क्षमा करना......



- डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र



    बाजार ने आज भले ही रक्षा बन्धन को भाई-बहन का लोकप्रिय पर्व बना दिया हो, मगर शास्त्रीय परम्परा में भ्रातृद्वितीया ही भाई- बहन के पावन  सम्बन्ध का वास्तविक पर्व है। इसे वैदिक काल के सूर्यपुत्र  यम और सूर्यतनया यमी (यमुना नदी) के वृत्तान्त को स्मरण करते हुए यम द्वितीयाभी कहते हैंजिसमें भाई अपनी बहन के यहाँ जाता है,बहन उसे सत्कार-पूर्वक भोजन कराती हैउसके दीर्घायुष्य की कामना करती है। तदनंतर भाई यथाशक्ति वस्त्र-अलंकार आदि उपहारों से बहन का अभिवंदन करता है। (स्वर्णालंकारवस्त्रान्नपूजासत्कारभोजनैः)। यह पर्व मिथिला में भरदुतियाऔर बंगाल में भाईफोटाके नाम से मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन यमराज (धर्मराज) ने अपनी जुड़वाँ बहन यमुना के यहाँ भोजन किया था। मार्कण्डेय पुराणके अनुसार, यमुना (यमी) विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के गर्भ से उत्पन्न, सूर्य की पुत्री है। संज्ञा ने पति के तेज के भय से आँखें बन्द कर ली थींजिससे क्रुद्ध होकर सूर्य ने शाप दे दियाजिससे उसका पुत्र यम मृत्यु का देवता और सब लोकों का संयमन करनेवाला हुआ। दूसरी बार संज्ञा ने सूर्य की ओर चंचल दृष्टि से देखाइसलिए पुत्री यमुना चंचलतापूर्वक नदी के रूप में बहने लगी। अतः इस दिन यमुना तट पर भाई बहन के हाथ का बनाया भोजन करे तो इस कृत्य से आयु और पुण्य वृद्धि होती है।

  वैदिक काल में यम और यमी दोनो देवता ऋषि और मन्त्रकर्ता माने जाते थे। उस समय यम मृत पितरों के अधिपति माने जाते थेबाद में वे मृत्यु के देवता बने। उनका रंग हरा और वस्त्र लाल है।उनका एक अलग लोक ‘यमलोक’ हैजहाँ धर्मराज यम अपने ‘विचारभू’ सिंहासन पर बैठकर प्रेतात्मा के शुभाशुभ कृत्यों पर विचार करते हैं और कर्मानुसार उसे स्वर्ग या नरक भेजते हैं। यमराज का एक नाम महिषवाहन भी हैक्योंकि उनका वाहन भैंसा है। यमराज के अन्य नाम हैं: पितृपतिकृतान्तदंडधरश्राद्धदेवशीर्णपादजीवितेश। उनका लिपिक चित्रगुप्त अपनी बही ‘अग्रसन्धानी’ में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखता है।यमदूत उनके अनुचर हैं। ईसाई सम्प्रदाय में यमराज को प्लूटो कहते हैं।

  जब गाँव में रहता थातब मेरी जेठ बहन कृष्णा सबेरे-सबेरे मुझे नहलाती थीमाथे पर चन्दन-टीका करती थीगोबर से लिपी और अरिपन से सुसज्जित भूमि पर काठ का पीढ़ा बिछाकर उस पर पिठार(चावल का घोलऔर सिन्दूर लगाती थी। उस पीढ़े पर मुझे बिठाकर मेरे दोनो हाथों को अंजली-नुमा जोड़कर उसपर पान का पत्ता और सुपारी रखती थी; उसपर लोटे से जल गिराती हुई यह पढ़ती थी - ‘अमुना नोतलनि जमुना केंहम नोतै छी भाइ केजेना जमुना कें पानि बढ़यतहिना हमरा भाइ के और्दा बढ़य बहन की यह कामना कि जैसे जमुना नदी का जल बढ़ता हैवैसे ही मेरे भाई की आयु बढ़ेआज दिल्ली की जमुना को देखकर निरर्थक हो गयी है। दिल्ली ने सूर्यपुत्री यमुना नदी को गंदे नाले में परिवर्तित कर दिया हैभारतीय नदियों की पवित्रता का माहत्म्य अब शास्त्रों के जीर्ण-शीर्ण पन्नों में ही कैद होकर रह गया है। जब देश में धार्मिक कृत्यों की सामान्य भाषा संस्कृत थीतब बहनें यह मन्त्र पढ़ा करती थीं:
भ्रातस्तवानुजाताऽहं भुंक्ष्व भक्ष्यमिदं शुभम्‌।
प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषतः॥

  बड़ा होने के बाद गाँव छूट गया और छूट गया वह पर्व जिसमें बहन मेरे दीर्घायुष्य के लिए यह अनुष्ठान करती थी। सौभाग्य से बनारस में जिस मुहल्ले में रहने लगाउसमें बंगाली परिवारों का वर्चस्व था। मेरे पड़ोस के घर में ही एक बंगाली छात्रा रहती थी, अपनी मौसी के यहाँ। उसका भी नाम कृष्णा। कृष्णा बनर्जी। वह अपनी माँ की अकेली सन्तान थी। माँ गाज़ीपुर के एक कॉलेज में अध्यापिका थी। कृष्णा मुझसे दो कक्षा सीनियर थी। मैं बीए और वह एमए में। कभी-कभी अपनी मौसी के साथ वह काली मन्दिर पूजा करने आती थी। धीरे-धीरे सम्पर्क बढ़ातो मैं सामाजिक कवच बनकर उसकी भाई की कमी को पूरा करने लगा और वह एक ज्येष्ठा बहन की तरह मुझे पुस्तकेंनोट्स आदि उपलब्ध कराकर मेरी पढ़ाई में मदद करने लगी। दोनों का विषय अंग्रेज़ी साहित्य ही था। भाईफोटा के दिन वह अपने जेबखर्च से पैसा बचाकर मुझे यथेष्ट भोजन कराती थी।मेरी भोजनप्रियता से आह्लादित होकर कहती थी कि मेरी बड़ी इच्छा है कि जब मैं नौकरी करने लगूँ तब मैं तरह-तरह का व्यंजन बनाकर तुम्हें खिलाऊँ। लेकिन वह नहीं हो सकाक्योंकि वह एमए करने के बाद  परिणीता होकर धनबाद चली गयी और कोयला खान के प्रबंधक अपने पति श्री भट्टाचार्य की गृहस्थी सँभालने में पूरी तरह निमग्न हो गयी। जो खास बात हैवह यह कि उससे मेरी बराबर नोंकझोंक भी हो जाती थीक्योंकि कोई किसी से दबना नहीं  चाहता था। विवाद के बाद दोनों की बोलचाल भी बंद हो जाती थी। सामान्य स्थिति होने में कई दिन लग जाते थे।

   एक बार दीवाली के दिन ही  विद्यापति मैथिल थे या बंगाली’  प्रश्न पर हम दोनो में तकरार हो गयी। न वह पीछे हटने को तैयारन मैं। दोनों अपनी-अपनी मातृभाषा में विद्यापति के उद्धरण दे रहे थेलेकिन दूसरा पक्ष उसे मानने को तैयार नहीं। परिणामस्वरूप बोलचाल बन्द। मैं सोचता था कि इस बार भाईफोटा में वह मुझे मिठाई खिलाने नहीं आएगी। लेकिन मेरी निराशा के विपरीत, भाईदूज की सुबह वह एक तश्तरी में मिठाई लेकर आई और मुझसे बिना बोले ठूँस-ठूँसकर मुझे मिठाई खिलाने लगीजैसे बंगाली माँएँ बच्चे को भात का गोला बनाकर खिलाती हैं। मैं अपनी कसम पर अडिग और उसके लिए भी पीछे हटना शान के खिलाफ़ । जब उसने अपने हिस्से की मिठाई भी जबर्दस्ती मेरे मुँह में ठूँस दीतब मुझसे रहा नहीं गया और मैं उसे पकड़कर फूट-फूटकर रोने लगा। उसकी आँखें भी डबडबा गयीं और गोरा मुँह लाल हो गया। उस दिन दोनों को समझ में आ गया कि आन्तरिक स्नेह का सम्बन्ध कितना अटूट होता है। संयोग से यमुना का एक नाम कृष्णा भी है।


  शास्त्र में विधान है कि भ्रातृद्वितीया के दिन बहन के यहाँ अवश्य जाएँ। अपने से छोटी बहन न होतो बड़ी बहन के यहाँ, अपनी बहन न हो तो चचेरी बहन के यहाँवह भी न हो तो ममेरी बहन या फुफेरी बहन के यहाँ जाएँ। शास्त्र यहाँ तक कहता है कि इस दिन जो व्यक्ति बहन के यहाँ न जाकर अपने घर भोजन करता हैवह सीधे नरक जाता है। दूसरी ओरइस दिन बहन के हाथ से स्नेहपूर्वक किया गया भोजन उसके लिए पुष्टिवर्धक होता है - ‘स्नेहेन भगिनीहस्ताद्‌ भोक्तव्यं पुष्टिवर्धनम्‌। शास्त्र यह भी कहता है कि जो बहन आज के दिन भाई की पान से पूजा कर उसे भोजन कराती है, वह सदा सुहागिन रहती है:-
या तु भोजयते नारी भ्रातरं युग्मके तिथौ।
अर्चयेच्चापि ताम्बूलैर्न सा वैधव्यमाप्नुयात्‌।

  इस अनिवार्य नियम में प्रवासी, बीमार और बन्दी भाइयों को छूट मिली है। मेरा एक ममेरा भाई था जो चलने में असमर्थ थामगर इस दिन वह धीरे-धीरे चलकर मेरी बहन की ससुराल जरूर जाता था और हम तीनो प्रवासी भाइयों की कमी अकेले पूरा करता था। किशोरावस्था से ही परदेस में रहने के कारण भ्रातृद्वितीया के दिन अपनी बहनों से मिलना सपना हो गया।

   बिहार में तो इकट्ठे दीवाली से छठ तक छुट्टी हो जाती हैमगर मेरी शिक्षा-दीक्षा उत्तर प्रदेश में हुईजहाँ दीवाली पर इतनी लम्बी छुट्टी शिक्षालयों में नहीं होती। इसलिए मन मसोसकर रह जाता था। बाद में जब नौकरी करने लगातब मुझे लगा कि स्वयं न जा सकूँ तो कम से कम बहनों को भ्रातृद्वितीया  के उपलक्ष्य में कुछ भेंट-स्वरूप राशि मनिऑर्डरकर दिया करूँ। सो,प्रतिवर्ष बिला नागा अपनी पाँचो बहनों को ‘मनिऑर्डर’ भेजना शुरू कियाजो आज भी जारी है। यह राशि बहुत बड़ी नहीं होती थीमगर उसे पाकर जो बहनों को अनिर्वचनीय सुख मिलता था और अपनी ससुराल में जो उसका सोशल स्टेटसबढ़ता था, उसका कोई जवाब नहीं। यहाँ तक कि यदि मनिऑर्डर पहुँचने में देर होती थी, तो बहन से ज्यादा डाकिया परेशान हो जाता था। वह टोकने लगता था कि इस बार अभी तक आपके भाई का मनिऑर्डर क्यों नहीं आया?’  उसे पता था कि इस दिन तक मनिऑर्डर जरूर आ जाना हैक्योंकि उस राशि का उपयोग छठ या अक्षयनवमी को ब्राह्मण भोजन कराने या सिमरिया घाट पर कार्तिक मास का गंगा-स्नान करने में खर्च होगा। इधर जबसे मोबाइल की पैठ गाँवों तक हुई, भ्रातृद्वितीया के दिन मैं फोन भी करने लगा हूँक्योंकि फोन से बात करने से आधी भेंट हो ही जाती है।

  इस बार भ्रातृद्वितीया की सुबह सभी बहनों को फोन करने के बाद अखबार लेकर बैठा तो एक समाचार ने ऐसा विचलित कर दिया कि दिन भर मन नहीं लगा। प्रतिपदा की रात दस बजे जब हरिद्वार के अरबपति साधू अपने -अपने भगवान को छप्पन प्रकार का भोग लगाकर अपने ऐश्वर्य का अधम प्रदर्शन कर रहे थे,उसी समय भारतीय संस्कृति के मूल उत्स तक पहुँचने की लालसा लिये हरिद्वार आयी एक विदेशी युवती को अपराधियों ने ट्रेन से धकेल कर उसका बैग छीन लियाजिसमें उसका पासपोर्ट, विदेशी मुद्रा, क्रेडिट कार्डएप्पल का आइफोन और आइपॉड आदि था। वह नीदरलैंड के वाणिज्यिक नगर ऐम्सटर्डम की है। नाम उसका है फ़्लेअर द‌‌ नूजल। वह हरिद्वार से अमृतसर जाने के लिए देहरादून-अमृतसर एक्सप्रेस में चढ़ी थीजिसे पुराने लोग आज भी लाहौरी पैसेंजरकहते हैं। वहाँ से लक्सर जं. कुछ ही किलोमीटर दूर हैजहाँ वह ट्रेन रात के १२ बजे पहुँची।  लक्सर से ट्रेन चलने के बाद फ़्लेअर शौचालय गयी। वहाँ से निकलते ही नल के पास खड़ा एक व्यक्ति  उसकी कमर में बँधा बैग छीनने लगा। फ़्लेअर ने पूरी ताकत से प्रतिरोध किया। इस पर बदमाश ने उसे चलती ट्रेन से बाहर धक्का दे दिया और खुद भी कूद गया। ट्रेन से नीचे गिरी फ़्लेअर क्षत-विक्षत होकर बेहोश हो गयी और लुटेरा उसकी कमर से बैग खोलकर भाग गया। लगभग एक घंटे के बाद गश्त पर निकले पुलिस प्रभारी ने उस जाँबाज युवती को रेलवे ट्रैक के पास पड़ा देखा। उसने उसे वहाँ से उठाकर अस्पताल में भर्ती कराया।

   अन्य देशों में पर्यटक सिर्फ़ सैर-सपाटे के लिए जाते हैंलेकिन भारत आने वाले विदेशी पर्यटक इस अभागे देश के प्रति बड़ी श्रद्धा-भाव लेकर आते हैं। इसलिए यहाँ पर यदि इस प्रकार का कोई अपराध होता हैतो यह हमारे लिए लज्जा से डूब मरने की बात है। मैं भी गया हूँ। वहाँ के सामान्य लोगों में भारतीयों के प्रति जो सम्मान हैवह मुझे और कष्ट दे रहा है। याद आता है कि ऐम्स्टर्डम में लंच करने के लिए भारतीय रेस्तराँ खोज रहा था। राह चलते एक व्यक्ति से मैने पूछ लिया। जब उसे मालूम हुआ कि मैं इंडिया से आया हूँतब वह रामकृष्णगीतारामायण की बात करने लगा और अपना काम छोड़कर मुझे इंडियन रेस्तराँ तक पहुँचाया। बाद में मालूम हुआ कि उस रेस्तराँ का मालिक पाकिस्तानी है और अपने रेस्तराँ को भारतीय छवि देने के लिए उसने दीवारों पर रामकृष्णबुद्ध आदि के चित्र लगा रखे हैं। ऐसे भारतप्रेमी हॉलैंड की बेटी देवभूमिमें आध्यात्मिक प्यास मिटाने आयेऔर उसकी यह दुर्गति होसोचकर स्तब्ध रह जाना पड़ता है। ठीक भ्रातृद्वितीया की रात एक विदेशी बहनजो स्वामी विवेकानंद की नजरों में भगिनी निवेदिता हैइस प्रकार चलती ट्रेन से किसी बदमाश द्वारा फेंक दी जाती हैऔर उस कोच के सभी सहयात्री सोये रह जाते हैंउस ट्रेन का आरपीएफ़ जवान निरीह अनारक्षित यात्रियों से सुविधा शुल्कवसूलने में व्यस्त होता है और उस ट्रेन का टीटीई एसी कोच में आराम फरमाता रहता हैयह भारतीय रेल का यथार्थ है। हरिद्वार क्षेत्र में अब खूब ठंढ पड़ने लगी है। इस सर्द रात में अकस्मात्‌ हुए इस हादसे को अकेली झेल रही उस विदेशी बहन की दुःस्थिति की कल्पना कर मैं सिहर उठता हूँ। मनुस्मृतिकहती है कि जो राजा अपराधियों को दंड देने में असमर्थ हैवह पापी है और उसे तत्काल सिंहासन से उतार देना चाहिएमगर क्या करूँ, मनुस्मृति की बात कोई मानता नहीं और भारतीय दंड संहिता में राजा को दंडित करने का कोई विधान नहीं हैक्योंकि वह गुलाम नागरिकों पर शासन करने के लिए विदेशी शासक द्वारा थोपी गयी थी। इसलिएक्षमा करो भगिनी निवेदिता। अब यह स्वामी विवेकानंद का देश नहीं है। विश्वगुरुभारत अब तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रह गया है। इसलिए तब तक रुकोजब तक भारत फिर से भारत नहीं हो जाता।



5 टिप्‍पणियां:

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  2. ऐसे कृत्य भारत को ही नहीं पूरी मानवता को शर्मसार करते हैं । आधुनिक जीवन शैली हमारे पुरातन जीवन मूल्यों को तेज़ी से ध्वस्त कर रही है । यह एक नए तरीके का साम्राज्यवाद है जो अपराध , अश्लीलता ,अनास्था और अविवेक का जन्मदाता है । क्या करें कहाँ जाएँ ? डॉ बुद्धिनाथ मिश्र की चिंता जायज़ है । मैं भी क्षमा मांगने के साथ इतना और जोड़ूगा की बहन निवेदिता इस क्रूर संसार में हम सब कहीं न कहीं तुम्हारे अपराधी हैं , यदि चाहो तो हमें क्षमा मत करना । ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति प्रदान करे ।

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  3. "मनुस्मृति कहती है..........जब तक भारत फिर से भारत नहीं हो जाता|" बहुत सुंदर मन की अनुभूति की अभिव्यक्ति| देश का हर नागरिक ऐसा सोचता है परंतु राजनीति का वर्तमान दौर ही कुछ ऐसा है जिसमें अनुशासन की कमी है, मर्यादा की कमी है| हमारे ही शास्त्रों में कहा है "यथा राजा-तथा प्रजा" इसलिए भारत को भारत बनना है तो पहले राजनैतिक सुधार की आवश्यकता है |

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  4. भारत में हर तरह के लोग रहते हैं , यहाँ नीचता की कोई कमी नहीं ! यह भारतीयों का घ्रणित चेहरा है जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए ! आज अपने मेहमानों के प्रति भारतीय परिवारों का रवैया क्या है , हमें अपने गिरेवानों में झांककर देख लेना चाहिए !
    हमें सालों पुराने अपने नारों की भी पुनः रचना करनी चाहिए :)
    सिर्फ ढोल पीटने से हम अच्छे नहीं माने जायेंगे, घ्रणित और लालची सोंच हमारी असलियत बताने को काफी है !
    शुभकामनायें देशवासियों को..

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!