tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post7391122396810379776..comments2023-12-16T02:31:12.678+00:00Comments on हिन्दी-भारत: अँगरेजी की चक्की में क्यों पिसें बच्चे - डॉ. वेदप्रताप वैदिकUnknownnoreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-10202859554760584442008-05-26T01:28:00.000+01:002008-05-26T01:28:00.000+01:00अनुनाद जी, वैदिक जी के सन्दर्भ में आपने सटीक कहा....अनुनाद जी, <BR/> वैदिक जी के सन्दर्भ में आपने सटीक कहा.अपनी भाषा में विशेषज्ञत्ता पाए बिना विदेशी भाषा से मोह लगाने का हश्र यही होना है क्यॊंकि विदेश की भाषा देश से प्रेम कैसे सिखा सकती है भला? अपनी भाषा के बाद भले ही कितनी भाषाएँ सीखें.<BR/><BR/> आप तो स्वयम् सक्रिय कार्य कर रहे हैं. अच्छा लगा कि आप ब्लॊग पर आए. आपके लेखन व टिप्पणियों का सदा स्वागत हैKavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-80705393297166575042008-05-25T07:09:00.000+01:002008-05-25T07:09:00.000+01:00वेद प्रताप वैदिक का चिन्तन एक आत्मविश्वासी व्यक्ति...वेद प्रताप वैदिक का चिन्तन एक आत्मविश्वासी व्यक्ति का चिन्तन है। ऐसे विचार किसी रट्टु/नकलची को समझ में नहीं आ सकते। भारत का दुर्भाग्य है कि पूरे देश में अंग्रेजी के रट्टुओं की फौज खड़ा की जा रही है। बचपन से ही उन्हे गुलामी की घुट्टि पिलायी गयी है। वे असली भारत के बारे में कैसे सोच सकते हैं?अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/00509099108292716439noreply@blogger.com