tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post7716805754458008622..comments2023-12-16T02:31:12.678+00:00Comments on हिन्दी-भारत: पेचीदा पहेली है, गुस्से से न सुलझेगीUnknownnoreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-76736312895354978912008-09-28T18:41:00.000+01:002008-09-28T18:41:00.000+01:00शायद हमारी यही मानसिकता इस देश का नासूर बन रही है।...शायद हमारी यही मानसिकता इस देश का नासूर बन रही है। हमारे लेखक बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने की बात करते समय हमारे हज़ारों/लाखों मंदिरों के ध्वस्त होने की बात भूल जाते है। आज भी हमारे सोमनाथ और विश्वनाथ मन्दिर उस आक्रमकता की गाथा सुना रहे हैं। यदि देश का हर क्षेत्र अस्मिता का वास्ता देकर पृथकता का आंदोलन शुरू करें तो फिर देश कहां होगा?चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-34221690195613104042008-09-19T05:09:00.000+01:002008-09-19T05:09:00.000+01:00कश्मीर के विकास के लिए अलग से व्यवस्था और प्रयास। ...कश्मीर के विकास के लिए अलग से व्यवस्था और प्रयास। यानि धारा-३७० अपर्याप्त है। कश्मीर को भ्रष्टतम राज्य बनाया किसने? वहाँ की आम जनता क्या इसमें शामिल नहीं? <BR/><BR/>सच्चे विकास के लिए उसे मेहनत करनी पड़ेगी। अनुशासित होना पड़ेगा। कष्ट उठाने पड़ेंगे। आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा लेनी पड़ेगी। यानि रास्ता कठिन है। दूसरी ओर सीमा पार से आतंकवाद को जिन्दा रखने के लिए भारी आर्थिक मदद, कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षा ग्रहण करने पर मुल्लाओं की वाह-वाह, विरोध की राजनीति करने पर अधिक केन्द्रीय मदद, वोट के लालच में नेताओं का साष्टांग प्रणाम, दंगे की मानसिकता से पड़ोसी (लाइन पार के) विरादर खुश! <BR/>जब इतना कुछ ब्लैक मेल के द्वारा मिल रहा हो तो शान्ति की कोशिश क्यों की जाय। वाह कश्मीर, वाह रे कश्मीरियत...।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.com