अदृश्य ऊर्जा की खोज की नई विधि




अदृश्य ऊर्जा की खोज की नई विधि (मई २००९)
ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य  (८)
गतांक से आगे

बेर्यान एकूस्टिक आसिलेशन ( बेर्यान ध्वनिक दोलन) के वर्णक्रम का अध्ययन करने वाली एक नई प्रविधि है 'बेर्यान आसिलेशन स्पैक्ट्रोस्कोपिक सर्वे' - 'बास' जिसका उपयोग अदृश्य ऊर्जा की खोज में बहुत मह्त्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है। लारैन्स बार्क्ले नैशनल लेबारेटरी नामक प्रयोगशाला में इस विधि पर कार्य हो रहा है। इसके प्रथम अवलोकन में ८०० मंदाकिनियों तथा २०० क्वेसारों* पर अध्ययन किया जिसमें दूरदर्शी पर कार्य कर रहे दल में वैशाली भारद्वाज भी थीं।



चन्द्र एक्सकिरण वेधशाला द्वारा किए गए अवलोकनों से (फ़रवरी २००५) यह दिख रहा है कि अदृश्य बेर्यान (प्रोटान, न्यूट्रान) मंदाकिनियों के बीच के अंतराल में जो विसारित ( बिखरी हुई) गैस की नदियाँ हैं उनमें तैर रहे हैं। चूँकि वह इतनी गरम हैं कि प्रकाशीय दूरदर्शियों से नहीं दिख सकतीं। हार्वर्ड स्मिथसोनियन सेंटर फ़ोर एस्ट्रोफ़िज़िक्स के वैज्ञानिकों ने इस तप्त गैस के अधिक सूक्ष्म वर्णक्रम प्राप्त किये जब वह क्वेसार सदृश मंदाकिनी 'मर्कारियन ४२१' के भड़कने के प्रकाश में चमक रही थी। इस दल का निष्कर्ष है कि उस क्षेत्र के लिये आवश्यक अदृश्य पदार्थ उस नदी में हैं। ऐसे अवलोकन अब अन्य क्षेत्रों में भी करने की आवश्यकता है। किन्तु कुछ अवलोकन ऐसे भी मिलते हैं जो अदृश्य पदार्थ की वर्तमान समझ पर प्रहार करते हैं। अस्तु यही तो विज्ञान की प्रगति का गुण है। वर्तमान मिनेसोटा, यूएसए, स्थित 'क्रायोजैनिक डार्क मैटर सर्च' में अनेक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं। एक ताजे (२००९) अवलोकन से उऩ्हें ऐसा दिख रहा है कि अदृश्य पदार्थ के दर्शन उऩ्होंने कर लिये हैं। इस की पुष्टि के लिये २०१० में वे और भी अधिक संवेदनशील यंत्रों का उपयोग करने वाले हैं।



अब अदृश्य पदार्थ उतना अदृश्य नहीं रहा जितना कि पहले था, या है? ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाने के लिये जितने पदार्थ की अवश्यकता है वह दिख नहीं रहा है, अतएव अदृश्य पदार्थ होना चाहिये। किन्तु इस संतुलन को रखने के लिये और भी सिद्धान्त हो सकते हैं। ऐसा एक 'मोन्ड' सिद्धान्त प्रतुत किया गया है, जो इतनाक्रान्तिकारी है कि आइन्स्टाइन के सिद्धान्त को घर बाहर कर देगा। वह कहता है कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति एक दूरी बाद वर्ग का व्युत्क्रम वर्ग नियम बदलकर् व्युत्क्रम दूरी नियम बन जाता है। इसकी पुष्टि होना बाकी है।




वैदिक सृष्टि विज्ञान’ में अरुण कुमार उपाध्याय अज्ञेय के विषय में महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में लाए हैं। वे कहते हैं कि आधुनिक विज्ञान निश्चयात्मक सिद्धान्तों से प्रारम्भ तो होता है किन्तु बाद में अनिधार्यता पर आ जाता है। वेद अज्ञेय से ही प्रारम्भ करता है। ब्रह्माण्ड या विश्व का प्रथम प्रतिरूप पुरुष कहलाता है। पुरुष रूप में निर्मित पदार्थों का जो जटिल क्रम दीखता है, वह वास्तविक पुरुष का मात्र एक चौथाई भाग है, शेष तीन चौथाई भाग अदृश्य है तथा स्थायी है। “एतावानस्य महिमा ततो ज्यायाँश्च पुरुष:।(पुरुष सूक्त, ऋग्वेद 10/7/90)। यह तीन चौथाई अदृश्य भाग 73 प्रतिशत अदृश्य ऊर्जा के तो बहुत निकट है। इस सूक्त से ऐसी संभावना दिखती है कि निकट भविष्य में हम २३ % अदृश्य पदार्थ का दर्शन कर लें। किन्तु अदृश्य ऊर्जा तो अदृश्य ही रहेगी।



इतना जानने के बाद भी हम कितना कम जानते हैं


विल्किंसन प्रोब ने ब्रह्माण्ड की आयु भी परिशुद्धता से मापकर 1370 करोड़ वर्ष निधारित की है जिसकी याथार्थिकता अतिशुद्ध (दस प्रतिशत) मानी जाती है। अक्टोबर 2003 में स्लोन तंत्र (एस डी एस एस) ने भी अपने स्वतंत्र अवलोकनों का विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष दिया है कि ब्रह्माण्ड में अधिकांश ऊर्जा ‘अदृश्य’ है। यह क्या विचित्र बात नहीं कि जो पदार्थ ब्रह्माण्ड में लगभग नगण्य मात्रा में है उसके विषय में हम थोड़ा बहुत जानते हैं और जो प्रचुर मात्रा में हैं उनके विषय में हम नगण्य जानते हैं। किन्तु इस अज्ञान का अहसास भी तो एक बड़ी बात है।




एस्ट्रॉनॉमिकल जर्नल के मार्च 2004 अंक में एक प्रपत्र प्रकाशित हुआ है जिसे प्रिंसटन विश्वविद्यालय ने प्रस्तुत किया है। इन्होंने दूरतम स्थित चार क्वेसारों का अध्ययन करने के लिये उपग्रह स्थित उच्च विभेदक हबल दूरदर्शी का उपयोग किया है। ये क्वेसार हमसे इतनी दूर स्थित हैं कि उनकी आयु ब्रह्माण्ड की आयु के 10 प्रतिशत से भी कम है, अर्थात लगभग एक अरब वर्ष और यह हमसे लगभग १२.५ अरब वर्ष दूर स्थित हैं। ये क्वेसार आश्चर्यजनक तीव्रता से चमक रहे हैं और ऐसा माना गया कि ये ऐसे विशाल कृष्णविवर हैं जिनके द्रव्यमान अनेक अरब सूर्यों के बराबर होना चाहिये। और यह एक रहस्य है कि इतनी छोटी आयु में इन्होंने इतना अधिक द्रव्यमान कैसे प्राप्त कर लिया। प्रसारी ब्रह्माण्ड सिद्धान्त के कटु आलोचक इसे इस सिद्धान्त की विफलता का एक प्रमाण मानते हैं। किन्तु यदि इनके प्रकाश की तीव्रता गुरुत्वाकर्षीय लैन्स के कारण बढ़ी हुई दिखती है तब तो इनके द्रव्यमान को इतना अधिक होने की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु यह भी देखा गया कि इन चारों के बिम्ब गुरुत्वाकर्षीय लैन्स के द्वारा ‘एक के चार’ नहीं बने हैं। अथार्त वैज्ञानिकों को इस तथ्य को समझने के लिये गम्भीर विमर्श करना पड़ेगा।



अनवरत पुष्टियाँ


इस तरह हम देखते हें कि ब्रह्माण्ड विज्ञान ने पिछले 6–7 वर्षों में उपग्रह स्थित वेधशालाओं की मदद से तीव्र तथा महत्वपूर्ण प्रगति की है। यह तो निश्चित है कि ब्रह्माण्ड का प्रसार हो रहा है तथा उसके प्रसार का वेग बढ़ रहा है; कि अधिक विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड की आयु 1370 करोड़ वर्ष है; कि ब्रह्माण्ड में अदृश्य पदार्थ 23 प्रतिशत है, अदृश्य ऊर्जा 73 प्रतिशत है तथा दृश्य पदार्थ मात्र 4 प्रतिशत है। इस सिद्धान्त से हमें कण – भौतिकी को समझने में भी बहुत मदद मिली है। इन सभी निष्कर्षो की पुष्टि फिर भी करते रहना है। अब अधिकांश वैज्ञानिक प्रसारी ब्रह्माण्ड सिद्धान्त को निर्विवाद मानते हैं यद्यपि उसे और भी संपुष्ट करने के लिये आगे बहुत कार्य करना है। विज्ञान के सिद्धान्त सदा ही गलत सिद्ध होने के लिये तैय्यार रहते हैं! विज्ञान जब यथार्थ से टकराता है तब यह सत्य और असत्य के बीच यह द्वन्द्व चलता ही रह्ता है, और सत्य की ओर अनवरत प्रगति होती रहती‌ है।




ब्रह्माण्ड–विकास की प्रक्रिया को समझने के लिये प्रसारी सिद्धान्त के आधार पर अवलोकनों या घटनाओं को अभिव्यक्त करने वाले गणितीय सूत्रों का निर्माण आइन्स्टाइन के सिद्धान्त को आधार मानकर वैज्ञानिक करते हैं, क्योंकि आइन्स्टाइन के पहले ऐसा ज्ञान नहीं था कि जिसके आधार पर ब्रह्माण्ड को खंगाला जा सके। इन सूत्रों की व्याख्या तथा उनसे उद्भूत निष्कर्ष अत्यन्त दुष्कर तथा अबूझ होते हैं। अतएव इनके हल के लिये आजकल सुपर कम्प्यूटरों की सहायता ली जा रही है। अब यह भी कहा जा रहा है कि आजकल ब्रह्माण्ड तो सुपर कम्प्यूटर में समा गया है,यह विनोद में ही कहा जा सकता है।



एक क्वेसार = एक अरब सूर्य

विश्वमोहन तिवारी (पूर्व वाईस एयरमार्शल)

2 टिप्‍पणियां:

आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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