एक शोक सभा मोबाईल के जरिए



एक शोक सभा मोबाईल के जरिए




विशेष
Wednesday, 26 December 2007

कवि त्रिलोचन शास्त्री

रेखांकन : मुजीब हुसैन




हिन्दी के खबरिया चैनल और अखबारों में बैठे लोगों को खबरों के नाम पर फिल्म और टीवी से जो भी जूठन या खबरें मिल जाती है उनको बेचारे दर्शकों के सामने परोस दिया जात है। फूहड़ नाच गानों और फिल्मी सितारों की बकवास को दिन भर परोसने के पीछे चैनल वालों का अजीब तर्क है कि उनके दर्शक पढ़े-लिखे नहीं है इसीलिए उनको अपने दर्शकों की रुचि का ध्यान रखते हुए ऐसी ही दो कौड़ी की खबरें दिखाना होती है। तो क्या यह मानलें कि चैनल में बैठे लोगों का भी पढा़ई-लिखाई से कोई वास्ता नहीं है। इस बात में कुछ दम इसलिए लगता है कि किसी चैनल पर कभी किसी हिन्दी साहित्यकार की किसी कृति से लेकर उसके जीने या गुजर जाने पर कोई चर्चा नहीं होती। देश के जाने माने हिन्दी कवि त्रिलोचन के निधन पर देश भर के साहित्यकारों ने मोबाईल के जरिए अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर उनको याद किया। पेश है यह रिपोर्ट।







हिन्दी की प्रगतिशील चिंतन परंपरा के प्रमुख स्तंभ और आम आदमी के अपने कवि त्रिलोचन शास्त्री के निधन पर उत्तर-प्रदेश के ऐतिहासिक नगर, नजीबाबाद में 10 दिसंबर को एक शोक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय साहित्यकारों के अतिरिक्त मोबाइल फोन के माध्यम से देश के विभिन्न राज्यों के प्रसिद्ध साहित्यकारों ने शोक संवेदना व्यक्त कर त्रिलोचन शास्त्री को श्रद्धांजलि अर्पित की। हिन्दी विद्वान डॊ। प्रेमचन्द जैन की अध्यक्षता में उन्हीं के आवास पर संपन्न इस सभा का संचालन मणिपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर देवराज ने किया।




शोक सभा में अरूणाचल से डॊ। विनोद मिश्र ने मोबाइल पर दिये अपने श्रद्धांजलि वक्तव्य में कहा कि त्रिलोचन की कविताओं में लाहौर में रिक्शा चलाने वाले लोगों की तस्वीर भी दिखायी देती है और किसानों की पीड़ा भी। जयपुर से प्रख्यात जनवादी साहित्यकार विजेन्द्र ने त्रिलोचन शास्त्री को लोकधर्मी परंपरा का बहुत बड़ा कवि, तपस्वी व मनीषी बताते हुए कहा कि उन्होंने हिन्दी साहित्य में अनुकरणीय कीर्तिमान रचा। दिल्ली से प्रख्यात वयोवृद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने कहा कि त्रिलोचन भी चले गये अब, मन नहीं लगता। मैं भी जाना चाहता हूँ!, बस पता नहीं कब जाना होगा। यह कहते हुए वह अत्यंत भावुक हो गये।



कोल्हापुर से डॊ। अर्जुन चह्वाण ने उन्हें सरलता एंव सादगी से भरा हुआ महान आदमी बताते हुए कहा कि त्रिलोचन की सादगी और सरलता दिखावे की नहीं थी। उन्होंने अपनी कविता में भी कोई छद्म नहीं पाला। बनारस में निवास कर रहे वाचस्पति जी हिन्दी के बहुत से मूर्धन्य साहित्यकारों के संपर्क में रहे हैं। नागार्जुन और त्रिलोचन शास्त्री से उनकी घनिष्ठता रही है। उन्होंने बनारस से ही मोबाइल पर कहा कि त्रिलोचन जी संध्याकाल में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आ जाते थे। प्रेमचन्द जैन और गुरूवर शिवप्रसादजी के साथ आचार्य हजारी प्रसाद जी के यहाँ भी जाते थे।


महाप्राण निराला ने 1940 में अपनी एक रचना में अपना रचनात्मक अकेलापन देखा था- ``मैं अकेला/ देखता हूँ आ रही/ मेरे दिवस की सांध्य वेला।´´ वाचस्पति जी ने भावुक होकर कहा कि पिछले कुछ समय से धरती और दिगंत के कवि त्रिलोचन ने भी अपनी सांध्य वेला का अनुभव अपने जीवन में करना प्रारम्भ कर दिया था, लेकिन उनका स्वर `धरती´ जो उनका पहला संग्रह था उसी से मिलता हुआ था-आज मैं अकेला हू¡/ अकेला रहा नहीं जाता/ सुख-दु:ख एक भी/ सहा नहीं जाता। त्रिलोचन पिछले वर्षों में सचमुच अकेले हो गये थे। पेट का अलसर फट जाने के कारण वह अपने छोटे पुत्र के साथ ज्वालापुर भी रहे। वह जब तक जीवित रहे चलते रहे। `शब्द´ नाम के सॊनेट संग्रह को वह अपना उत्तम संग्रह मानते थे।


नजीबाबाद के साहित्यकार राजेंद्र त्यागी ने कहा उन्होंने जिस विधा को अपनाया है, वह दुर्लभ है। ऐसा साहित्य अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। पटना से प्रगतिशील साहित्य चिन्तक डॊ। नन्दकिशोर नवल ने विगलित हृदय से त्रिलोचन जी का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि उनसे मेरा संबन्ध 1967 से था। जब वे पटना आते थे, मेरे घर ही ठहरते थे। त्रिलोचन अपनी परंपरा के अंतिम कवि थे। वे आधुनिक कविता के सबसे बड़े कवि भी थे। शमशेर, केदार, नागार्जुन, मुक्तिबोध और त्रिलोचन प्रगतिवादी कवि थे। जिनमें चार पहले ही जा चुके थे। श्रद्धांजलि वक्तव्य के अंत तक आते-आते नवल जी मोबाइल पर ही फूट-फूट कर रोने लगे।



गुवाहाटी से प्रखर पत्रकार, पूर्वोदय के अधिशासी संपादक रवि शंकर `रवि´ ने कुछ वर्ष पहले त्रिलोचन के लिए एक कविता लिखी थी, जिसे वे उन्हें स्वयं सुनाना चाहते थे। अचानक त्रिलोचन जी के चले जाने से वह अवसर भी चला गया। हैदराबाद से प्रख्यात कवयित्री और विश्व भर में हिन्दी साहित्य, भाषा और देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार में जुटी डॊ। कविता वाचक्नवी ने कहा कि ऐसा अनुभव हो रहा है, मानो मुझे व्यक्तिगत क्षति हुई है। उनका भाषा में जो सतत् प्रयोगधर्मिता का अंदाज रहा वह मुझे लुभाता रहा। भाषा पर उनका संपूर्ण नियंत्रण था। वे भाषा के आचार्य कवि थे। नन्द किशोर नवल की भाँति ही डॊ. कविता वाचक्नवी भी त्रिलोचन जी को मिली घातक उपेक्षा से भीतर तक आहत थीं। उन्होंने कहा कि इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि जब भारतीय साहित्य का यह शिखर पुरूष पूरी तरह अशक्त स्थिति में पहुँच गया तो हिन्दी के छुटभैये ठेकेदारों ने इनके संबन्ध में तरह-तरह के स्पष्टीकरणनुमा वक्तव्य जारी किए। सचमुच हिन्दी वालों ने ही उन्हें मार डाला।



नजीबाबाद निवासी साहित्यकार बलवीर सिंह वीर ने इस दु:खद अवसर पर त्रिलोचन जी के प्रति अपनी भावनाएँ प्रकट करते हुए कहा कि आज प्रगतिवादी चेतना का अंतिम स्तंभ ढह गया है। उनके चले जाने से हिन्दी को जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। राउरकेला से ओड़िया और हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान अर्जुन शतपथी ने अपने श्रद्धांजलि वक्तव्य में कहा कि उनके उठ जाने से निश्चय ही हिन्दी जगत की बहुत बड़ी हानि हुई है। त्रिलोचन जी जैसे पितामह कल्प प्रगतिवादी कवि का स्थान सदा के लिए रिक्त रह जायेगा। उन्होंने कवि त्रिलोचन के साथ बिताए समय को भी स्मरण किया।



त्रिलोचन जी के निधन के समाचार के समय हिन्दी के युवा समीक्षकों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा त्रिचुरापल्ली में थे। उन्होंने वहीं से मोबाइल पर कहा कि त्रिलोचन जी के जाने से ऐसा लगा, जैसे अपने परिवार का कोई शिखर खिसका हो। त्रिलोचन जी के न रहने से जनपक्षीय काव्य के क्षेत्र में एक शून्य उत्पन्न हो गया है। वे बहुभाषाविद् थे और शब्दों से कौतुक करने वाले थे। वे भारतीय साहित्य के मूल सरोकारों की पहचान रखने वाले ऐसे कवि थे, जिन्हें हम कालिदास के साथ जोड़कर देख सकते है। भारत की अन्य भाषाओं को भी उन्होंने आत्मसात किया हुआ था। उन्होंने नजीबाबाद के माता कुसुमकुमारी हिन्दीतरभाषी हिन्दी साधक सम्मान समारोह में सन् 1990 में मुख्य अतिथि के रूप में भारत- भर के लेखकों को संबोधित करते हुए हिन्दी भाषा के मानकीकरण का सवाल उठाया था। वह बात आज भी हमारे सामने ज्यों की त्यों है। वे हिन्दी का सार्वदेशिक रूप में मानकीकरण चाहते थे।प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा ने इस बात पर बल दिया कि यदि हम हिन्दी के सार्वदेशिक मानक रूप का विकास करेंगे तो यह हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। गुवाहाटी से सैंटीनल हिन्दी दैनिक के सम्पादक दिनकर कुमार ने कहा कि महान चिंतक और जुझारू जीवन जीने वाले त्रिलोचन शास्त्री के निधन से हिन्दी कविता में कभी न भरा जा सकने वाला एक और शून्य दर्ज हो गया है।



आधुनिक हिन्दी समालोचना में रामविलास शर्मा, नामवर सिंह और प्रकाशचन्द्र गुप्त की परंपरा को नया अर्थ देने वाले, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रोफेसर शंभुनाथ ने कहा कि त्रिलोचन शास्त्री जी ने अनेकता व प्रगतिशीलता की ओर बढ़ते हुए भी अपना संबन्ध लोक संस्कृति और काम करने वालें हाथों से हमेशा बनाये रखा। उन्होंने बहुत अच्छे सॉनेट लिखे हैं। उनकी मृत्यु से प्रगतिशील कवियों का अंतिम स्तंभ भी टूट गया है। साहू जैन महाविद्यालय, नजीबाबाद के हिन्दी विभाग में कार्यरत डॊ। अरूण देव जायसवाल ने अपने श्रद्धांजलि वक्तव्य में कहा कि त्रिलोचन जी आज हमारे बीच से उठकर चले गये, परन्तु इसकी भूमिका बहुत पहले तैयार हो गयी थी। एक रचनाकार का अपने रचनाकर्म से धीरे-धीरे च्युत हो जाना ही अंतत: उसे उसकी मृत्यु की ओर ठेलता जाता है। डॊ. जायसवाल ने पाश्चात्य छन्द सॉनेट को ठेठ हिन्दी छन्द की प्रकृति के अनुरूप ढालने में त्रिलोचन जी की ऐतिहासिक भूमिका का स्मरण भी किया।



नजीबाबाद के चित्रकार एंव कवि इंद्रदेव भारती ने कहा कि त्रिलोचन शास्त्री आम आदमी के अपने कवि थे। वे उसकी पीड़ा को अच्छी तरह समझते थे। भारती जी ने यह भी कहा कि त्रिलोचन जी की कविताएँ सदैव जीवित रहेंगी। ओड़िया-हिन्दी के वरिष्ठ अनुवादक, शंकरलाल पुरोहित ने भुवनेश्वर से त्रिलोचन शास्त्री को भावुक होकर स्मरण करते हुए कहा कि वे त्रिलोचन जी से पहली बार 35 साल पहले बनारस में मिले थे। वे एकदम किसी ग्रामीण गरीब किसान की तरह लग रहे थे। चेन्नई से मोबाइल पर जाने माने हिन्दी और तेलुगु लेखक डॊ। बालशौरि रेड्डी ने त्रिलोचन जी को याद किया। वे उनसे अनेक बार मिले थे। रेड्डी जी ने कहा कि प्रगतिशील धारा के शक्तिमान कवि त्रिलोचन के अभाव में हिन्दी साहित्य के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है। संकट यह है कि उन्होंने काव्य और काव्यभाषा के लिए जीवनभर जिस संघर्ष चेतना की अगुवाई की, वह कार्य अब कौन करेगा।


हिन्दी और मणिपुरी की समीक्षक और अनुवादक डॊ. विजयलक्ष्मी ने इम्फाल से अपने श्रद्धांजलि वक्तव्य में त्रिलोचन जी को उनकी कविताओं के जरिए समझने और समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका कि वे त्रिलोचन जी से मिल पातीं, लेकिन यह भी तो सही है कि कवि किसी न किसी अंश में अपनी हर कविता में होता है। कोचीन, केरल से प्रख्यात अनुवादक और समालोचक डॊ. अरविंदाक्षन ने त्रिलोचन जी के कवि व्यक्तित्व के साथ ही उनके शोधकर्ता ओर शब्दकोश संपादक रूप को भी याद किया।



अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में हिन्दी साहित्य और जैन दर्शन के मर्मज्ञ डॉ। प्रेमचन्द जैन ने त्रिलोचन शास्त्री के जीवन और व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बनारस के उस कालखण्ड का जीवंत चित्रण किया जब त्रिलोचन जी बनारस में प्रसिद्ध कथाकार शिवप्रसाद सिंह के साथ सांध्यकालीन भ्रमण पर निकलते थे और साहित्य चर्चा करते थे। डॊ. जैन ने हिन्दी के इस महान कवि की एक और विशेषता का उल्लेख भी किया, वह थी अपनी कविता के साथ ही अन्य कवियों की कविताओं का स्मरण और प्रभावशाली पाठ। त्रिलोचन जी निराला की, राम की शक्ति पूजा की अद्भुत आवृत्ति किया करते थे।



इस तरह श्रद्धांजलि अर्पित की राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के साहित्यकारों ने अपने प्रिय युगजीवी लेखक को जिनकी भौतिक उपस्थिति वहाँ नहीं थी (कुछ लोगों को छोड़ कर) लेकिन क्या सचमुच भारत के इस महान कवि की शोक-सभा में साहित्य सेवी अनुपस्थित थे? मोबाइल के सहारे लगातार लगभग चार घण्टे चलने वाली ऐसी सभा भारतभर में और कहाँ-कहाँ हुई!



प्रस्तुति:

अमन

कुमार ए-7, आदर्श नगर,

नजीबाबाद-२४६७६३

0 9897742814 / ९४५६६७७१७७

पुनीत गोयल

01341220345

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