पाकिस्तान को घोषित करें आतंकवादी राष्ट्र



पाकिस्तान को घोषित करें आतंकवादी राष्ट्र

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और गृह मंत्री के अब तक के बयानों ने भारत की क्या छवि पैदा की है ? उन्होंने उसी छवि को मजबूत किया है, जो 1947-48 में बनी थी। औसत पाकिस्तानियों को मैंने कई बार यह कहते सुना है कि भारत बनियों का देश है। आप लोग दब्बू और डरपोक हैं। देखिए मि. जिन्ना ने मि. गांधी को किस बुरी तरह छकाया था। अब भी यही हो रहा है। हमारे गृह मंत्री कह रहे हैं - अबकी बार मार, फिर बताता हूँ। हम जब भी पिटते हैं, यही कहते हैं, चाहे संसद हो, अक्षरधाम हो या मुंबई हो। विदेश मंत्री कहते हैं कि हमारे सारे विकल्प खुले हैं। इसका क्या मतलब ? क्या यह नहीं कि निकम्मे बने रहने का विकल्प भी खुला हुआ है ? मुंबई-हमले को डेढ़ माह बीत गया और भारत डेढ़ इंच भी आगे नहीं बढ़ा। वह सिर्फ जबानी जमा-खर्च में लगा हुआ है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि युद्ध का नाम भी मत लो। उसका तो सवाल ही नहीं उठता। यह बात अपने आप में ठीक है लेकिन युद्ध का माहौल खड़ा करने की जिम्मेदारी किसकी है ? भारत के अपरिपक्व टीवी एंकरों की और सरकार की भी, जिसने कह दिया कि हमारे विकल्प खुले हैं। खुले हैं' का असली अर्थ भारत की जनता को पता है लेकिन पाकिस्तान की जनता मान बैठी कि अब युद्ध सिर पर आ गया है। इस समझ ने पाकिस्तान की फौज, सरकार, विपक्ष, तालिबान, आतंकवादियों और जनता सबको एकजुट कर दिया। आतंकवाद का मुद्दा हाशिए में चला गया और पाकिस्तान बचाओ', यही सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।


पाकिस्तान तो बचा-बचाया ही है। पाकिस्तान भारत से छोटा है लेकिन छोटे मियाँ सुभानअल्लाह ! पाकिस्तान के नेताओं ने भारतीय नेताओं को ऐसी कूटनीतिक पटकनी मारी है कि उन्हें पल्ले ही नहीं पड़ रहा कि वे अब क्या करें ? पाकिस्तान ने मुंबई की गेंद अमेरिका के पाले में डाल दी है। अब हमारे चिदम्बरम वाशिंगटन जाएँगे और बुश की चिलम भरेंगे। बुश की चिलम पहले से ही भरी हुई है, पाकिस्तानी तंबाखू से ! पाकिस्तानियों ने अमेरिकियों को जितना बेवकूफ बनाया है, दुनिया के किसी भी राष्ट्र ने नहीं बनाया है। पिछले सात साल में 12 अरब डालर ढीले कर दिए अमेरिका ने ! पाकिस्तान के फौजियों ने इस पैसे से सबसे पहले अपनी जेबें भरीं, फिर भारत से लड़ने के लिए हथियार खरीदे और अमेरिका को अंगूठा दिखा दिया। आज तक न उसामा बिन लादेन पकड़ा गया और न ही मुल्ला उमर ! वजीरिस्तान, स्वात घाटी और सीमांत के अनेक क्षेत्रों में तालिबानी शिकंजा कसता चला जा रहा है। अफगानिस्तान में उसकी पहुंच अब काबुल तक हो गई है। पाक-अफगान सीमांत पर अमेरिकी मर रहे हैं। सारे पाकिस्तान में अमेरिकियों की थू-थू हो रही है और हमारी सरकार है कि उसने अपना गोवर्धन पर्वत अमेरिका की चिट्टी उंगली पर टिका दिया है। जो अमेरिका अपने मुँह पर भिनभिना रही मक्खियाँ नहीं उड़ा सकता, वह भारत के लिए शेर मारेगा, यह सोच कितना भोला है ? इस सोच पर कौन न मर जाए, या खुदा !

अमेरिकी सरकार का मुख्य लक्ष्य क्या है ? अमेरिका के हितों की रक्षा करना या भारत के हितों की रक्षा करना ? अमेरिका यह कदापि नहीं चाहेगा कि भारत पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों पर हमला करे। क्यों ? इसलिए कि फिर पाकिस्तान भारत से लड़ेगा। वह अपने पश्चिमी सीमांत से अपनी फौजें हटा लेगा। इसी पाक-अफगान सीमांत पर फौजें डटाए रखने के लिए ही तो अमेरिका पाकिस्तान को फिरौती (ब्लेकमेल मनी) चुका रहा है। अमेरिका अपने हितों की हानि क्यों होने देगा ? भारत में चल रहा आतंकवाद खत्म हो या न हो, इससे अमेरिका को क्या फर्क पड़ता है ? थोड़े-बहुत अमेरिकी दबाव के कारण पाकिस्तान यदि कुछ कदम उठा ले तो ठीक, वरना परनाला अपनी जगह बहता रहे। भारत रोता रहे, पाकिस्तान हँसता रहे।

यदि भारत सरकार को पूरा विश्वास है कि मुंबई हमले के लिए पाकिस्तान के गैर-सरकारी ही नहीं, सरकारी तत्व भी जिम्मेदार हैं तो अमेरिकी शरण में जाने से क्या फायदा है ? अमेरिका क्या कर लेगा ? क्यों वह अपनी थैली का मुँह बंद कर लेगा ? क्या वह पाकिस्तान को हथियार देने पर रोक लगा देगा ? ऐसा किए बिना वह पाकिस्तान पर रत्ती भर असर भी नहीं डाल सकता। चिदंबरम अपने प्रमाण किसको दिखाएँगे ? क्या प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की जरूरत होती है ? मुंबई की सच्चाई क्या है, यह सबको पता है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को सीधे सुरक्षा परिषद में जाना चाहिए। संयुक्तराष्ट्र महासभा में जाना चाहिए। दुनिया के राष्ट्रों से घोषित करवाना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवादी राष्ट्र है। पाकिस्तान पर वे सारे प्रतिबंध लगवाना चाहिए, जो कभी मुअम्मर कज्जाफी के लीब्या पर, तालिबान के अफगानिस्तान पर और सद्दाम हुसैन के एराक़ पर लगाए गए थे।

3 टिप्‍पणियां:

  1. भारत अपने आप कॊ ही कमजोर सिद्ध करने पर तुला है, इस अमेरिका को क्या मतलब ,मरना तो सब ने एक दिन है ही लेकिन शर्म शार हो कर मरने से तो अच्छा है.....अमेरिका हमारा बाप तो नही जिसे हम अपने सर पर चढा रहे है,बार बार कमजोर बच्चे की तरह से अपनी शिकायत ले कर जा रहे है....
    मुफ़्त मै जगहसाई भी हो रही है,
    आप ने लिखा बिलकुल सही है, लेकिन यह सब बाते आम भारतीय तो समझ रहा है, लेकिन हमारे खास नेता कबुतर की तरह से आंखे बन्द किये बेठे है शायद बिल्ली उन्हे ना देखे... यह सब उस कबुतर की तरह बेब्कुफ़ है... आप तो यह मरेगे लेकिन इस देश को भी ले डुबेगे.
    धन्यवाद

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  2. विस्तृत आलेख में अनेक सार्थक संदेश भी दिए गए हैं

    अच्छा आलेख है कविता जी एवं वैदिक जी

    आपका
    - विजय

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  3. maine aaj tak suna hi tha, ki kalam mai bahut takat hoti hai. aap ka lekh usmai bilkul sarthak hai.

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!