वर्धा में दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला एवं संगोष्‍ठी संपन्न

‘हिंदी ब्लॉगिंग की आचार संहिता’ पर दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला और संगोष्‍ठी संपन्न

ब्लॉगरों को अपनी लक्ष्‍मण रेखा खुद बनानी होगी - विभूति नारायण  राय

ब्लॉगिंग सबसे कम पाखंडवाली विधा है - आलोक धन्वा

आभासी  दुनिया भी वास्तविक दुनिया का विस्तार है - ऋषभ देव शर्मा




वर्धा,11 अक्टूबर।


महात्मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्‍यालय, वर्धा में हिंदी ब्लॉगिंग की आचार-संहिता’ विषयक दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला एवं संगोष्‍ठी संपन्न हुई। समारोह का उद्‍घाटन विश्‍वविद्‍यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने 
हबीब तनवीर प्रेक्षागृह 
किया। आरंभ में सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने नए अभिव्यक्‍ति माध्यम के रूप में उभरी ब्लॉगिंग की विधा की अनंत संभावनाओं और उससे जुड़े खतरों की ओर इशारा करते हुए ब्लॉग लेखन के संबंध में  आचार-संहिता विषयक विचार-विमर्श की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। 


तदुपरांत स्वागत भाषण में हिंदी विश्‍वविद्‍यालय के प्रतिकुलपति प्रो.अरविंदाक्षन ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों में यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रतिनिधियों और अधिकारियों को भी आमंत्रित करना चाहिए, जिससे वे जान सकें कि यह विश्‍वविद्‍यालय केवल साहित्य और उत्सवधर्मिता का ही केंद्र नहीं है, बल्कि  हिंदी को तकनीक से भी जोड़ने को प्रयासरत है। जब उन्होंने कहा कि मैं आप सबका स्वागत हृदय की भाषा में कर रहा हूँ तो सभागार करतलध्वनि  से गूँज उठा.

उद्‍घाटन वक्‍तव्य देते हुए कुलपति विभूति नारायण  राय ने कहा कि इंटरनेट ने राष्‍ट्रों की बंदिशों को तोड़ा है। उन्होंने आगे कहा कि अभिव्यक्‍ति की स्वतंत्रता का जो उत्तर आधुनिक विस्फोट हुआ है, वह इंटरनेट से ही संभव हो सका है; लेकिन हम यहाँ दो  दिनों के लिए इसलिए भी उपस्थित हुए हैं कि हम इस बात पर बहस कर सकें कि इस माध्यम ने हमें एक खास तरह की स्वच्छंदता तो नहीं दे दी है! उन्होंने प्रश्‍न उठाया कि अपनी अभिव्यक्‍ति की स्वतंत्रता में कहीं हम यह तो नहीं भूल रहे हैं कि हम सारी सीमाएँ तोड़ रहे हैं और दूसरों की  भावनाओं को ठेस पहुँचा रहे हैं। राय का मानना था कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करना तथा निहित स्वार्थ की सिद्धि के किए ब्लॉग के माध्यम का दुरुपयोग करना चिंतनीय विषय  है। उन्होंने यह जोड़ा कि   किसी कानून द्वारा नियमित किए  जाने के बजाय हमें ऐसा लगता है कि  हर एक ब्लॉगर को अपनी लक्ष्‍मण-रेखा खुद बनानी होगी। वी.एन.राय ने आगे कहा कि एक समझदार और सभ्य समाज के लिए जरूरी है कि उसके नागरिक अपनी लक्ष्मण रेखा खुद खींचें  ताकि ऐसी स्थिति न आए कि राज्य को सेंसर लगाने की दिशा में  सोचना पड़े।


‘मधुमती’ की पूर्व संपादक  कथाकार  डॉ.अजित गुप्‍ता ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि ब्लॉगिंग त्वरित विचारों के त्वरित प्रस्तुतीकरण  की विधा है। उन्होंने राज्य की ओर से किसी आचार संहिता के लागू किए जाने की तुलना में ब्लॉगरों की पंचायत बनाने का सुझाव दिया जो आम नियंत्रण के सिद्धांत बना सकती है। उन्होंने हिंदी ब्लॉग जगत की कुछ बहसों के संदर्भ में कहा कि यदि मैं स्त्री संबंधी बात कहती हूँ तो यह ध्यान रखना होगा कि पुरुष भी इसे सुन रहे हैं। उन्होंने चिट्ठों का समग्र संकलन करनेवाले एग्रीग्रेटरों से अनुरोध किया कि वे अश्‍लील, खराब, बेनामी और भद्‍दी भाषा में लिखने वालों को समझाइश दें और उनको अनुशासित करें।


लंदन से आई हुईं कवयित्री और लेखिका डॉ. कविता वाचक्नवी ने आचार संहिता की आवश्यकता और उससे जुड़े तमाम मुद्‍दों पर विस्तृत चर्चा की और कहा कि चिट्‍ठाकारी रूपी माध्यम के विस्तार के साथ साथ शायद आनेवाले समय में आचार संहिता की आवश्यकताएँ बढ़ेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि खराब से खराब व्यक्‍ति को अच्छी चीज का आधिपत्य दीजिए वह उसे खराब कर देगा, और अच्छे व्यक्‍ति को खराब से खराब चीज दे दीजिए वह उसे अच्छा कर देगा। डॉ.वाचक्नवी ने भी साफ तौर पर माना कि आचार संहिता को आरोपित नहीं किया जा सकता और सुझाव दिया कि आप यह कर सकते हैं कि अनाचार पर दंड का विधान कर दें। उन्होंने कहा कि वे ब्लॉगरों से संयम और उदात्तता की उम्मीद करती हैं ताकि स्वच्छंदता और अराजकता न फैले। सस्ती लोकप्रियता और निरंकुशता से बचने की सलाह देते हुए डॉ. कविता वाचक्नवी ने याद दिलाया कि हमारे लिए ब्लॉग मनोविलास नहीं बल्कि अपनी भाषा, लिपि, साहित्य और संस्कृति को बचाने का युद्ध है.

उद्‍घाटन सत्र में प्रख्यात कवि और संस्कृतकर्मी आलोक धन्वा ने भी ब्लॉगिंग के संबंध में अपने 
विचार प्रस्तुत किए। 
उन्होंने ब्लॉगिंग को विस्मयकारी विधा बताते हुए इस माध्यम को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की वकालत की। आलोक धन्वा ने ब्लॉगिंग की तुलना रेल के चलन से करते हुए बताया कि शुरुआत में जैसे रेल यात्रा करने से लोग डरते थे लेकिन आज यह हमारी आवश्यकता बन गई है वैसे ही शायद अभी ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर में इसके प्रति हिचक है लेकिन आने वाले समय में यह जन समुदाय की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकती है। आलोकधन्वा ने अपने वक्‍तव्य में आगे कहा कि हम आजकल सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इतना कठिन समय, पहले कभी नहीं रहा; द्वितीय विश्‍व युद्ध और अन्य संकटों से भी अधिक कठिन समय के दौर से हम गुजर रहे हैं जिसमें लोकतंत्र के लिए बहुत कम जगह बची है। आचार संहिता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि समय और समाज की नैतिकता ही अभिव्यक्‍ति की नैतिकता हो सकती है। दुनिया कैसे बेहतर बने, इस दिशा में प्रयास करने वाली आचार संहिता ही ब्लॉगिंग की आचार संहिता हो सकती है। उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि ब्लॉगिंग सबसे कम पाखंडवाली विधा है।

`चिट्ठा चर्चा’ के संचालक अनूप शुक्ल ने कहा कि ब्लॉगिंग की आचार संहिता की बात करना खामख्याली है क्योंकि समय और समाज की जो आचार संहिताएँ होंगी वे ही ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि अलग से कोई आचार संहिता कम से कम ब्लॉगिंग पर लागू न हो सकेगी क्योंकि यह ऐसा माध्यम है जिसमें किसी भी अनुशासन को लाँघने की संभावना निहित है। ब्लॉगिंग को अद्‍भुत विधा बताते हुए अनूप शुक्ल ने कहा कि यह अकेला ऐसा माध्यम है जिसमें त्वरित दुतरफा संवाद संभव है। ब्लॉग एक तरह से रसोई गैस की तरह है जिस पर आप हर तरह का पकवान बना सकते हैं अर्थात साहित्य, लेखन, फोटो, वीडियो, आडियो हर तरह की विधा में इसमें अपने को अभिव्यक्‍त कर सकते हैं।

'
भड़ास मीडिया डॉट कॉम’
के यशवंत सिंह ने भी आचार संहिता की अवधारणा का विरोध किया और अनामी तथा बेनामी ब्लॉगरों के समर्थन में अपनी बात रखी। उन्होंने यहाँ तक कहा कि हमें आज आचार संहिता बनाने वालों की आचार संहिता पर विचार करना चाहिए। इस अवसर पर हिंदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के प्रो.अनिल कुमार राय ने कहा कि जहाँ आधुनिक संचार माध्यम समाप्‍त होते हैं वहाँ से नव माध्यम के रूप में ब्लॉग संचार की शुरुआत होती है जिसमें कोई संपादक नहीं होता अतः यदि पाठकों की टिप्पणियों को माडरेशन किया जाएगा तो वह एक संपादक की उपस्थिति के समान ही होगा। 


उद्‍घाटन समारोह की अध्यक्षता हैदराबाद से आए प्रो.ऋषभ देव शर्मा 
ने 
की। 
अध्यक्षीय भाषण देते 
हुए 
प्रो.शर्मा ने आचार संहिता, नैतिकता, बेनामी ब्लॉगर और संबंधित मसलों पर अपने विचार व्यक्‍त किए। बेनामी ब्लॉगरों के बारे में अपनी राय व्यक्‍त करते हुए उन्होंने कहा कि छद्‍म पहचान को ब्लॉग जगत में प्रोत्साहित करना पाखंड को प्रोत्साहित करने के समान है। उन्होंने बताया कि ब्लॉग जगत की आचार संहिता की जगह इंटरनेट की नैतिकता पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नैतिकता का स्वर्णिम सिद्धांत यह है कि जैसा व्यवहार हम दूसरों से चाहते हैं, हम भी वैसा ही व्यवहार दूसरों से करें। उन्होंने इंटरनेट की दुनिया को विशुद्ध आभासी दुनिया मानने से इनकार करते हुए कहा कि यह आभासी दुनिया वास्तव में वास्तविक दुनिया का विस्तार है। प्रो.शर्मा ने कहा कि मेरी चिंता का कारण बच्चे हैं जो झूठी पहचान बनाकर इंटरनेट और ब्लॉग के माध्यम से गलत आचरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बेनामी बड़े बड़े काम करते होंगे, मैं उनका अभिनंदन करता हूँ, लेकिन इसे नियम नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि पाखंड हर जगह निंदनीय है। ब्लॉगिंग कोई खिलवाड़ नहीं है, सामाजिक और नैतिक कर्म है। अतः जिस बात को सार्वजनिक रूप से नहीं कह सकते वह ब्लॉग पर भी कहने का हक हमें नहीं है। हममें यह हिम्मत होनी चाहिए कि जिसे हम सही समझते हैं उसे कह सकें। प्रो.शर्मा ने उदाहरण सहित बताया कि यदि कमेंट व्यक्‍तिगत आक्षेप, अश्‍लीलता और अनैतिकता वाले हों तो उन्हें हटाने का अधिकार होना चाहिए लेकिन स्वस्थ आलोचना को सम्मान मिलना चाहिए भले ही वह कटु हों। ब्लॉग को संवाद का माध्यम बनाया जाए, अखाड़ा नहीं। पारस्परिक शिष्टाचार जो हम अपने आम जीवन में बरतते हैं , उसे ब्लॉगजगत में भी अपनाना चाहिए । डॉ. शर्मा ने यह भी ध्यान दिलायाकि ब्लॉग को समाज सुधार और नैतिकता के अतिरिक्‍त बोझ से लादने के बजाय उसे अपने भीतर की उदात्तता का दर्पण बनाना आवश्‍यक है।

संचार विभाग के विभागाध्यक्ष  अनिल कुमार राय ने धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा - जहाँ  आधुनिक संचार माध्यम समाप्त 
होते हैं वहाँ से इसकी शुरुआत होती है। यदि हम टिप्पणियों का माडरेशन करने लगे तो फ़िर यह तो एक संपादक की उपस्थिति 
ही हुई।

देश भर से आए लगभग 25 ब्लॉगरों ने उद्‍घाटन सत्र के बाद चार समूहों में आचार संहिता के विविध आयामों पर अलग अलग गहन चर्चा की जिसके निष्‍कर्षों को दूसरे दिन परिचर्चा सत्र में प्रस्तुत किया गया।

दूसरे दिन के प्रथम सत्र में सर्वप्रथम  विश्वविद्यालय के सामूहिक ब्लॉग हिन्दी-विश्व का लोकार्पण कुलपतिके हाथों संपन हुआ. उल्लेखनीय है कि उक्त ब्लॉग डॉ. कविता वाचक्नवी के निर्देशन और सहयोग से बनाया गया है  और प्रीति सागर को ब्लॉग का मोडरेटर नियुक्त किया गया है. उदयपुर से आई हुईं डॉ अजित गुप्ताके लघुकथा संग्रह का लोकार्पण भी कुलपति विभूतिनारायण राय के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ.


परिचर्चा सत्र में ब्लॉगरों ने अपने विचार व्यक्‍त किए। शुरूआत सुरेश चिपलूणकर ने की और बताया कि दूसरे के ब्लॉग पर टिप्पणी करना सबसे अच्छा तरीका है ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचने के लिए। उन्होंने तथ्यात्मक बातें लिखने और सामग्री स्रोत का लिंक देने पर जोर दिया. हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा कि आप जो भी लिखें पूरी बात पक्की जानकारी से लिखें । उन्होंने विस्फोट, मोहल्ला, भड़ास, अर्थकाम. काम का उदाहरण देते हुए बताया इन ब्लॉगों को उद्यमिता के माडल के रूप में लिया जाना चाहिए। रवींद्र प्रभात ने शालीन भाषा के प्रयोग को सर्प्रथम आचार का दर्ज़ा दिया तथा सकारात्मक बने रहने के लाभ गिनवाए। अविनाश वाचस्पति ने कहा कि आचार संहिता की बात अगर न भी मानें तो मन की बात माननी चाहिए और ऐसी बातें करने से बचना चाहिए जिससे लोगों को बुरा लग सकता हो। जाकिर अली रजनीश  ने अपने वक्तव्य में  विषयाधारित लेखन  का मुद्दा उठाया. प्रवीण  पांडेय ने अतियों से बचने की सलाह दी और गायत्री शर्मा ने नामी ब्लॉगों का उदाहरण देते हुए ब्लॉग की सामाजिक उपयोगिता के बारे में अपनी बात कही। यशवंत सिंह ने माना कि हिंदी पट्टी को लोग अतियों में जीने के कारण या तो अराजक हो जाते हैं या फिर बेहद भावुक. उन्होंने गालियों और गप्पों के बजे तथ्यात्मक लेखन को पुष्ट करने की ज़रूरत बताई।

भोपाल के चर्चित ब्लॉगर रवि रतलामी ने ''इन्टरनेट के नवीनतम 
प्रयोग और "ब्लॉगिंग के आवश्यक पहलू''  व `टार' विषय पर टेली
कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से 
कार्यशाला को संबोधित किया और  
प्रतिभागियों के प्रश्नों के  उत्तर दिए. उल्लेखनीय  
है कि इस अवसर पर पंजीकृत पचास से अधिक प्रशिक्षुओं को कंप्यूटर पर हिंदी और यूनिकोड में काम करने तथा  
ब्लॉग बनाने का  व्यावहारिक प्रशिक्षण संजय 
बेंगाणी
 
और शैलेश भारतवासी ने दिया गया।


 इसके अतिरिक्‍त प्रथम दिन की संध्या कवि सम्मेलन के नाम समर्पित रही जिसकी अध्‍यक्षता वरिष्‍ठ कवि आलोक धन्वा ने की तथा संचालन डॉ. कविता वाचक्नवी ने किया। 


दूसरे दिन की प्रातः बेला में सभी अतिथि ब्लॉगरों ने सेवाग्राम स्थित महात्मा गांधी की कुटी तथा विनोबा भावे के पवनार आश्रम का भ्रमण कि
या।

इस आयोजन का सर्वाधिक उपादेय पक्ष यह रहा कि साइबर-अपराध और तत्संबंधी कानूनों के मर्मज्ञ विद्वान (सुप्रीम कोर्ट) अधिवक्‍ता पवन दुग्गल ने विस्तार से इंटरनेट की संभावनाओं और सीमाओं के वैधानिक पक्ष पर प्रकाश डाला और चिट्ठाकारों की जिज्ञासाओं का समाधान किया। समापन सत्र में कुलपति विभूति नारायण राय के हाथों प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिए गए। पूरे समारोह का संयोजन आतंरिक संपरीक्षा अधिकारी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने अत्यंत सुरुचिपूर्ण 
शैली 
मे किया।

श्री राकेश (संस्कृति) , श्री राजकिशोर, श्री आलोक धन्वा, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रो. प्रियंकर पालीवाल, डॉ.कविता वाचक्नवी, डॉ.श्रीमती अजित गुप्ता, श्री अनूप शुक्ल, डॉ.अशोक कुमार मिश्र, श्री रवीन्द्र प्रभात, श्रीमती अनीता कुमार, श्री सुरेश चिपलूनकर, डॉ.महेश सिन्हा, श्री संजय बेंगाणी, श्री प्रवीण पाण्डेय, श्री अविनाश वाचस्पति, श्री जाकिर अली रजनीश, श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी, श्री संजीत त्रिपाठी, श्रीमती रचना त्रिपाठी, श्री यशवंत सिंह, श्री विवेक सिंह, श्री जय कुमार झा, श्री शैलेश भारतवासी, श्री विनोद शुक्ला, सुश्री गायत्री शर्मा, श्री विषपायी, आदि की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की. खचाखच भरे सभागार में अध्यापकों, विद्यार्थियों, विभिन्न विभागों के सहयोगियों, देश के अनेक भागों से अपने संस्थान द्वारा कार्यशाला में भाग लेने हेतु नियुक्त अनेक राजभाषा अधिकारियों/ अध्यापकों आदि की उपस्थिति  ने भी कार्यक्रम को  भव्य व सार्थक 
बनाया.

ब्लागिंग पर दो दिनी वर्कशाप के समापन सत्र के ठीक बाद सभी ने वीएन राय के साथ एक साथ खड़े होकर ग्रुप फोटो खिंचवाईं.

34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्‍छी रही रिपोर्टिंग .. पढकर अच्‍छा लगा .. इस आयोजन के सफलतापूर्ण समापन पर आप सबों को बधाई !!

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  2. कविता जी बहुत अच्‍छी रिपोर्टिंग, बधाई। समूह फोटो में मेरा पत्ता क्‍यों काट दिया? हा हा हा हा।

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  3. बहुत ही सुन्दर पोस्ट आपके विचारों की तरह .....
    आपकी उपस्थिति इस संगोष्ठी का एक विशिष्ट पहलु था तथा आपसे मिलना एक सुखद अनुभव रहा हमसब के लिए ..

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  4. सारगर्भित प्रविष्ठि के लिए बधाई।
    अजित गुप्ता जी आप और हम कई लोग समापन के समय तक नहीं रुक पाये इसलिए चित्र में नहीं दिखाई दे रहे हैं :)

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  5. वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन की बहुत सी रिपोर्टें आ चुकी हैं, अब मैं दबाव मे हूं कि क्या लिखूं… सभी लोग सब कुछ तो लिख चुके… :)
    =========
    बड़े-बड़े ब्लॉगर्स और लेखकों से मिलने का सौभाग्य मुझे मिला यह एक सुखद अनुभूति रही…

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  6. आपने इस संगोष्ठी की तैयारी और संचालन में मेरा भरपूर सहयोग व मार्गनिर्देशन किया। इस दाय का मैं सदैव ऋणी रहूंगा। आपकी रिपोर्ट पूर्णता का भाव देती है। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  7. बढिया रिपोर्टिंग। कापी-पेस्ट काम नहीं कर रहा है इसलिए इतना ही कहूंगा कि अच्छा व्यक्ति सदा अच्छा ही कार्य करेगा इसलिए आचार संहिता की आवश्यकता नहीं है और बुरा आदमी आचार संहिता का उल्लंघन करेगा इसलिए आचार संहिता की आवश्यकता नहीं है :)

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  8. साहित्य की भाषा में कहे तो बड़े बड़े हस्ताक्षरों से मिलना भावभिभोर कर गया.

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  9. कविता जी, गागर में सागर भर दिया आपने।
    वैसे मैंने भी अन्तिम सत्र में 'विषय आधारित ब्लॉगिंग' की बात की थी, लेकिन शायद संक्षिप्त वार्ता होने के कारण आपका ध्यान उसपर नहीं गया।

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  10. कविता जी बहुत अच्छी और सार्थक रिपोर्ट रही आपकी, बधाईयाँ !

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  11. संगोष्ठी का आलेख सार्थक लगा और उनकी तस्वीरों से रूबरू हुए .

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  12. - संगीता जी! धन्यवाद

    - अजित जी! समूहचित्र कार्यक्रम के एकदम समापन के पश्चात् हुआ आप तब तक हॉल से वापिसी यात्रा के लिए गेस्ट हाउस जा चुकी थीं. सॉरी.

    - महेश जी! आपने सही कहा, धन्यवाद. आपका चित्र भी रह गया इसी तरह.

    - झा जी, मुझे भी आप से भेंट कर हर्ष हुआ. आशा अहै कुशल हैं.

    - सुरेश भाई! कमाल करते हैं, आप के लिखे की तो बाट जोह रही हूँ कि पता चले आप को कैसा लगा किस किस से मिलकर... :) वीर तुम बढ़े चलो.
    ..... और हाँ कुछ चित्र आप की पिकासा एल्बम के ही है यहाँ भी. साभार नहीं लिखा है मैंने, सोचा आचार संहिता न मानने का परिणाम देखूँ तो सही :)

    - सिद्धार्थ जी! यह आभारी का भार मुझ पर मत लादें पहले ही भार से त्रस्त हूँ भाई ! बच्चों व रचना जी को स्नेह देना.


    - तुषार जी! सहमति के लिए व यहाँ तक आने के लिए धन्यवादी हूँ.

    - प्रसाद जी ! आप लगे रहें इसी प्रकार जीवन्तता से, आप भी डॉ गोपाल शर्मा बनने की राह पर हैं :)

    - संजय जी, आपको देखना मिलना एक बड़े सुखद आश्चर्य की भाँति लगा. स्वास्थ्य पर किंचित ध्यान दें.

    - जाकिर भाई, इंगित करने के लिए धन्यवाद. सुधार दिया है. वस्तुतः आज सुबह ५ बजे घर पहुँची और बिना पानी तक पिए या जूता तक खोले, तुरंत नेट खोल कर सब से पहला कार्य यही किया. सो कुछ तो गड़बड़ होनी ही थी. परन्तु आश्वस्त हूँ कि किसी ने किसी भूल चूक का बुरा न माना होगा.

    - ललित जी, पहली बार पधारने का शुक्रिया. स्नेह बनाए रखें.

    - रवीन्द्र जी, धन्यवाद. आपका वृतांत भी अभी पढ़ा, अच्छा लगा.

    - मंजु जी, आभारी हूँ कि आप इस ब्लॉग पर आईं, स्नेह बनाए रहें.

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  13. कविता जी बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग रही और सुखद यादें ताजा हुईं।

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  14. यह विचित्र लग सकता है कि प्रायः सभी चिट्ठाकार एक ओर तो आचार-संहिता का विरोध करते दीखते हैं तथा दूसरी ओर नैतिकता के पक्षकार भी हैं. यदि यह स्पष्ट हो कि आचार-संहिता अभिव्यक्ति पर अंकुश नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की नैतिकता के लिए होगी तो यह द्वंद्व स्वयं समाप्त हो जाएगा. मुझे लगता है कि ऐसी किसी आचार- संहिता को 'दंड-संहिता' नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि साइबर-क़ानून में उसका प्रावधान है ही. आवश्यकता है कि एक तो उन प्रावधानों के संबंध में चिट्ठालेखकों सहित इन्टरनेट के समूचे प्रयोक्ता समाज को शिक्षित किया जाए, दूसरे यह कि वर्चुअल स्पेस में भी यथार्थ सामाजिक जीवन के शिष्टाचार की परंपरा डाली जाए.

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  15. शायद पहला सम्मलेन है जिसकी हर स्थान पर प्रसंशा हुई है , श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की यह मेहनत, ब्लाग जगत के लिए एक मील का पत्थर माना जाएगा , उनके प्रति ब्लाग जगत को आभारी होना चाहिए !
    आयोजकों को हार्दिक शुभकामनायें !

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  16. अब तो आपका लिखा हुआ पहले से अच्छा लग रहा है ।

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  17. @ विवेक ! जब तुमने यह पोस्ट देखी होगी, उस समय कई कई बार में इसका एच टी एम एल एडिट हो रहा होगा कई बार में सध पाया ( क्योंकि कुछ और और चीजें जिस क्रम से याद आती गईं तैसे तैसे उन्हें जोड़ने के चक्कर में यह पोस्ट कई बार एडिट की ). उस बीच आए सभी मित्रों को असुविधा हुई होगी.
    अब अंत भला तो सब भला.

    @ अनीता जी, हरसिंगार महकते रहे मन प्राणों में.

    @ ऋषभ जी, आपका कहना एकदम सही व सटीक है, परम्परा तो अनिवार्यतः डालनी होगी.

    @ काजल जी, संहिता कोइ बाहर से आकर नहीं बनाएगा, यह आत्मानुशासन से ही उपजेगी. आत्मानुशासन की अनिवार्यता का अनुभव किए जाना ही प्रमाणित करता जाएगा कि यह कितना आधारभूत प्रश्न है .

    @ सतीश जी, आपने एकदम सही बिंदु को उभारा. आप अरसे बाद आए धन्यवाद.

    आप सभी के प्रति पुनः धन्यवाद.

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  18. शानदार रपट।
    आपसे मिलना एक अच्छा अनुभव रहा, काफी कुछ सीखने मिला।
    शुक्रिया

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  19. इस गोष्ठी की रिपोर्ट्स् पढ़ कर बहुत जानकारियाँ मिली .
    ब्लाग्ज़ का महत्व तो प्रतिपादित हुआ ही ,परस्पर विकसित होनेवाले स्नेह-सौहार्द और आपसी समझ ने दूरस्थ जनों को भी अपनी लपेट में ले लिया .
    विश्वास है व्यावहारिक मान-मूल्य विकसित होने की प्रक्रिया आगे चलेगी और संवाद तथा संचार के क्षेत्र में इस जनतांत्रिक विधा की हलचल ने लोगों कान खड़े कर दिये होंगे .
    जिनके नाम भर सुने थे उन्हें और उनके विषय में जानना बहुत अच्छा लगा .
    इस सब के लिए आयोजनकर्ताओं एवं सभी प्रतिभागियों को बधाई ,
    साथ ही हमारे लिए यह सब प्रस्तुत करने के लिए आभार .

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  20. एक्टिव इंडिया टीवी चैनल' द्वारा दिखाए जा रहे प्रोमो. के सन्दर्भ में उनके द्वारा प्रेषित SMS

    " Watch Exclusive interview with Dr. Kavita Vachaknavee and Blog-seminar @ MGIHU, Wardha on ACTIVE INDIA TV CHANNEL on 27th Oct. 7AM, 9AM, 7 PM, & 11.30PM"

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  21. HINDI BLOGGING MEIN BHI AJEEB TAMASHE CHAL RAHI HAI..MAHATMA GANDHI ANTARRASHTRIYA HINDI VISHWAVIDYALAYA , WARDHA KE BLOG PER ENGLISH KI EK POST PER PRITI SAGAR NE EK COMMENT POST KI HAI…AISA LAGA KI POST KO SABSE JYADA PRITI SAGAR NE HI SAMJHA..PER SACHHAI YE HAI KI PRITI SAGAR NA TO EK LINE BHI ENGLISH LIKH SAKTI HAIN AUR NA HI BOL SAKTI HAIN…BINA KISI LITERARY CREATIVE WORK KE PRITI SAGAR KO UNIVERSITY KI WEBSITE PER LITERARY WRITER BANA DIYA GAYA…PRITI SAGAR NE SUNITA NAAM KI EK NON EXHISTING EMPLOYEE KE NAAM PER HINDI UNIVERSITY KA EK FAKE ICARD BANWAYA AUR US ICARD PER SIM BHI LE LIYA…IS MAAMLE MEIN CBI AUR CENTRAL VIGILECE COMMISSION KI ENQUIRY CHAL RAHI HAI.. MEDIA KE LOGON KE PAAS SAARE DOCUMETS HAI AUR JALDI HI YEH HINDI UNIVERSITY WARDHA KA YAH SCANDAL NATIONAL MEDIA MEIN HIT KAREGA….AISE FRAUD BLOGGERS SE NA TO HINDI BLOGGING KA BHALA HOGA , NA TECHNOLOGY KA AUR NA HI DESH KA…KYUNKI GANDI MACHLI KI BADBOO SE POORA TAALAB HI BADBOODAAR HO JAATA HAI

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  22. Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…

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  23. Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education...He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein 'Web site' tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain...Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain...jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain...sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage...Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct.... बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।

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  24. MAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….

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  25. महोदय/महोदया
    आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -

    प्रभात जी,
    मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
    बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
    ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
    सादर!
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
    वर्धा, महाराष्ट्र-442001
    ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
    वेबसाइट:हिंदीसमय

    इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
    सिद्धार्थ जी,
    मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !

    सादर-
    रवीन्द्र प्रभात

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  26. There is an article on the blog of Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha ‘ Hindi-Vishwa’ of RajKishore entitled ज्योतिबा फुले का रास्ता ..Article ends with the line.....दलित समाज में भी अब दहेज प्रथा और स्त्रियों पर पारिवारिक नियंत्रण की बुराई शुरू हो गई है…. Ab Rajkishore ji se koi poonche ki kya Rajkishore Chahte hai ki dalit striyan Parivatik Niyantran se Mukt ho kar Sex aur enjoyment ke liye freely available hoon jaisa pahle hota tha..Kya Rajkishore Wardha mein dalit Callgirls ki factory chalana chahte hain… besharmi ki had hai … really he is mentally sick and frustrated ……V N Rai Ke Chinal Culture Ki Jai Ho !!!

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  27. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्‍व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्‍वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !

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  28. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २६ फ़रवरी को राजकिशोर की तीन कविताएँ आई हैं --निगाह , नाता और करनी ! कथ्य , भाषा और प्रस्तुति तीनों स्तरों पर यह तीनों ही बेहद घटिया , अधकचरी ,सड़क छाप और बाजारू स्तर की कविताएँ हैं ! राजकिशोर के लेख भी बिखराव से भरे रहे हैं ...कभी वो हिन्दी-विश्व पर कहते हैं कि उन्होने आज तक कोई कुलपति नहीं देखा है तो कभी वेलिनटाइन डे पर प्रेम की व्याख्या करते हैं ...कभी किसी औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए कहते हैं कि सब सज कर ऐसे आए थे कि जैसे किसी स्वयंवर में भाग लेने आए हैं .. ऐसा लगता है कि ‘ कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की अपने परिवार की छीनाल संस्कृति का उनके लेखन पर बेहद गहरा प्रभाव है . विश्वविद्यालय के बारे में लिखते हुए वो किसी स्तरहीन भांड से ज़्यादा नहीं लगते हैं ..ना तो उनके लेखन में कोई विषय की गहराई है और ना ही भाषा में कोई प्रभावोत्पादकता ..प्रस्तुति में भी बेहद बिखराव है...राजकिशोर को पहले हरप्रीत कौर जैसी छात्राओं से लिखना सीखना चाहिए...प्रीति सागर का स्तर तो राजकिशोर से भी गया गुजरा है...उसने तो इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी कर रखी है..उसे ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की छीनाल संस्कृति से फ़ुर्सत मिले तब तो वो ब्लॉग की सामग्री को देखेगी . २५ फ़रवरी को ‘ संवेदना कि मुद्रास्फीति’ शीर्षक से रेणु कुमारी की कविता ब्लॉग पर आई है..उसमें कविता जैसा कुछ नहीं है और सबसे बड़ा तमाशा यह कि कविता का शीर्षक तक सही नहीं है..वर्धा के छीनाल संस्कृति के किसी अंधे को यह नहीं दिखा कि कविता का सही शीर्षक –‘संवेदना की मुद्रास्फीति’ होना चाहिए न कि ‘संवेदना कि मुद्रास्फीति’ ....नीचे से ऊपर तक पूरी कुएँ में ही भांग है .... छिनालों और भांडों को वेलिनटाइन डे से फ़ुर्सत मिले तब तो वो गुणवत्ता के बारे में सोचेंगे ...वैसे आप सुअर की खाल से रेशम का पर्स कैसे बनाएँगे ....हिन्दी के नाम पर इन बेशर्मों को झेलना है ..यह सब हमारी व्यवस्था की नाजायज़ औलाद हैं..झेलना ही होगा इन्हें …..

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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