स्मृति ईरानी का ड्रामा और अभिनय ?


स्मृति ईरानी का ड्रामा और अभिनय ? 
- कविता वाचक्नवी 



‪#‎स्मृति‬ ‪#‎SmritiIrani‬ जी के वक्तव्य पर जिन्हें साँप सूँघ गया है, जिनके पास उन तर्कों के लिए अपने झूठों की सफाई में एक उत्तर भी नहीं है और उसके बावज़ूद ‪#‎तमाशेबाज़‬ हैं, वे अब‪ #‎अभिनय‬ का नाम लेकर मुँह छिपाने की कोशिशें कर रहे हैं। इन्हें तब तक स्त्रियों से कोई शिकायत नहीं होती जब तक वे इनका मनोरंजन करती रहती हैं, या उन स्त्रियों से भी कोई दिक्कत नहीं होती जो अपने 'तिरियाचरित्तर' में फाँस कर इन्हें उल्लू बनाए सदा अपना उल्लू सीधा करती हैं क्योंकि अक्ल के दुश्मन दो कौड़ी की अक्ल वाले ये, स्त्री के ‪#‎घाघरे‬ को ही अपनी ‪#‎जन्नत‬ समझते हैं और बदले में सारी उम्र ‪#‎इस्तेमाल‬ होने/करने को तत्पर रहते हैं। 

पर इन्हें कष्ट होता है हर उस स्त्री से, जो इनकी घाघरा पलटन पर थू करती हैं, इनकी आँख में उँगली डाल सच दिखाने का ‪#‎साहस‬ जिनके पास होता है, जो इन्हें इनके असली चेहरे दिखा सकती हैं और जो न इस्तेमाल होतीं हैं, न इस्तेमाल करती हैं।

यह ‪#‎लम्पट‬ ज़मात ऐसी तेजस्वी स्त्रियाँ देखने लायक नहीं है। इन्हें तो लुंजपुंज या लटके-झटके वाली औरतें मनोरंजन के लिए चाहिएँ।

ये ‪#‎पुरुषवादी‬ घिनौने मस्तिष्कों वाले लोग जो अपढ़-से-अपढ़ और अपराधी-से-अपराधी नेताओं तक के आज तक चरण-चुम्बन करते आए हैं पर कोई स्त्री यदि सच्चे अर्थों में 'योग्य' व समर्थ-सबल हो तो ये बहाने ढूँढते हैं उसे नीचा दिखाने के और उसे अपमानित कर अपना निर्लज्ज ‪#‎मर्दवाद‬ दिखाने के। ऐसा करने में वे स्त्रियाँ भी कम नहीं रहतीं जो मर्दों के हाथ में‪#‎कठपुतली‬ बने रहने या मर्दों को अपने हाथ की कठपुतली बनाए रखने से आगे किसी संसार की कल्पना में समर्थ नहीं होती हैं। भले ही वे अपने को समर्थ स्त्री समझती रहें। मेरी नजर में ऐसी स्त्रियाँ उस स्त्री जैसी समर्थ हैं जो ‪#‎पान‬ की पीक टपकाती किसी ‪#‎कोठे‬ की ‪#‎मालकिन‬होती है और कमजोर बेचारी लड़कियों से ‪#‎धंधा‬ करवा उनकी मालकिन और मसीहा समझती है खुद को और सबल स्त्री होने का ‪#‎गुमान‬ और रौब पाले घूमती है।

इन सब के लिए ‪#‎राजनीति‬ के गंदे अखाड़े में अपनी योग्यता, साहस और सामर्थ्य के बल पर सबको पटखनी देने वाली नेतृत्वसक्षम ‪#‎स्त्री‬ भला किस काम की? न तो वह लटके-झटकों से इनका मनोरंजन करेगी, न इनके हाथों इस्तेमाल होगी, यानि न इनके इशारों पर नाचेगी और न नचाएगी; तो इन बेचारे नौटंकी और तमाशेबाजों की दुकान कैसे चलेगी? इनका मजमा तो उखड़ ही जाएगा, मनोरंजन पर मनो पानी पड़ जाएगा, ये मनोरंजन और भोग के विलास में डूबे रहने के आदी हैं, वही आपसी इस्तेमाल वाला ‪#‎विलास‬ इनके भोगलालसा का चरम है, इनके लिए ‪#‎देश‬, तथ्य, सबल स्त्री, ईमानदारी, योग्यता, सामर्थ्य, शक्ति आदि जैसी शब्दावली भी भोग में व्यवधान है। इन्हें इनके रंगीन घाघरों के सड़ाँध मारते राग-रंग में ही अपनी चरममुक्ति समझ आती है। फैब इण्डिया के ट्रायल रूम में वस्त्र बदलने जाने पर स्त्रियों के प्रति देहवादी सोचवाली घाघरामुखी पलटन के छिपाए कैमरे भी तो स्मृति ने ही तो पकड़े थे ने. इन लोगों को स्त्री के रूप में एक महिला के अपमान की इच्छा बार बार होती है.  इनकी समझ और स्वार्थ की सीमा यही है, ‪#‎स्तर‬ यही है। 

और हम इनसे किसी समझदारी, सच्चाई, साहस, देशहित आदि की अपेक्षा करते हैं। कितने मूर्ख हैं हम। अरे भई, इन्हें सस्ते सड़कछाप परफ्यूम में डूबे कुछेक घाघरे चाहिएँ बस, दे दो ताकि अपने ‪#‎बेशर्म‬ मुँह तो छिपा ही सकें ये।

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