हंगरी और हिंदी



हंगरी और हिंदी


प्रमोद कुमार शर्मा, बुदापैश्त




हंगरी में हिंदी अध्ययन-अध्यापन की परंपरा से पहले भारोपीय अध्ययन की और संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन की परंपरा थी। इसकी शुरुआत 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में हुई थी। इस परंपरा की शुरुआत करने का श्रेय ऑलैक्सांदैर चोमा को जाता है। प्रारंभ में संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद संस्कृत से न करके तुर्की, लैटिन और अंग्रेजी भाषाओं के अनुवादों से किया जाता था। पर अब स्थिति बदल गई है। आजकल हिंदी और संस्कृत दोनों ही भाषाओं से सीधे अनुवाद कार्य किए जा रहे हैं। इसके साथ ही हिंदी में भी सीधे ही हंगेरियन भाषा से अनुवाद किए जा रहे हैं। संस्कृत अध्ययन की परंपरा की शुरुआत और उसका विकास ओत्वोश लोरांद विश्वविद्यालय के भारोपीय अध्ययन विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रो। तोत्तोशि चाबा के प्रयासों से हुआ।


हिंदी अध्ययन-अध्यापन की परंपरा पाँचवें दशक में हुई थी। हंगेरी के भारतीय दूतावास में कार्यरत डॉ.दैबरैत्सैनी आर्पाद ने स्वयं हिंदी सीखकर विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन करने का कार्य किया था। हिंदी अध्ययन अध्यापन की परंपरा के विकास का पूरा श्रेय सुश्री मारिया नेज्यैशी को जाता है। पिछली शताब्दी के नौवें दशक में जब उन्होंने पढ़ाना प्रारंभ किया था तब विश्वविद्यालय में पाठ्यपुस्तकों का अभाव था। न तो हंगेरियन में न ही हिंदी या अंग्रेजी में कोई भी पाठ्यपुस्तक उपलब्ध थी। उस समय बुदापैश्त में हिंदी बोलने वालों की संख्या नहीं के बरावर थी। मारिया नेज्यैशी ने कुआँ खोदकर पानी पीने जैसा कार्य किया। वे हर सप्ताह पढ़ाने के लिए नया पाठ तैयार करती थीं और फिर उस पाठ की सहायता से अध्यापन कार्य करती थीं।


भारत सरकार आईसीसीआर के माध्यम से विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए छात्रवृत्ति भी प्रदान करता है। हंगरी के एक या दो छात्र प्रतिवर्ष यह छात्रवृत्ति लेकर केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी का अध्ययन करने के लिए जाते हैं।


इस दौरान भारत सरकार और राजदूतावास के सहयोग से हिंदी की पुस्तकें ऐल्ते विश्विद्यालय के हिंदी विभाग को मिलने लगीं। इससे हिंदी अध्ययन और अध्यापन का कार्य थोड़ा सा आसान हो गया। 1992 में एक महत्वपूर्ण घटना घटी। इस वर्ष भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से ऐल्ते विश्वविद्यालय के भारोपीय भाषाविज्ञान विभाग में हिंदी के एक अतिथि प्रोफेसर के पद का सृजन किया गया। हिंदी के एक जाने माने साहित्यकार डॉ. असगर वजाहत ने हिंदी के साथ-साथ उर्दू पढ़ाने का कार्य प्रारंभ किया और मारिया नेज्यैशी के साथ मिलकर हिंदी अध्यापन की पाठ्यपुस्तक का निर्माण किया। इस परंपरा को डा. लक्ष्मण सिंह बिष्ट “बटरोही”, डा. रविप्रकाश गुप्ता, डॉ. उमाशंकर उपाध्याय और आजकल डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा आगे बढ़ा रहे हैं। डॉ. बटरोही ने आधुनिक काव्य संकलन, डॉ. रविप्रकाश गुप्ता ने बोलचाल की हिंदी और डॉ. उपाध्याय ने मध्यकालीन काव्य संकलन शीर्षक पाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया। डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा विभाग के लिए उच्च स्तरीय वार्तालाप पुस्तक का निर्माण कर रहे हैं। गत शैक्षिक सत्र (2007-08) में एक नए प्रयोग के तौर पर छात्रों को कंप्यूटर का हिंदी अध्ययन-अध्यापन में प्रयोग करना सिखाया गया । वर्तमान सत्र (2008-09) में उच्च स्तर के छात्रों को मीडिया की भाषा का अध्ययन कर उसकी समझ विकसित की गई। इस वर्ष के छात्रों ने मारिया नेज्यैशी के निर्देशन में भीष्म साहनी की अनेक कहानियों का हिंदी से हंगेरियन अनुवाद कार्य भी किया। वर्तमान सत्र में छात्रों ने हंगेरियन भाषा से हिंदी में अनुवाद करना भी प्रारंभ कर दिया है। अपने ग्रीष्मावकाश के दौरान भी कुछ छात्रों ने हिंदी के अन्य लेखकों की कुछ प्रसिद्ध कहानियों का अनुवाद किया। इस सत्र की विशेषता यह रही विभाग ने पहली बार छात्रों व हिंदी प्रेमियों में हिंदी में साहित्य सृजन की रुचि का विकास करने के लिए एक त्रैमासिक भित्ति पत्रिका “प्रयास” प्रारंभ कर दी है। इसका लोकार्पण हंगरी में भारत के राजदूत महामहिम रंजीत रे ने विश्व हिंदी दिवस के अवसर (हंगरी में मार्च में आयोजित) पर किया।


विभाग के प्रतिभाशाली छात्रों में मारिया नेज्यैशी, इम्रे बंघा, फैरेस रुज़ा, दानियल बलोग, युदित तोरजोक, कोरत्वैयेशी तिबोर, जुजाना रेनर, दैजो चाबा, किश चाबा और शांतो पेतर आदि के नाम उल्लेखनीय है, ये सभी आजकल यूरोप के विभिन्न देशों व हंगरी के विभिन्न महत्पूर्ण संस्थानों में उच्च पदों पर पदस्थ या शोधरत हैं। मारिया नेज्यैशी आजकल ऐल्ते विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्षा हैं। इम्रे बंघा ऑक्सफोर्ड विश्विद्यालय में हिंदी भाषा और साहित्य का अध्यापन करते हैं। इसके अलावा चीकसैरैदा (रोमानिया) के सपिऐंत्सिया विश्वविद्यालय में भी अध्यापन कार्य करते हैं। ऐल्ते विश्वविद्यालय मे इम्रे बंघा के निर्देशन में एक महत्वपूर्ण शोध कार्य जारी है। इसमें तुलसीदास कृत कवितावली के पाठालोचन का कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2007 से ऐल्ते विश्विद्यालय में आईसीसीआर की और से टैगोर फैलोशिप आरंभ की गई है। इस विभाग के ही एक अन्य छात्र हिदाश गैर्गैय इस फैलोशिप के अंतर्गत शोध कार्य कर रहे हैं।


ऐल्ते विश्वविद्यालय के स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अलावा बुदापैश्त में भारतीय दूतावास के सहयोग से तीन स्तरों पर हिंदी अध्यापन की नियमित कक्षाएँ चलती हैं। ये कक्षाएँ भी ऐल्ते विश्वविद्यालय के प्रांगण में आयोजित की जाती हैं। इन कक्षाओं की शोभा हिंदी प्रेमी ही नहीं बल्कि भारत-प्रेमी भी बढ़ाते हैं। इन तीन कक्षाओं का स्तर क्रमशः प्रारंभिक, माध्यमिक और उच्च है।


पिछले 16 वर्षों से चल रही इन कक्षाओं में लगभग 1500 लोग हिंदी के साथ-साथ भारत और भारतीय संस्कृति से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा दूतावास के सहयोग से भारतीय समाज और संस्कृति से संबंधित विषयों पर व्याख्यानमाला को भी आयोजन किया जाता है। इस व्याख्यानमाला मे भारतीय व हंगेरियन भारतविद् भारतीय संस्कृति से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चापरक व्याख्यान देते हैं। व्याख्यान के बाद श्रोता और छात्र अपनी जिज्ञासाओं को प्रश्न पूछकर शांत कर सकते हैं। इस व्याख्यानमाला में भारतीय दर्शन, इतिहास, समाज, कला, खान-पान, पहनावा आदि जैसे विषयों पर बल दिया जाता है। इन कक्षाओं में पढ़नेवाले छात्र प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (या हिंदी दिवस) के अवसर पर हिंदी कविताओं को पाठ करते हैं व लघु नाटकों का मंचन करते हैं।


इन कक्षाओं के छात्र 1995 व 2000 में भारत की शैक्षणिक यात्राएँ भी कर चुके हैं।

हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की इस परंपरा के अलावा कुछ और भी तथ्य ऐसे हैं जिनका उल्लेख इस प्रपत्र में करना आवश्यक है-

-हंगरी में अनेक लोग योग सीखकर इसे अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना चुके हैं। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। हंगरी में अनेक योग सिखाने वाली संस्थाएँ हैं।

-हंगरी में कुछ हंगेरियन भारतीय शास्त्रीय व लोक नृत्य करने वाली नृत्यांगनाएँ हैं जिनके अपने विद्यालय भी हैं, जिनमें हंगेरियन लोग भारतीय शास्त्रीय नृत्य सीखते हैं।

-हंगेरियन लोगों में भारतीय व्यंजन लोकप्रिय हैं। भारतीय रेस्तराओं में हंगेरियन लोगों की भरमार रहती है।

-बुदापेश्त में लगभग प्रतिमाह एक बॉलीवुड पार्टी होती है, जिसमें अनेक हंगेरियन युवक-युवतियाँ (भारतीय भी) हिंदी के लोकप्रिय हिंदी पंजाबी फिल्मी गानों पर देर रात तक थिरकते रहते हैं।


-इसी तरह बुडापेस्ट में दूतावास की कक्षाओं से जुड़ा एक हिंदी फिल्म क्लब भी है जो प्रति माह एक हिंदी फिल्म का प्रदर्शन करता है। इसमें दर्शकों की संख्या पर्याप्त होती है।

-हंगेरियन दूरदर्शन पर हिंदी फिल्में डब करके दिखाने की एक लंबी परंपरा है।

-हंगरी में रहने वाले भारतीयों व हंगेरियन लोगों में एक याहू ग्रुप (indianinhungary.com) भी लोकप्रिय है। इसके सदस्य भारतीय भी हैं और हंगेरियन भी। हंगेरियन भाषा की भारत विषयक एक साइट हंगरी में बहुत ही लोकप्रिय है। इसका वेब पता है- ये इंडिया (http://jeindia.hu)

-कभी-कभी हंगेरियन एफ.एम. रेडियो पर भी हिंदी गाने सुनने को मिल जाते हैं पर यह यदा-कदा ही होता है। एक दिन अपने परिवार के साथ बुदापैश्त की सड़कों पर घूमते हुए एक दृश्य देखा जिसकी चर्चा हिंदी फिल्मों व गानों के संदर्भ में जरूरी है। हमने देखा कि एक हंगेरियन युवती अपनी कनवर्टिबल मर्सीडीज़ में गैंगस्टर फिल्म का गाना ‘या अली मदद या अली’ सुनती जा रही है। हम लोग आश्चर्य से उसे देखते ही रह गए और उसकी कार फुर्र से निकल गई।


-इस्कोन, साईंबाबा और प्रजापिता ब्रह्मकुमारी जैसे संप्रदायों व बुद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की हंगरी में संख्या पर्याप्त है। इनके शिष्य हिंदी व भारतीय संस्कृति को अपनाने की ओर अग्रसर हैं। हंगरी में एक बुद्धधर्म की आस्थाओं पर आधारित एक महाविद्यालय भी है जिसमें संस्कृत व पालि आदि का अध्यापन किया जाता है।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. विदेशों में भी हिंदी और संस्कृत की पढाई हो रही है! बुडापेस्ट से श्री प्रमोद कुमार जी की यह जानकारी लाभप्रद रही। आभार।

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  2. इतना सुन्दर लेख पढने को मिला, मानो आत्मा तृप्त हो गयी. मैं स्पेन के एक छोटे शहर पाम्प्लोनामें रहता हूँ. यहाँ मुझे हिंदुस्तान को चाहने वाले बहुत मिले, मगर हिंदी प्रेमी एक ही मिला. बस वह मुझे से हिंदी पढता है | कारण हिंदी फिल्में.. और अनुपम देश हमारा.

    आपके जितना सारगर्भित लेख तो नहीं लिख सकता हूँ, मगर हमने ही हिंदी को मार डाला है.. बहुत दुःख होता है.

    हाँ, वायादोलिद नामक बड़े शहर में कासाइंडिया नामक संस्थान है, जहाँ भारतीय भाषाएं और नृत्य का अध्ययन अध्यापन होता है, मगर यह संस्थान ५ साल ही पुराना है. इसके बारे में मुझे ज्यादा नहीं मालूम.

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  3. सव्यसाची जी,
    टिप्पणी के लिए आभार
    आपको अपने याहूग्रुप हिन्दीभारत को ज्वाईन करने का आमंत्रण अलग से भेज रही हूँ. आप समूह से जुडेंगे तो अच्छा लगेगा.

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  4. बहिन वाचक्नवी जी!
    आपने अच्छी जानकारी दी है।
    जो साहित्यकार विदेशों में हिन्दी के कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।
    वे बधायी के पात्र हैं।
    आपके लेखों का इन्तजार रहता है।
    शुभकामनाओं सहित।

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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