tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post7709210223990585813..comments2023-12-16T02:31:12.678+00:00Comments on हिन्दी-भारत: बाजार बनाम साहित्यUnknownnoreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-8753390887323004822009-11-26T16:58:39.032+00:002009-11-26T16:58:39.032+00:00आज के साहित्यकार ही नहीं किसी से भी यह उम्मीद करना...आज के साहित्यकार ही नहीं किसी से भी यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि वह अपनी आवाज़ से समाज का उद्धार करेगा। कितने ऊंचे स्वरों में हर कोने से आवाज़ आ रही है कि भ्रष्टाचार रोका जाना चाहिए... और परिणाम है सुखराम व मधुकोडा जैसे कई कई कई....चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-84956519111421630102009-11-26T01:40:03.106+00:002009-11-26T01:40:03.106+00:00niceniceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-15492115470500437612009-11-26T01:16:58.419+00:002009-11-26T01:16:58.419+00:00बहुत अच्छा आलेख। मैं आपकी बातों से सहमत हूं।
ख़ुश्...बहुत अच्छा आलेख। मैं आपकी बातों से सहमत हूं।<br />ख़ुश्बू के बिखरने में ज़रा देर लगेगी<br />मौसम अभी फूलों के बदन बांधे हुये है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com