उन सबको नंगा करो......

तेवरी : ऋषभ देव शर्मा

ज्वालामय विस्फोट


पग पग घर घर हर शहर , ज्वालामय विस्फोट
कुर्सी की शतरंज में , हत्यारी हर गोट


आग लगी इस झील में , लहरें करतीं चोट
ध्वस्त न हो जाएँ कहीं , सारे हाउस बोट


कुरता कल्लू का फटा , चिरा पुराना कोट
पहलवान बाज़ार में , घुमा रहा लंगोट


सीने को वे सी रहे , तलवारों से होंठ
गला किंतु गणतंत्र का , नहीं सकेंगे घोट


जिनका पेशा खून है , जिनका ईश्वर नोट
उन सबको नंगा करो , जिनके मन में खोट

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1 टिप्पणी:

  1. आपके विचारों से पूर्ण सहमत, और कविता की बानगी देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। साधुवाद।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!