माँ का खत




"माँ का ख़त" 
बलबीर सिंह `करुण' 

राजीव अग्रवाल (यूएसए) के सौजन्य से



नवम हिंदी महोत्सव में, बलवीर सिंह 'करुण' जी ने अपनी कविता 'माँ का ख़त' का पाठ किया था। समय की सीमा का सम्मान करते हुए, उन्होंने बेटे के जवाब को श्रोताओं से वंचित रखा। मैंने उस जवाब को हिंदी में अंकित किया है (करुण जी से क्षमा याचना सहित). कृपया स्वीकार करें.


प्रस्तुत है पूर्ण कविता (बेटे के जवाब सहित)। यदि मेरे अंकन में कोई दोष हो तो 'करुण' जी से कर बद्ध क्षमा चाहूँगा।

(राजीव अग्रवाल )


माँ का खत 






अम्मा ने खत लिखा चाव से,

पुत्र न मेरा दूध लजाना।

'एक इंच पीछे मत हटना, 

चाहे इंच-इंच कट जाना' ॥



घर परिवार कुशल है मुन्ने,

गाँव गली में मंगल है

दृश कारगिल की घटना से,

कदम कदम पर हलचल है।


ज्वालामुखी दिलों में धधके,

आँखों में अंगारे हैं

और अर्थियों के पीछे भी,

जय भारत के नारे हैं।




यह केवल खत नही लाड़ले,

घर भर का सन्देश समझ

एक-एक अक्षर के पीछे,

अपना पूरा देश समझ।



धवल बर्फ की चादर पर तू, लहू से जय हिंद लिख आना।

'एक इंच पीछे मत हटना, चाहे इंच-इंच कट जाना'॥





छुटकी ने राखी रख दी है,

इसमें बड़े गुरुर से

और बहू ने वन्देमातरम्

लिखा है सिंदूर से।

मेरे पोते ने चूमा है,

इसको बड़े दुलार से

इसीलिए खत महक रहा है,

कस्तूरी महकार से।



मेरी बूढी छाती में भी

दूध उतर आया बेटे

और गोंद की जगह उसी से,

खत को चिपकाया बेटे।


तेरे बापू लिखवाते हैं, गोली नही पीठ पर खाना

'एक इंच पीछे मत हटना, चाहे इंच-इंच कट जाना'॥




और दुलारे एक बात को,

तू शायद सच ना माने

इतिहासों को स्तब्ध कर दिया,

इस अनहोनी घटना ने।


वीर शहीदों की विधवाएँ,

धन्य कर रहीं धरती को

खुद कन्धों पर ले जाती हैं,

वे पतियों की अरथी को।


और इधर संसार चकित है,

लख उन वृद्ध पिताओं को

आग लगाने से पहले जो,

करते नमन चिताओं को।



मेरा भी माथा ऊँचा हो, ऐसा करतब कर के आना।

'एक इंच पीछे मत हटना, चाहे इंच-इंच कट जाना'॥




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जब पुत्र को माँ का खत मिलता है तो वो भी जवाब देता है जो कुछ इस तरह है।



माँ से:


माँ तुम्हारा लाड़ला, युद्ध में अभी घायल हुआ है

पर देख उसकी सूरत खुद, शत्रु भी कायल हुआ है।

रक्त की होली रचा कर, मैं प्रलयंकर दिख रहा हूँ

माँ उसी शोणित से तुमको, पत्र अंतिम लिख रहा हूँ।

युद्ध भीषण था मगर, ना इंच भी पीछे हटा हूँ

माँ तुम्हारी थी शपथ, मै आज इंचों में कटा हँ।

एक गोली वक्ष पर, कुछ देर पहले ही लगी है

माँ कसम दी थी जो तुमने, आज मैने पूर्ण की है।

छा रहा है सामने, लो, आँख के आगे अँधेरा

दिख रहा है इसमें मुझको, एक नव नूतन सबेरा।

कह रहे हैं शत्रु भी, मैं जिस तरह शैदा हुआ हूँ

लग रहा है सिंहनी के, पेट से पैदा हुआ हूँ।

यह न सोचो माँ कि मैं, चिर नींद लेने जा रहा हूँ 

माँ तुम्हारी गोद में, फिर जन्म लेने आ रहा हूँ॥



पिता से:


मैं तुम्हे बचपन में पहले ही, बहुत दुख दे चुका हूँ

और कन्धों पर खड़ा हो, आसमाँ सर ले चुका हूँ।

तुम सदा कहते थे कि ऋण यह तुझे  भरना पड़ेगा

एक दिन कंधे पे लेके, यों मुझे चलना पड़ेगा।

पर पिता मैं भार अपना, तनिक हल्का कर न पाया

तुम मुझे करना क्षमा मैं, पितृ ऋण को भर न पाया।

हूँ बहुत मजबूर यह ऋण  ले, मुझे मरना पड़ेगा

 अंत में भी आपके, कंधे मुझे चढ़ना पड़ेगा॥




भाई से:


सुन अनुज रणवीर गोली, बाँह में जब आ समाई

ओ मेरी बाईं भुजा! उस वक़्त तेरी याद आई।

मैं तुम्हे बाँहों में ले, आकाश दे सकता नही

लौट कर फिर आऊँगा, विश्वास दे सकता नहीं।

पर अनुज विश्वास रखना, मैं नही थक कर पडूँगा

तुम भरोसा पूर्ण रखना, साँस अंतिम तक लडूँगा।

अब तुम्ही को सौंपता हूँ, बस बहन का ध्यान रखना

जब पड़े उसको जरूरत, वक्त पर सम्मान करना।

तुम उसे कहना कि रक्षा- पर्व जब भी आएगा

भाई अम्बर में नज़र, आशीष देता आएग॥



पत्नी से:


अंत में तुमसे प्रिये मैं, आज भी कुछ माँगता हूँ

है कठिन देना मगर, निष्ठुर हृदय हो माँगता हूँ।

तुम अमर सौभाग्य की बिंदिया सदा माथे सजाना

हाथ में चूड़ी पहन कर, पाँव में मेहंदी लगाना।

बर्फ की ये चोटियाँ, यूँ तो बड़ी शीतल लगी थीं

ऊष्णता से प्यार की, ये हिमशिला गलने लगी थीं।

तुम अकेली हो नहीं, इस भाव को खोने न देना

भर उठे दुख से हृदय पर, आँख को रोने न देना।

सप्तपद की यात्रा से, तुम मेरी अर्धांगिनी हो

सात जन्मों तक बजे जो, तुम अमर वह रागिनी हो।

इस लिए अधिकार तेरा, बिन बताये ले रहा हूँ

माँग का सिंदूर तेरा, मातृभू को दे रहा हूँ॥


- बलवीर सिंह 'करु'




















7 टिप्‍पणियां:

  1. रोंगटे खडे हो गये…………कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

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  2. Aankh bhar aayee. Balidaan ki yeh unchaee kewal Bharat Varsh mein hi mil sakti hai...... Sunil Gupta, NJ

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  3. इतनी अच्छी रचना की तारीफ़ करना अल्फाजों के साथ नाइंसाफी होगी

    इसको महसूस करने की ज़रूरत है| बहुत बहुत बधाई

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  4. सुन्दर लेख जिस में प्रेम ही प्रेम झलकता है। आवश्यक्ता है हमारे समाज में छिपे शत्रू से भी लड़ा जाए ताकि हमारा देश जीवन के हर मैदान में प्रगति करे। परन्तु निरपेक्ष और निःस्वाद हो कर, तब जाकर रोग का सही इलाज होगा।
    हमारा भारत महान.

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  5. पूज्यनीय बलबीर जी,
    यदि कभी मेरा भाग्य प्रबल हुआ और मुझे आपसे मिलने का सौभग्य प्राप्त हुआ तो मैं सीधा आपके श्रीचरणों में गिर कर उन्हें चूम लूँगा

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!