tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post8339422162949813303..comments2023-12-16T02:31:12.678+00:00Comments on हिन्दी-भारत: समस्या का समाधान, बच्चों का दृष्टिकोणUnknownnoreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-24158253492073046132009-11-25T10:56:28.033+00:002009-11-25T10:56:28.033+00:00बच्चे कभी कभी बडे बडों को बच्चा बना देते हैं।
---...बच्चे कभी कभी बडे बडों को बच्चा बना देते हैं।<br /><br />------------------<br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?</a><br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।</a>Arshia Alihttps://www.blogger.com/profile/14818017885986099482noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-79521503436320257282009-11-25T03:57:14.103+00:002009-11-25T03:57:14.103+00:00गंधारी आंखो पर पट्टी नहीं बांधती तो कौरवों को होमव...गंधारी आंखो पर पट्टी नहीं बांधती तो कौरवों को होमवर्क ठीक से करा पाती..:) क्या बात है...रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-42300496958063199322009-11-24T08:44:54.942+00:002009-11-24T08:44:54.942+00:00बाल सुलभता से बडे-बडे विद्वान भी अचम्भित होते हैं।...बाल सुलभता से बडे-बडे विद्वान भी अचम्भित होते हैं। जब वैज्ञानिक अंतरिक्ष के लिए किसी ऐसे पेन की खोज कर रहे थे जो वहां लिख सके और इस परीक्षण में विफ़ल हो रहे थे तब शोध करते वैज्ञानिक के पुत्र ने पिता की उलझन का समाधान बताया कि क्यों न पेंसिल का प्रयोग हो। पिता बालक के इस सरल समाधान से चकित रह गया:)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-14873878604520830482009-11-24T05:33:33.902+00:002009-11-24T05:33:33.902+00:00बच्चे मन के सच्चे होते हैं। उनकी तार्किक बातों को ...बच्चे मन के सच्चे होते हैं। उनकी तार्किक बातों को तर्क के आधार पर ही संतुष्ट करना होगा। मेरी बेटी प्रायः मुझे साँसत में डाल देती है। लेकिन कभी भी उसे डाँट कर चुप नहीं कराता। बच्चों से लगातार बात करने पर हम स्वयं भी सुव्यवस्थित ढंग से सोचने लगते हैं।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.com