रामलीला मैदान में रावणलीला पर कवि श्री उदय प्रताप सिंह : ना तीर न तलवार से मरती है सचाई

रामलीला मैदान का महाभारत






कल रात रामलीला मैदान में जो रावणलीला हुई उस पर  श्रेष्ठ बुजुर्ग कवि श्री उदय प्रताप सिंह जी की आज ही लिखी ग़ज़ल - 


ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई


ऊंची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फरेब
आखिर में उसके पंख कतरती है सचाई


बनता है लोह जिस तरह फौलाद उस तरह
शोलों के बीच में से गुजरती है सचाई


सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई


जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर ,तो इक रोज़
बाग़े-बहार बन के सँवरती है सचाई


रावण क़ी बुद्धि बल से न जो काम हो सके
वो राम क़ी मुस्कान से करती ही सचाई 
ग़ज़ल, आन्दोलन, सामयिक 




 

5 टिप्‍पणियां:

  1. रचना बहुत बदिया है . सटीक है . विषय से जुडी हुई है मार्मिक है. - वरुण इंगले

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  2. बढिया कविता। उदय प्रताप सिंह जी को सुना था हैदराबाद में॥

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  3. आकाश बड़ा सत्य है धरती है सचाई!/
    हर झूठ को पामाल भी करती है सचाई!!/
    सुनते हैं सच्चे लोग कई मुल्क में हुए,/
    क्यों आज भी जटायु सी मरती है सचाई!!!!!
    [ऋषभ]

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  4. दुष्यंतकुमार ने पहले ही कहा है -
    तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की,
    ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!