सम्मान लौटाने के षड्यन्त्र के बदले चलाएँ 'पुस्तक जलाओ' अभियान

सम्मान लौटाने के राष्ट्रविरोधी षड्यन्त्र के बदले चलाएँ 'पुस्तक जलाओ' अभियान 

- कविता वाचक्नवी


सम्मान लौटाने की यह तथाकथित मुहिम दारू और बोटी देने वाली कॉंग्रेस द्वारा अपने पालतू लोगों पर दबाव बना कर जारी करवाई गई है, इसमें कोई संदेह नहीं। जिन्हें उसने बोटी और दारू दे -दे कर पाला, NGOs के माध्यम से काले कारोबारों से / का  लाभ पहुँचाया, विदेश यात्राएँ करवाईं और कई तरह के अपराध में साथ रखने के लिए इनके स्वार्थ और टुच्चे लाभ पूरे करने के बड़े से बड़ा फायदा इन्हें पहुँचाया। 

अब जबकि  
- कॉंग्रेस सत्ता से बाहर है, 
- इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को बोटियाँ देने की स्थिति में अब वह नहीं 
- एक शराब की बोतल तक पर बिक जाने को तैयार रहने वाले पत्रकारों और मीडिया वालों के भी दुर्दिन हैं, उन्हें विदेश यात्राएँ मोदी जी सरकारी खर्चे पर एकदम बंद कर चुके हैं अतः वे बदला लेने को उतारू हैं
- NGOs पर काफी लगाम है तो स्वार्थ सिद्धि का बड़ा दूसरा द्वार भी बंद है 
- कॉंग्रेस के काले कारनामे उजागर होने के दिन आ रहे हैं 
- अतः राजनैतिक और राष्ट्रीय अपराधों में बुद्धिजीवियों का सहयोग भी जनता के सामने आएगा 
- नेता जी सुभाषचन्द्र बोसस की फ़ाईलें उजागर होने के दिन दिनों-दिन निकट आ रहे हैं तो बड़ी साजिश खुलने से छटपटा रही है कॉंग्रेस 

 भारत की छवि और शक्ति और सामर्थ्य दिनों दिन बढ़ रहा है, जो देश के भीतरी और बाहरी शत्रुओं के लिए भीषण चिन्ता का कारण है। और उनके लिए तो विशेष चिन्ता का जो भीतर बैठ कर बाहरी शत्रुओं के साथी और सहयोगी हैं : विशेषतः चीन और पाकिस्तान समर्थक या उनसे पोषण पाने वाले उनके समर्थक। 

इसलिए इन सब कारणों के चलते कॉंग्रेस ने अपने पालतू बुद्धिजीवियों पर और उन बाहरी शत्रुओं के पैसे पर पलने वाले उनके समर्थकों / साथियों / संस्थाओं पर सोची-समझी नीति के तहत दबाव या धमकी या दोनों डाले गए हैं कि वे उनके अहसानों के बदले अब विश्व में ऐसा माहौल बनाएँ ताकि मोदी सरकार पर दबाव हो, छवि बिगड़े और चुनावों में क्षति पहुँचे। 

राष्ट्रविरोधी तीन मुख्य लक्ष्य जो इस सारी नौटंकी से साधने की साजिश रची गई है - 


1) पहला लक्ष्य था, कि पाकिस्तान  ओबामा से भेंट के समय अधिकाधिक हथियार उगाह सके और कश्मीर मुद्दे पर ओबामा का साथ मिल सके। इसीलिए नवाज़ की भेंट के बाद यह थोड़ा ठण्डा पड़ गया था।  पर दोनों बातें नहीं हुईं । 

2) दूसरा इसका आपराधिक लक्ष्य अब है कि 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' में भारत को स्थायी सदस्यता न मिल सके, क्योंकि ऐसा होना पाकिस्तान और चीन के हित में नहीं है।  

3) तीसरा लक्ष्य है जनवरी से पहले सरकार गिराने की साजिश; क्योंकि जनवरी में सुभाषचन्द्र बोस की फ़ाईलें सार्वजनिक करने की घोषणा हो चुकी है और नेहरू वंश के कलंक खुलने का डर सोनिया और कॉंग्रेस की नींद हराम किए है

इनके साथ ही  काले धन और कॉंग्रेस के काले काण्डों की कलई  भी खुलने जा रही है, गत दिनों ही 200 कंपनियों के एक ही मालिक ( कंपनियाँ विधिवत् काले धन को सफ़ेद बनाने का धंधा करती थी) वाले प्रकरण में सोनिया-राहुल का भी कम्पनी का मालिक होना प्रमाणित हो चुका है तो फन्दा गर्दन पर कस रहा है। इसलिए कोई सन्देह नहीं कि यह सारी नौटंकी कॉंग्रेस और देश के शत्रुओं के पक्ष में की जा रही है। निस्संदेह कॉंग्रेस की ओर से योजनापूर्वक इसके लिए इन पर दबाव भी बनाया गया होगा कि यदि ऐसा न किया तो तुम सब की करतूतें भी उजागर कर दी जाएँगी। इतिहास के साथ छेड़छाड़ में इतिहासकारों ने साथ दिया ही और देश के शीर्ष वैज्ञानिकों की एक-एक कर हुई हत्याओं के पीछे की साजिश में इन कॉंग्रेस के पिट्ठू वैज्ञानिकों की कुछ-न-कुछ सहयोगी भूमिका है ही। तो ऐसे अनेकानेक काले कारनामों में साथ होने का सत्य उजागर होने का डर स्पष्ट है। 

आशीष कुमार अंशु ने इन नौटंकीबाज अपराध-सहयोगी लेखकों की इस नौटंकी के बदले इनकी पुस्तकें वापिस करने का जो अभियान प्रारम्भ किया है,  वह उचित ही है, किन्तु इसमें हिन्दी के पाठक से अधिक सहयोग न मिलेगा क्योंकि अधिकांश पुस्तकें सरकारी खरीद और विश्वविद्यालयों, संस्थाओं आदि के पुस्तकालयों में उनके पैसे से खरीदी जाती हैं। पुस्तक लौटाने के लिए बेचारे आम पाठक को डाक खर्च का और भार आ जाएगा। इसलिए लौटाने की बजाय 'पुस्तक जलाओ' अभियान होना चाहिए। लोग बाग चुन-चुन कर इनकी और इनके समर्थकों की पुस्तकें जलाएँ और जलाए जाने के चित्र खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड करें। पुस्तकें जलाने वाली अपनी प्रत्येक पोस्ट के साथ सबसे पहले  #BookBurning और #CampaignAgainstAwardReturning का हैशटैग अवश्य लगाएँ  अर्थात् इसी प्रकार कॉपी-पेस्ट कर अवश्य लिखेँ ताकि यह एक अभियान बन सके।#KavitaVachaknavee

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