tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post6916032081763786612..comments2023-12-16T02:31:12.678+00:00Comments on हिन्दी-भारत: रसांतर : न इधर के न उधर के - राजकिशोरUnknownnoreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-59025368793108465062008-09-05T20:46:00.000+01:002008-09-05T20:46:00.000+01:00धन्यवाद ऋषभ जी व सिद्धार्थ जी.सन्तोषी सदा सुखी की ...धन्यवाद ऋषभ जी व सिद्धार्थ जी.<BR/>सन्तोषी सदा सुखी की स्थापना में जमे हुए जैसा लगना सम्भवतः कोडीकरण और डिकोडीकरण में छूटे रह जाने जैसा है. यहाँ तो सीधे सीधे कुन्द पड़े राष्ट्रीय खेल-चरित्र के बाजारीकरण जैसे मुद्दों पर तीखी चोट है, बन्धु!Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-26788718654969641732008-08-27T18:02:00.000+01:002008-08-27T18:02:00.000+01:00“जब खेलने को कोई व्यक्ति या समूह अपना पेशा या व्यव...<B>“जब खेलने को कोई व्यक्ति या समूह अपना पेशा या व्यवसाय बना लेता है, तो वह जीवन के एक पहलू को पूरा जीवन मान बैठता है। इस तरह की अवधारणा में कोई बुनियादी गड़बड़ी है। शरीर को स्वस्थ और मजबूत रखना चाहिए, लेकिन पहलवान बनना किसी भी सोच-विचारवाले आदमी का लक्ष्य नहीं हो सकता।”</B><BR/><BR/>अब इस गहराई में सोचने वाले हों तो हम ओलम्पिक में नंगे ही अच्छे... हम तो समझते थे कि खेल प्रतिस्पर्धाएं व्यक्ति के क्षमता संवर्द्धन के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती हैं, लेकिन यहाँ तो <A><I>संतोषी सदा सुखी</I></A> टाइप विचार जमा हुआ है। जमाये रहिए जी...सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8714172719590854723.post-84754151444240112672008-08-26T20:10:00.000+01:002008-08-26T20:10:00.000+01:00राष्ट्रीय आकांक्षा और स्वप्नसम्पन्नता के अभाव के क...राष्ट्रीय आकांक्षा और स्वप्नसम्पन्नता के अभाव के कारण ही हम संसाधनसंपन्न होकर भी विपन्न राष्ट्र ही हैं.<BR/><BR/>अत्यन्त विचारोत्तेजक आलेख उपलब्ध कराने के लिए आभार !RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.com