धरती पर भगवान्


धरती पर भगवान्



गत दिनों देवबंद में फतवे की घटना के साथ जोड़ कर  रामदेव जी की आलोचना करने वालों को एक आधार मिल गया था|  पहले भी कुछ लोग आलोचना, निंदा और दुष्प्रचारात्मक गतिविधियाँ करते रहें हैं, जिन्हें इस रूप में देखा जाना चाहिए कि व्यक्ति जितना व जैसे जैसे आगे बढ़ता है,  ऊर्ध्वगति से लोकप्रिय होता जाता है, विशिष्ट होता चला जाता है अथवा जिसे "पब्लिक फिगर" बनना भी  कहा जाता है, उतनी ही गति व प्रमाण से (बल्कि कई बार तो उससे अधिक तीव्रता व अनुपात में ) उसके शत्रु, यशहन्ता, निंदक, गतिरोधी, दुष्प्रचारक,  ईर्ष्या करने वालों में वृद्धि होती चली जाती है| यह एक सामान्य सर्वमान्य, लौकिक परिपाटी और रीत-सी ही है|  अस्तु |


लेखक व प्रख्यात भाषावैज्ञानिक प्रोफ़ेसर सुरेश कुमार जी की कलम से प्रसूत यह लेख  पढ़ने और विचारने की दिशा देता है कि  हम अपने लिखते बोलते समय कब व कहाँ  सतर्क  रहें और  कब क्या परखें देखें | लेख  १३ नवम्बर २००९ के जनसत्ता से साभार लिया गया |


चित्र पर क्लिक कर उसके बड़ा होने पर स्पष्ट व बड़े अक्षरों में पढ़ सकते हैं -





3 टिप्‍पणियां:

  1. नाम में क्या रखा है... अपनी श्रद्धा से जो कोई जिस नाम से चाहें पुकारें। काम देखिए...हाल में उन्होंने कुछ मौलवियों के साथ मिले जिस समाचार को लेकर कुछ लोगों ने टिप्पणी भी की। क्या स्वामीजी का अन्य धर्मावलम्बियों से मिलना वर्जित है???

    जवाब देंहटाएं
  2. दिलचस्प,संवेदनशील रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं

आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

Comments system

Disqus Shortname