रंग कभी उतरा ही नहीं



पहली बार "जागृति" बहुत बालपने में देखी थी। लगा जैसे इस-सी दूसरी कोई हो ही नही सकती। कई दिन तक उसी दुनिया में खोए बीत गए। गीत तो जैसे मानसपटल से कभी हटने की ही न ठान बैठे थे। वे धुनें, चित्रांकन, अपनी-सी दुनिया, अपने लोग, लगभग सभी रसों का समावेश -----------------जैसी शब्दावली आज प्रयोग करनी आती है किंतु तब न शब्द थे, न उनके प्रयोग की सामर्थ्य, न उनकी शक्तियों का परिज्ञान। था तो केवल प्रभाव ! एक आह्लाद का आभास ---प्रेरणा की विद्युत का संचार! बार-बार देख्नने को जी मचलता । पर वह युग भी क्या ऐसा था? एक दीवार पर परदा लगाया जाता था। लगाने वाले भी जाने किस देश से आते लगते थे क्योंकि उन्हें बुलावा भेजने के पहले चरण की भी टोह नहीं लगा पाते थे हम। तो वे आते । सप्ताह भर पहले पता पड़ जाता था कि अमुक दिन तय हुआ है। सो उस दिन सुबह से ही उत्सव उमड़ रहा होता उमंगों का। खैर! इस पर फिर कभी सही।


मूल बात यह कि इस फ़िल्म का रंग कभी उतरा ही नहीं। गीत तो आज भी रटे हुए से ही लगते हैं। भारत जब अपने स्वातन्त्र्य की तमक के प्रकाश के इस सोपान पर आ पहुँचा है और इस बार के स्वतन्त्रता दिवस की छटा बिखरने को उद्यत है तो मन ने चाहा यह भारत-दर्शन फिर किया जाए। अपने सारे पूर्वजों, परम्परा व थाती को प्रणाम निवेदित करते हुए इसे यहाँ टाँक रही हूँ, सहेज रही हूँ।

- कविता वाचक्नवी





3 टिप्‍पणियां:

  1. कृष्ण जन्माष्ट्मी व स्‍वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!

    जय हिन्द!!

    भारत मॉ की जय हो!!

    आई लव ईण्डियॉ


    आभार

    मुम्बई-टाईगर
    द फोटू गैलेरी
    महाप्रेम
    माई ब्लोग
    SELECTION & COLLECTION

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  2. फिल्म के हीरो रतन कुमार तो पाकिस्तान चले गए[पता नहीं अब वो धरती पर हैं या हिरोइन नाज़ और चरित्र अभिनेता अभीभट्टाचार्य के साथ गोलोकवास चले गए। कवि प्रदीप ने तो कलम को सार्थक कर दिया इस फिल्म के गीतों से।

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  3. बहुत सुंदर।
    स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएँ..
    हैपी ब्लॉगिंग।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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