`अस्‍पताल के बाहर टेलीफोन’ के लिए पवन करण को `केदार सम्‍मान' प्रदान






`अस्‍पताल के बाहर टेलीफोन के लिए पवन करण को  `केदार सम्‍मान' प्रदान 




[Image(461).jpg] केदार शोध पीठ, बॉंदा द्वारा हिन्‍दुस्‍तानी एकेडमी, इलाहाबाद के सभागार में आयोजित भव्‍य समारोह में कल ‘अस्‍पताल के बाहर टेलीफ़ोन’ कविता संग्रह के लिए पवन करण को केदार सम्‍मान,1 2011 से सम्‍मानित किया गया। सम्‍मान समारोह में महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा के कुलाधिपति प्रो.नामवर सिंह, भारत भारद्वाज, दूधनाथ सिंह, पवन करण व महेश कटारे मंचस्‍थ थे। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने समारोह की अध्‍यक्षता की।














विशिष्‍ट अतिथि के रूप में नामवर सिंह ने कहा कि पवन करण की कविताओं में बैचेनी, तड़प दिखायी देती है। ऐसी सादगी और सरलता महानगरों के लेखकों में कम देखने को मिलती है। इन्‍होंने अपनी निजता की रक्षा किया, पहले दो चार मुहावरों और छंदों को लेकर कविताएं लिखी जाती थी, पवन करण ने इससे इतर अपनी पहचान बनायी।


दूधनाथ सिंह ने अपने वक्‍तव्‍य के हवाले से कहा कि केदारनाथ अग्रवाल शताब्‍दी वर्ष के समापन अवसर पर यह कहना चाहता हूं कि उनको नए सिरे से पढ़ने की जरूरत है। केदारनाथ अग्रवाल की कविता में क्‍या नहीं है, का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि केदारनाथ अग्रवाल की कविता में कोई अंतर्विरोध के तत्‍व दिखाई नहीं देते हैं। उनकी कविता तनाव से तनी नहीं हैं। पढ़ने पर सोचने की गुंजाइश नहीं मिलती है। इनकी कविताएं वैचारिक उद्विग्‍नता की ओर नहीं ले जाती हैं। उन्‍होंने केदार को मुक्‍तकों का कवि बताया।




अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि पवन करण की कविताओं में छोटे तत्‍व भी बड़े कंसर्न की ओर ले जाती हैं। जो इनको विशिष्‍ट कवि बनाते हैं। इनकी कविता का स्‍त्रोत, आज का हमारा जीवन और समाज का यथार्थ है। इन्‍होंने हमारे समय के हाशिए के लोगों पर कलम चलाया है। ऐसे कवि को यह सम्‍मान देना सार्थक साबित होती है।

इस दौरान महेश कटारे ने पवन करण को अनुभव की प्रयोगशाला में आवाजाही का कवि बताया। पुस्‍तक वार्ता के संपादक भारत भारद्वाज ने विस्‍तार से पवन कटारे के कृतित्‍व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर पवन करण ने कहा कि सभागार में साहित्‍य प्रेमियों को देखकर मैं अभिभूत हूं। कार्यक्रम में आकर्षण का केंद्र था- मंचस्‍थ अतिथियों द्वारा दो पुस्‍तकों का विमेाचन किया जाना। संतोष भदौरिया व नरेन्‍द्र नुण्‍डरीक द्वारा छठवें दशक से लेकर शताब्‍दी वर्ष तक केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं पर लिखे लेखों के संग्रह का संपादित पुस्‍तक ‘केदारनाथ अग्रवाल कविता का लोक अलोक’ तथा नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक की संपादित पुस्‍तक ‘साहित्‍य सवर्ण या दलित’का विमोचन मंचस्‍थ अतिथियों ने किया तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। समारोह का संचालन प्रो.सतोष भदौरिया ने किया तथा केदार शोध पीठ के नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक ने आभार व्‍यक्‍त किया। संगम नगरी के साहित्‍य प्रेमी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

- डॉ. कविता वाचक्नवी
सदस्य  : कार्यकारिणी, केदार सम्मान समिति 



6 टिप्‍पणियां:

  1. पवन करण को इस सम्मान के लिए बधाई .

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  2. बेशक पवन करण की कविताओं में खास तरह की निजता है और एक सीमा तक वे केदार जी की परंपरा के कवि कहे जा सकते हैं. बधाई.

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  3. हार्दिक शुभकामनाएँ कवि पवन करण को !!!

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  4. Vyadh par Kavita ya Kavita ki vyadhi sheershak bahu charchit bahu prashansit lekh padhne ke baad Pawan Karan kamulyankan phir karna chahiye.

    Shalini Mathur ka yaha lekh apke hi blog par padha. Aankhen tript ho gayeen ,man thanda ho gaya. Hindi mein Imandaar aalochna ki naee shuruaat hui. Badhai, Lekin puraskar samiti ko apne bheetar jhankana hoga.

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    1. विनायक जी, `केदार-सम्मान समिति' की सदस्य होने के नाते भी मेरा आपको यह सूचित करना अनिवार्य हो जाता है कि प्रत्येक वर्ष दिया जाने वाला यह सम्मान निर्णायकों के चयन का आदर करता है, स्वीकार करता है और मान्यता देता है और चयन में सारी भूमिका चयनसमिति व निर्णायकों की होती है। हमारी कार्यकारिणी का यह दायित्व हो जाता है कि चयनसमिति के निर्णय को सहर्ष आदर दें। चयनसमिति में देश के समकालीन वरिष्ठ आलोचक हैं, आशा की जानी चाहिए कि उन्होने भी शालिनी जी का उक्त लेख (http://streevimarsh.blogspot.co.uk/2012/06/blog-post.html) अवश्य पढ़ा होगा।

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