्त मदद मिलती, उसका इस्तेमाल वह भारत के विरुद्ध करता। अब अमेरिका अपना हाथ थोड़ा खींच सकता है और पाकिस्तान की टांग ज्यादा खींच सकता है। वह उसे मजबूर कर सकता है कि दक्षिण एशिया की समग्र नीति में वह भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चले। भारत की मांग होनी चाहिए कि अब अमेरिका उस आतंकवाद की भी सुध ले, जो भारत के खिलाफ हो रहा है। मुंबई हमले के दोषियों को तो दंडित किया ही जाए (ओसामा की तरह) और उन सब आतंकवादी शिविरों पर भी सीधा हमला किया जाए, जो भारत विरोधी प्रशिक्षण देते हैं। ओसामा समेत सभी आतंकवादी पाकिस्तान की संप्रभुता का निरंतर उल्लंघन करते रहे हैं। पाकिस्तान की सच्ची संप्रभुता की रक्षा तभी होगी, जबकि निरंकुश आतंकवादियों को जड़-मूल से उखाड़ा जाएगा। ओसामा के उन्मूलन ने भारत को नया अवसर दिया है कि वह दक्षिण एशिया में अग्रगण्य भूमिका निभाए। यदि अब भी वह अमेरिका का मौन सहयात्री बना रहा और उसने पहल नहीं की तो वह अमेरिकी वापसी की बेला में स्वयं को सर्वथा निरुपाय और असहाय पाएगा।

-  डॉ.  वेद प्रताप वैदिक
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4 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो होना ही था.... जो ना समझे वो अनाड़ी है :)

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  2. आतंकवाद ने विकराल रूप धारण कर लिया है. इसका अंत करना ही है, पर क्या यह पूरी तरह से अंत हो सकता है ?

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  3. अच्छा रहे अगर लड़ाई सचमुच दहशतगर्दी के खिलाफ रहे; इस्लाम के खिलाफ नहीं.

    पर पाकिस्तान इस ओपरेशन में जिस तरह नंगा हो गया है, उसका असर कम करने के लिए वह ज़रूर भारत के साथ कुछ खतरनाक खेल कर सकता है - पहले करता रहा है न.

    और हाँ, दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र कब तक गरीब की जोरू का किरदार निभाता रहेगा?

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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