tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post7215446181401725300..comments2023-12-16T02:31:12.678+00:00Comments on हिन्दी-भारत: रोमन कथा वाया बाईपास अर्थात् हिन्दी पर एक और आक्रमणUnknownnoreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-85708390894742340822015-02-27T19:36:39.632+00:002015-02-27T19:36:39.632+00:00India is divided by complex scripts but not by pho... <br />India is divided by complex scripts but not by phonetic sounds needs simple nukta and shirorekha free Gujanagari script at national level along with Roman script.<br /><br />In internet age all Indian languages are taught to others in Roman script. Think! why?<br /><br />Writing Hindi in Roman script is nothing but reviving our old Brahmi script which was modified by Roman people to their use. We need more research in this area.<br /><br />If Hindi can be learned in a complex Urdu script then why it can't be done in easy regional script?<br /><br />We need to Provide education to children in a simple Gujanagari script and free India from complex scripts.<br /><br />One may go through these links.<br />http://www.omniglot.com/writing/brahmi.htm<br />http://www.omniglot.com/writing/gujarati.htm<br /><br />Also we need standard Roman Alphabet to write Hindi in Roman script<br />.Each consonant produces these 15 sounds when combined with vowels. <br />્,ા,િ,ી,ુ,ૂ,ૅ,ે,ૈ,ૉ,ો,ૌ,ં ,ં,ઃ<br />ə ɑ ɪ iː ʊ uː æ ɛ əɪ ɔ o əʊ əm ən əh .........IPA........ɑɪ ,ɑʊ,æʊ,<br />ạ ā i ī u ū ă e ại ǒ o ạu ạm ạn ạh.........Gujạlish<br />a,aa,i,ii,u,uu,ă,e,ai,ŏ,o,au, am,an,ah<br />a,aa,i,ii,u,uu,ae,e,ai,aw,o,au, am,an,ah<br />a,a:,i,i:,u,u:,ae,e,ai,o:,o,au,am,an,ah<br /><br />कमल कामल कामाल कमाल<br />kạmạlạ kāmạlạ kāmālạ kạmālạ<br /><br />https://groups.google.com/forum/?hl=hi&fromgroups=#!topic/hindishikshakbandhu/aP2VEOwD0cQkenhttps://www.blogger.com/profile/15019060733149644280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-86107809179383955542015-02-27T18:32:52.289+00:002015-02-27T18:32:52.289+00:00India is divided by complex scripts but not by pho... <br />India is divided by complex scripts but not by phonetic sounds needs simple nukta and shirorekha free Gujanagari script at national level along with Roman script.<br /><br />In internet age all Indian languages are taught to others in Roman script. Think! why?<br /><br />Writing Hindi in Roman script is nothing but reviving our old Brahmi script which was modified by Roman people to their use. We need more research in this area.<br /><br />If Hindi can be learned in a complex Urdu script then why it can't be done in easy regional script?<br /><br />We need to Provide education to children in a simple Gujanagari script and free India from complex scripts.<br /><br />One may go through these links.<br />http://www.omniglot.com/writing/brahmi.htm<br />http://www.omniglot.com/writing/gujarati.htm<br /><br />Also we need standard Roman Alphabet to write Hindi in Roman script<br />.Each consonant produces these 15 sounds when combined with vowels. <br />્,ા,િ,ી,ુ,ૂ,ૅ,ે,ૈ,ૉ,ો,ૌ,ં ,ં,ઃ<br />ə ɑ ɪ iː ʊ uː æ ɛ əɪ ɔ o əʊ əm ən əh .........IPA........ɑɪ ,ɑʊ,æʊ,<br />ạ ā i ī u ū ă e ại ǒ o ạu ạm ạn ạh.........Gujạlish<br />a,aa,i,ii,u,uu,ă,e,ai,ŏ,o,au, am,an,ah<br />a,aa,i,ii,u,uu,ae,e,ai,aw,o,au, am,an,ah<br />a,a:,i,i:,u,u:,ae,e,ai,o:,o,au,am,an,ah<br /><br />कमल कामल कामाल कमाल<br />kạmạlạ kāmạlạ kāmālạ kạmālạ<br /><br />https://groups.google.com/forum/?hl=hi&fromgroups=#!topic/hindishikshakbandhu/aP2VEOwD0cQkenhttps://www.blogger.com/profile/15019060733149644280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-82895332074171929342015-01-11T13:16:18.707+00:002015-01-11T13:16:18.707+00:00पिछले पंद्रह सौलह वर्षों में विदेशियों को हिंदी व्...पिछले पंद्रह सौलह वर्षों में विदेशियों को हिंदी व्याकरण एवं साहित्य पढ़ाने दौरान मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि देवनागरी लिपि इतनी कठिन एवं क्लिष्ट है जितना दावा कुछ लोगों द्वारा किया जा रहा है। अधिकतर विद्यार्थी तीन हफ़्तों में देवनागरी लिपि सीख लेते हैं और उन्हें यह लिपि बहुत अच्छी लगती है। चीनी एवं जापानी से तो कहीं आसान। समस्या तो देवनागरी में लिखे गए अंग्रेज़ी शब्दों को लेकर होती है। लिपियों का विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है जो समाज-साँस्कृतिक तत्वों से भी प्रेरित रहती है। हिंदी के लेखकों द्वारा देवनागरी लिपि को रोमन में लिखने का सुझाव समझ से परे है और एकदम तर्कहीन। क्या इनको यह मालूम नहीं कि रोमन लिपि की भी अपनी सीमाएँ हैं और वहाँ भी लिप्यांतरण की समस्या है? इससे बेहतर तो यही है कि ऐसी कृतियों का निर्माण किया जाए जिन्हें पढ़ने के लिए लोग मज़बूर हो जाएँ जैसा कि अन्य भाषाओं में होता है। अधिकतर हिंदी लेखकों के बच्चे ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाते इसका क्या कारण है? Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05912695439385437392noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-69552995938962225042010-03-30T03:38:32.763+01:002010-03-30T03:38:32.763+01:00असग़र वजाहत का मूल लेख जनसत्ता अख़बार में छपा था। ...असग़र वजाहत का मूल लेख जनसत्ता अख़बार में छपा था। जिसके जवाब में ये लेख भी उसी अख़बार में छपा था। ये दोनों लेख इधर छपें हैं:<br />http://janatantra.com/index.php?s=%E0%A4%B5%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A4सोनूhttps://www.blogger.com/profile/15174056220932402176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-77063131474149214252010-03-28T06:27:26.659+01:002010-03-28T06:27:26.659+01:00रोमनगिरी बढ़ती गयी क्योंकि हम स्वीकार करते गये । ई...रोमनगिरी बढ़ती गयी क्योंकि हम स्वीकार करते गये । ईमेल व एसेमेस में वही हाल है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-7223362767522683722010-03-25T02:26:39.371+00:002010-03-25T02:26:39.371+00:00हिन्दी के लिये देवनागरी ही होनी चाहिये और इसके लिय...हिन्दी के लिये देवनागरी ही होनी चाहिये और इसके लिये तकनीकी दक्षता के साथ राजनैतिक संकल्प भी ज़रूरी है । किसी भी स्थिति में रोमन का पक्ष नही लिया जा सकता ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-10963206387931232282010-03-22T14:47:10.843+00:002010-03-22T14:47:10.843+00:00ईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -
पहले हमें यह सोचना ह...ईमेल द्वारा प्राप्त सन्देश -<br /><br />पहले हमें यह सोचना होगा कि अंग्रेज़ी का प्रभुत्त्व क्यों है !<br />अपने भारत में, अगर हम भिन्न-भिन्न भाषाओं की लिपि देखें, तो नेपाली, और मराठी भाषाओं का उदाहरण काफी प्रेरक होगा .<br />लेकिन इसके भी पहले हमें चाहिए कि यदि एक-लिपि-भाषा-आन्दोलन शुरू किया जाए, जिसके अंतर्गत दूसरी सारी भारतीय भाषाओं<br />के लोकप्रिय साहित्य को देवनागरी लिपि में तुलनात्मक रूप से कम मूल्य पर उपलब्ध कराया जा सके, तो सभी भारतीय भाषाओं<br />का व्यवहार करनेवाले, भारतीय-भाषा-भाषी, धीरे-धीरे हिन्दी से जुड़ जायेंगे . उर्दू का उदाहरण हमारे सामने है, सिंधी का भी, और शायद<br />पंजाबी का भी . उर्दू के सिवा शेष सभी भाषाओं तथा उनकी लिपि के उद्गम को संस्कृत में देखा जा सकता है . इन सभी भारतीय<br />भाषाओं में जहाँ एक ओर बोली के तौर पर संस्कृत भाषा के शब्दों और समासों को, प्रत्ययों और उपसर्गों को, अपभ्रंश स्वरूप प्राप्त<br />हुआ, वहीं लिपि में भी देवनागरी के वर्ण-विन्यास में विरूपण (या परिवर्त्तन) आया .<br />अब यदि पालि भाषा के बारे में देखें, तो जिसे संस्कृत अच्छी तरह से आती है, वह पालि के संस्कृत उद्गम को सरलता से पहचान सकेगा .<br />मैंने विधिवत पालि नहीं सीखी, लेकिन पालि के एक-दो प्रसिद्ध ग्रंथों के यत्किंचित अध्ययन से लगता है कि पालि भाषा, खासकर बौद्ध<br />और जैन दर्शन के ग्रंथों में प्रयोग की जानेवाली भाषा संस्कृत के इतनी निकट है, जितनी कि हिंदी या दूसरी कोई भी भारतीय भाषा शायद<br />ही हो .<br />तात्पर्य यह, कि हिन्दी के लिए अनायास प्राप्त विरासत को कचरे में फेंककर, देवनागरी जैसी, वैज्ञानिक लिपि को छोड़कर, रोमन जैसी<br />अपेक्षाकृत अविकसित, अवैज्ञानिक लिपि को अपनाना, माता को नौकरानी के समान तथा नौकरानी को माता का स्थान देने जैसा होगा .<br />शुरुआत दक्षिण भारतीय भाषाओं से होनी चाहिए, क्योंकि, दक्षिण भारतीय भाषाएँ, जैसे कि मलयालम, कन्नड़, और तेलुगु के शब्दों का<br />उच्चारण जहाँ, हिन्दी के ही समान है, वर्ण-विन्यास के अनुरूप ही होता है, वहीं तमिळ में ऐसा नहीं है .<br />अब यदि तमिळ की संरचना देखें, तो उसका अपना वैज्ञानिक आधार है, जो स्वरोच्चार (फोनेटिक्स) के कुछ ऐसे नियमों का पालन करता है,<br />जो संस्कृत में अपवादस्वरूप ही मान्य है . इसका अर्थ यह नहीं, कि वह अवैज्ञानिक है . उसका अपना महत्त्व है, लेकिन यहाँ उस का उल्लेख<br />करना अनावश्यक जान पड़ता है . विचारणीय है कि 'द्रविड़' शब्द भी संस्कृत भाषा का ही शब्द है . तमिळ का अपना समृद्ध इतिहास रहा है,<br />किन्तु वह संस्कृत के विरोध में नहीं हुआ .<br />तात्पर्य यह कि कि अंग्रेज़ी का प्रभुत्त्व जिस प्रकार स्थापित हुआ, हिंदी तथा देवनागरी का वर्चस्व भी उसी रीति से हो सकता है .<br />जब हम किसी वृक्ष की एक ही जड़ को पोषण देते हैं, तो पूरा वृक्ष ही नष्ट हो जाता है . किन्तु जब हम उसकी सभी जड़ों को, (जो कि एक ही मूल<br />की अलग-अलग शाखाएँ होती हैं,) एक साथ और साथ-साथ पोषित करते हैं, तो पूरा वृक्ष विक्सित होता है, पुष्ट होता है . इससे तमाम भारतीय<br />भाषाओं का भला होगा . किन्तु संस्कृत को अन्य भाषाओं से भिन्न साबित कर, इन भाषाओं में परस्पर वैमनस्य पैदा करना तो अंग्रेजों की बहुत<br />पुरानी चाल रही है .<br />मुझे लगता है कि उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर देवनागरी के लिए कुछ किया जा सके तो यह न सिर्फ हमारे अपने लिए, वरन हमारी सारी<br />भाषाओं के लिए भी परम हितकर होगा . आज जैसे अंग्रेज़ी हमारी आदत बन रही है, उससे उबरना ज़रूरी है .<br /><br />देवनागरी के सन्दर्भ में मैंने आज ही एक ब्लॉग पोस्ट http://vinaysv.blogspot.com किया है, कृपया पढ़कर उपकृत करें . धन्यवाद !<br /><br />सादर,<br />विनय .Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-90809116494457369432010-03-22T08:49:52.173+00:002010-03-22T08:49:52.173+00:00चिंता काहे करते हो भाई....यूनिकोड आने के बाद से इन...चिंता काहे करते हो भाई....यूनिकोड आने के बाद से इन भाई लोगों को बहुत धक्का लगा होगा....दरअसल मेरे जैसे लोगों को अब अंग्रेजी मैं टाईप करते बहुत जोर आता हैं....और हिंदी फटाफट....खैर आप का लेख बहुत ही अच्छा है.....बधाई...थोङा छोटा होता तो ठीक रहता..drdhabhaihttps://www.blogger.com/profile/07424070182163913220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-40812521456289259392010-03-22T05:51:58.459+00:002010-03-22T05:51:58.459+00:00हमारे देश में किराए के मकान को अपना समझ लेने की आम...हमारे देश में किराए के मकान को अपना समझ लेने की आम आदत है.<br />लोगों को पढ़ना या बोलना नहीं आता हो लेकिन आज हिन्दी निर्विवाद रूप से देश के आम लोगों के संपर्क भाषा बन चुकी है .<br />इसका उदाहरण देश के हर कोने में देखा जा सकता है . जो काम प्यार से हो सकता है वही स्थायी होता है, दबाव से केवल विवाद की रोटियाँ सेकी जाती हैंडॉ महेश सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/18264755463280608959noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-50614089140280099762010-03-21T14:33:36.020+00:002010-03-21T14:33:36.020+00:00बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
राजभाषा हिन्दी...बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।<br />राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।<br />हम आपकी इस मुहिम में साथ हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com