पद्मश्री : नई दुनिया : अभय छजलानी : भाषायी(?) पत्रकारिता में हिंदी की भूमिका ?



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अभय
छजलानी की औ
कात क्या है?
- आलोक तोमर



बाबू लाभ चंद्र छजलानी गुजराती मूल के कारोबारी थे जो इंदौर आ कर बस गए थे। आजादी की लड़ाई में उन्होंने हिस्सा लिया और देश जब आजाद होने वाला ही था तो 1947 में अपने साथी बसंती लाल सेठिया के साथ मिल कर उन्होंने पहले साप्ताहिक और फिर दैनिक अखबार की शुरूआत की। नाम था नई दुनिया क्योंकि बाबूजी के अनुसार आजादी के बाद भारत एक नई दुनिया में प्रवेश कर गया था।


लाभ चंद्र छजलानी नई दुनिया निकालते थे लेकिन पुरानी दुनिया के इंसान थे। उन्हें अपना अखबार दुकानों तक साइकिल और बाद में स्कूटर के पीछे रख कर ले जाने में लाज नहीं आती थी। नई शैली थी और आजादी का सात्विक उन्माद था इसलिए नई दुनिया चल निकला। धीरे धीरे और सहयोगी जुड़े और नई दुनिया मालवा इलाके का एक सबसे बड़ा अखबार तो बन ही गया, पूरे देश के मानक हिंदी समाचार पत्र के तौर पर इसकी गिनती हुई।


सन सैतालीस में अखबार शुरू हुआ था और 1960 आते आते इसकी काफी प्रतिष्ठा हो गई थी। सर्वोदय की ओर जा चुके प्रभाष जोशी स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर विनोबा भावे के काफिले में शामिल हो गए थे और रोज संत विनोबा की भूदान यात्रा का विवरण लिखते थे। अंग्रेजी में एमए कर रहे राजेंद्र माथुर नई दुनिया में हिंदी साहित्य का पन्ना देखते थे। शरद जोशी उस समय भी व्यंग लिखते थे और नई दुनिया के पाठकों के लिए आकर्षण का एक पात्र थे।


राहुल बारपुते के बारे में जितना सुना है, वे संत प्रवृत्ति के ज्ञानी थे और कुमार गंधर्व से ले कर उस्ताद आमीर खां और उस समय के क्रिकेट स्टार सीके नायडू के साथ उनका उठना बैठना था। नई दुनिया को प्रारंभिक भाषायी व्याकरण का संस्कार राहुल जी ने ही दिया।


अब नई दुनिया के पूरे देश से दर्जनों संस्करण हैं, रंगीन पन्नों पर छपता है और फिलहाल पत्रकारों को मोटी पगार दे रहा है। इसके संपादक आलोक मेहता ने पत्रकारिता का जीवन नई दुनिया से ही शुरू किया था और इसी साल उन्हें उनके व्यक्तिगत गुणों के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। प्रसंगवश पद्मश्री के प्रमाण पत्र पर जो भाषा लिखी होती है उस पर साफ शब्दों में लिखा होता है कि मैं भारत का राष्ट्रपति आपको आपके व्यक्तिगत गुणों के लिए पद्मश्री से अलंकृत करता हूं। आलोक जी के व्यक्तिगत गुण और प्रतिभा से सभी परिचित हैं लेकिन इस साल की पद्मश्री की सूची में किसी एक अभय छजलानी का भी नाम है जिनके व्यक्तिगत गुणों को भी भारत की महामहिम राष्ट्रपति ने अलंकृत करने लायक समझा है।


अभय छजलानी के व्यक्तिगत गुण क्या है यह या तो प्रतिभा पाटिल जानती हाेंगी या खुद छजलानी। लेकिन इतना जरूर है कि इस गुजराती लाला को पद्मश्री से विभूषित किया गया तो पूरे देश ने जय हो का नारा नहीं लगाया और इससे शायद लाला जी बहुत आहत हुए। उन्होंने पूरे देश के पत्रकारों को जिनमें बहुत सारे अल्लू पल्लू भी थे, हवाई जहाज का टिकट दे कर इंदौर बुलाया, बड़े होटलों में ठहराया, दावतें दी और बहाना बना रहे इसलिए इंदौर प्रेस क्लब को चंदा दे कर एक सेमिनार भी करवा डाला। लाला जी से भाषायी या पत्रकारिता के सरोकारों की उम्मीद करना व्यर्थ है मगर अपने जो साथी इस सेमिनार में उत्साहपूर्वक शामिल हुए थे और जिन्होंने नई दुनिया के बहाने अभय छजलानी की शान के झंडे गाढ़ दिए थे, उन्हें भी इस सेमिनार के विषय पर कोई ऐतराज नहीं हुआ। नई दुनिया जो अपने आपको अब भी देश का मानक हिंदी अखबार कहता है, ने विषय चुना था वह यह था भाषायी पत्रकारिता में हिंदी की भूमिका।




जिसने भी यह विषय चुना था उसको सूली पर चढ़ा देना चाहिए। जिन विद्वानों ने इस विषय पर अपनेउच्च विचार रखे थे उन्हें भी अपने आप से पूछना चाहिए कि अगर हिंदी सिर्फ एक भाषायी समाचारलिपि है तो फिर मैथिली और भोजपुरी क्या है? कायदे से तो इनका अपना व्याकरण है और इन्हें भाषाहोना चाहिए मगर वह बरस बाद में चलती रह सकती है। अपने को तो यह हजम नहीं हो रहा कि एक वहअखबार जो अपने को मानक सिद्व करने पर तुला हुआ है, हिंदी को राष्ट्रीय की बजाय भाषायी सिद्वकरने की कोशिश क्यों कर रहा है? राजभाषा और राष्ट्रभाषा के सरकारी विज्ञापन जब जारी होते हैं तोलेने में इन्हें शर्म नहीं आती। इनका एक मरियल सा वेब पोर्टल वेब दुनिया के नाम से चल रहा है औरहिंदी, अंग्रेजी के संकर नाम वाले इस पोर्टल के लिए विदेशों से पूंजी जुगाड़ते वक्त हिंदी का वर्णन देश कीसबसे बड़ी भाषा के तौर पर कारोबारी भीख मांगने वाले दस्तावेजों में किया जाता है। जब रोकड़ाचाहिए तो हिंदी महान वरना वह तो एक, जैसा इस प्रायोजित सेमिनार में कहा गया, हिंदी एकवर्नाक्युलर यानी देहाती और आदिवासी किस्म की भाषा है। भाषा भी नहीं वर्नाक्युलर का अनुवाद तोबोली होता है। जैसे अवधी है, बुंदेलखंडी हैं वैसे ही अभय छजलानी की राय में हिंदी भी हैं। इसी हिंदी कीकमाई से वे खुद को श्रध्दांजलि देने के लिए पूरे देश से पत्रकारों को जमा करते हैं, उनकी सेवा सत्कारकरते हैं और बुढ़ापे में पद्मश्री पा कर धन्य हो जाते हैं।


अभय छजलानी का दुस्साहस तो देखिए। वे कहते हैं कि नई दुनिया ने पत्रकारिता की कई पीढ़ियों कोबनाया। वे कहते हैं कि राजेंद्र माथुर को हमने बनाया। शरद जोशी को हमने बनाया। प्रभाष जोशी कोन वे याद करते हैं और न बुलाते हैं। इसलिए कि जब नई दुनिया कारोबार हो गया और अभय छजलानीडंडी मारने लगे तो इसका विरोध करने वालों में प्रभाष जोशी भी थे। नई दुनिया की यह औकात कभीनहीं थी कि वह राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी को बनाए। उल्टे इन लोगों ने नई दुनिया को आकारऔर सम्मान दिया है। राजेंद्र माथुर की विशाल दृष्टि और प्रभाष जोशी की भाषा ने नई दुनिया को रचाहै और लाला अभय छजलानी किराए पर बुलाई गई भीड़ की मौजूदगी में अगर यह बात मंजूर नहीं कररहे तो उनमें और एक परचूनिए में फर्क क्या रहा जाता है?


राजेंद्र माथुर ने तो लगभग जिंदगी भर इंदौर के गुजराती कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाई और अखबारों मेंहिंदी लिखी। रज्जू बाबू के बहुत सारे लिखे में ऐसे संदर्भ और इतनी प्रवाहमान कविता वाली भाषा होतीथी कि अभय छजलानी की समझ में भी नहीं आती होगी। लेकिन न राजेंद्र माथुर को पद्मश्री मिली औरन प्रभाष जोशी को। लाला अभय छजलानी को भी पद्मश्री इसलिए मिल गई क्योंकि उनके संपादकआलोक मेहता संपर्कशील प्राणी हैं और उनकी सरकार में इतनी चलती है कि वे अभय छजलानी तोक्या किसी मनोहर लिम्बूदिया को भी पद्मश्री दिलवा दें। पद्मश्री कैसे मिलती है ये सब जानते हैं। हमारेदोस्त सुधीर तैलंग को बयालीस साल की उम्र में पद्मश्री मिल गई थी और उन्होंने आज तक अपने कोदावत नहीं दी। उनके पास हराम का पैसा नहीं हैं।

Saturday, March 7, 2009

इन्दौर में हुआ दिग्गज पत्रकारों का जमावडा,प्रेस क्लबने किया सेमिनार का आयोजन, अभय छजलानी काहोगा सम्मान

इंदौर प्रेस क्लब की तरफ से आज इंदौर में एक सेमिनार और वर्कशॉप का आयोजन किया गया है इस आयोजन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली और मुंबई से कई दिग्गज पत्रकार इंदौर पहुंचे हैं इन पत्रकारों में आईबीएन -7 के संपादक आशुतोष , शीघ्र प्रकाश्य अखबार चौथी दुनिया के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय , स्टार न्यूज के नेशनल अफेयर एडिटर दीपक चौरसिया , न्यूज 24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम , दैनिक भास्कर के संपादक श्रवण गर्ग , वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव , नई दुनिया के प्रधान संपादक आलोक मेहताअनिल सिंह समेत कई पत्रकार इंदौर में हो रहे इस भव्य समारोह और सेमिनार में हिस्सा लेने पहुंच चुके हैं
प्रेस क्लब द्वारा ये सेमिनार इनडोर हॉल अभय प्रसाल में किया गया है सुबह से शाम तक चलने वाले समारोह में हजारो लोग हिस्सा लेंगे और शाम को नई दुनिया के संपादकीय बोर्ड के अध्यक्ष अभय छजलानी का सम्मान किया जाएगा । अभय छजलानी को हाल में पद्म पुरस्कार से नवाजा गया है। जितने बड़े पैमाने पर ये आयोजन किया गया है , उतना बड़ा आयोजन पहले कभी नहीं हुआ आमतौर पर सेमिनारों में दो - चार सौ लोग होते हैं लेकिन इस समारोह में पांच से दस हजार लोगों के हिस्सा लेने की बात कही जा रही है
नोट - इस समारोह के बारे में विस्तार से हम आपको बताएंगे । आपमें से कोई अगरइस समारोह का चश्मदीद है तो आप हमें पूरा विवरण लिखकर भेज सकते हैं । हमआपके नाम के साथ पोस्ट करेंगे



अगर आप ये समझ रहे हैं कि अभय छजलानी से अपना कोई व्यक्तिगत बैर है तो आपकी जानकारी केलिए इस लाला की आज तक अपन ने छवि भी नहीं देखी। इंदौर सैकड़ों बार जाना हुआ है लेकिन नईदुनिया परिसर में घुसने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी। चलते चलते अभय छजलानी और उनके चमचोंको दो बातें कहनी हैं। एक तो हिंदी को वर्नाक्युलर यानी क्षेत्रीय भाषा मानने की भूल मत करना औरदूसरे मिल कर कामना करना कि अभय छजलानी को भारत रत्न मिल जाए। जो व्यक्ति पद्मश्री मिलनेपर इतना बड़ा तामझाम खड़ा कर सकता है वह भारत रत्न मिलने पर तो पूरे देश में इमरती बंटवाएगा।रही बात राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी को रचने की तो अभय छजलानी और नई दुनिया की येऔकात कभी नहीं रही कि वे हिंदी पत्रकारिता की किवदंतियों को रच सकें। वे ज्यादा से ज्यादा पंकजशर्मा और आलोक मेहता को रच सकते हैं।





9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पठनीय सामग्री.

    हिंदी को स्थानीय बोली-भाषा भर बनाकर धर देने की हर साजिश का आरम्भ से ही विरोध होना चाहिए.

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  2. भाई तोमर जी आपने बडा सटीक विषलेषण किया. १९७२ से इंदोर मे रहना हुआ वहीं से नई दुनियां के साथ सबेरा हुआ. इसका उत्त्थान और समय के साथ कहें तो पतन भी देखा. भास्कर के सामने टिक नही पाया. आपके द्वारा उल्लेखित नाम रोजमर्रा के परिचित नाम है.

    अभय जी की औकात आपने सही बतादी. लाला के पास जोगाड मैंट नामक हथियार है जो मनोहर लिम्बोदिया तो क्या ताऊ को भी पदमश्री/विभुषण दिलवा सकता है.:) बहुत सही लिखा.

    रामराम.

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  3. आलोकजी, जहां तक मेरी जानकारी है, 'नईदुनिया' का प्रकाशन कृष्‍णकान्‍तजी व्‍यास ने किया प्रारम्‍भ किया था किन्‍तु वे उसे चला नहीं पाए और बाद में लाभचन्‍दजी और सेठिया ने इसे खरीदा।

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  4. पुरस्कारों का धंधा तो प्रसिद्ध है ही जुगाडियों के लिए। पद्मश्री ही क्यों, देश, विदेश के कितने पुरस्कार और सम्मान हैं जिनके मिलने की घोषणा पर हम चकित रह जाते हैं। इस धंधे में आलोक तोमर जैसे मुंहफट और बेबाक लोग कैसे फिट बैठेंगे{वैसे उन जैसे लोग तो इसकी परवाह कब करते हैं)!!!

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  5. कविता जी ,सही लेख पढवाया आपने,और छजलानी जी जैसे भी हों ,पर भोपाल में हिंदी के नाम पर एक ही ख़बरों का माध्यम है ,नै दुनिया.बाकि अखबारों मैं क्या आता है खुदा ही मालिक है .

    आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया तो एक चीज़ नोटिस की वोह ये की जो कंटेंट चोरी न हो जाये इसलिए ताला लगाया है आपने वोह बेकार है क्यों की कोई भी email this पर क्लिक कर पूरा कंटेंट ले सकता है .

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  6. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. Sender's name : sachin sharma
    Sender's Email : k.sachin.sharma@gmail.com
    Referrer : http://hindibharat.blogspot.com/2009/03/blog-post_14.html

    Respected kavita ji...

    Of your alok tomer's article on abhay chajlani..there is a comment from my behalf and with my account...please erase that bcz i dont wrote that...somebody stole my password and using in several sites...i have to change my password..but before this, kindlu erase that comment named fron SACHIN.

    Thanx

    Sachin Sharma

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  9. It is really interesting to note that how influential people manage to get "Padma Puraskar" which are announced by the Govt. In my eyes, the recommending agency for padmasri is more responsible in this case than Chhajnani. A lady singing poems of Atal Bihari Vajpai or a surgeon doing treatment of Vajpai's knee suddenly get Padmasri due to their expertise in "Jugar". "This happens only in India" Mera Bharat Mahaan!!!

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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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