आमंत्रण : शरद व्‍याख्‍यानमाला



आमंत्रण
शरद व्‍याख्‍यानमाला



महोदय /महोदया

साहित्येतर विषयों पर हिन्‍दी में संवाद हेतु आयोजित शरद व्‍याख्‍यानमाला में आप सादर
आमंत्रित हैं।
आमंत्रण-पत्र संलग्न है -











- जवाहर कर्नावट
भोपाल।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अशोक की कहानी


    ``आखिरकार चौथी कक्षा शुरू हुई। अशोक के गाँव के कई बच्चे स्कूल आना छोड़ चुके थे। उस पर भी दबाव पड़ा, पर वह अडा रहा। वह चाहता था कि जल्दी-जल्दी स्कूल खत्म करके पैसे कमाए। बहनजी कई बार कक्षा में बता चुकी थीं कि जो बच्चे स्कूल में आगे बढ़ते रहेंगे वे खूब बड़े आदमी बनेंगे और पैसे कमाएँगे।

    ……….पर चौथी कक्षा की शुरूआत से ही विघ्न पड़ने लगे। `भूगोल´ नाम का एक नया विषय शुरू हुआ। अशोक को भूगोल की किताब में कुछ पल्ले नहीं पड़ा। पहले पेज पर लिखा था, हमारा जिला उबड़-खाबड़ और पथरीला है। यह कर्क रेखा से कुछ ऊपर स्थित है। .... इसकी भू-रचना पठारी प्रकार की है। कक्षा के कई बच्चे यह फर्राटे से पढ़ना सीख चुके थे। वे खड़े होकर पढ़ते, फिर कॉपी में उतारते। अशोक धीरे-धीरे पढ़ने की कोशिश करता तो बहनजी अधीर हो उठतीं। यही हालत एक और नए विषय `विज्ञान´ की घंटी में हुई।

    महीने भर में बहनजी अशोक से इतना परेशान हो गई कि उन्होंने उससे कुछ भी कहना छोड़ दिया। उनकी अधीरता और नाराजगी का धागा, जिससे अशोक अभी तक बंधा था, उदासीनता में बदल गया। अशोक को लगा कि बहनजी को अब उससे कोई मतलब नहीं है। दिवाली की छुट्टी के बाद वह वापस स्कूल नहीं गया।

    कुछ वर्ष बाद जिले में एक सर्वेक्षण हुआ। प्रांतीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् की ओर से दो सर्वेक्षक लंबे-लंबे फॉर्म लेकर आए। सर्वेक्षण का उद्देश्य यह पता लगाना था कि प्राथमिक शिक्षा में `ड्राप-आउट´ की दर इतनी ऊँची क्यों है? सर्वेक्षकों ने कईं गाँव चुने और वहाँ जाकर माता-पिताओं के इंटरव्यु लिए। इस तरह स्कूल छोड़ने वाले सैकड़ों बच्चों के आंकड़ें उनके शैक्षिक अनुसंधान की पकड़ में आ गए।

    शिक्षा का कोई सर्वेक्षण हो रहा है, यह मुझे मालूम था। जब मुझे सर्वेक्षण का ठीक-ठीक उद्देश्य मालूम हुआ तो मैं आलस त्यागकर, अपना कौतूहल लिए सर्वेक्षकों से मिलने जा पहुँचा। उनका काम पूरा हो चुका था और वे जाने की जल्दी में थे। मैंने आग्रह किया कि वे मुझे अशोक की `डेटा-शीट´ दिखा दें। मैं यह जानने को बेहद उत्सुक था कि देश के आंकड़ो में अशोक का `केस´ किस तरह प्रस्तुत होगा।


    सैकड़ों बच्चों के पिताओं की `डेटा-शीटों´ में से एक को ढूंढ निकालने में सर्वेक्षक-बंधु आनाकानी कर रहे थे। मैंने बातचीत के दौरान अपनी हैसियत और डिग्री का जिक्र किया तो वे तैयार हो गए। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते जब अशोक के पिता की `डेटा-शीट´ मिली तो उसे पढ़कर यह साफ निष्कर्ष निकलता था कि अशोक ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में, अपने पिता का हाथ बँटाने के लिए पढ़ना छोड़ा। सर्वेक्षण के समूचे विश्लेषण में अशोक की गणना `परिवार की आर्थिक स्थिति´ से प्रभावित `ड्राप-आउट´ बच्चों में की गई। अशोक एक ग्रामीण बाल श्रमिक घोषित हुआ।

    मेरे आँखों में आँसू देखकर सर्वेक्षक-बंधु कुछ घबरा गए। वे बोले, क्या यह बच्चा आपके रिश्ते में आता है ? मैंने कहा, नहीं! पर मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे लगता है आप उसका केस ठीक से समझ नहीं पाए हैं। सर्वेक्षक ने कहा, अब एक-एक केस को कहाँ तक समझा जाए? फिर कुछ बात बदलकर वह बोला, आप तो दिल्ली में रहते हैं, नई शिक्षा नीति कब से लागू होने वाली है?

    ________________________________________
    पिछली पोस्ट (कहानी के प्रथम भाग )में आयी टिप्पणिओं और प्रति-पोस्ट ने इस कहानी में उभरे निम्न बिंदुओं पर भी चिन्तन को और अधिक आवश्यक कर दिया है ………सच कहूँ तो कई अंतर्विरोध भी साफ़ दिखाई पड़ते हैं | प्रमुख बिंदु इस प्रकार चिन्हित किये जा सकते हैं |
    1. शिक्षिका और अशोक के दृष्टिकोण में तीखा विरोध होता जा रहा था। आपके विचार से इसके क्या कारण थे ?
    2. शिक्षिका का व्यवहार क्यों बेरूखी भरा होने लगा? इसके लिये कौन से कारक जिम्मेदार थे। आपको क्या लगता है यह कितना न्यायसंगत था?
    3. क्या वास्तव में शिक्षण की इस प्रणाली में वास्तव में इतनी ही खामियां थीं ?
    4. क्या अशोक की मानसिक अवस्थिति ही इतनी अलग थी कि वह इस तौर तरीके में पूर्णतयः अपने को नहीं ढाल पा रहा था ?


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आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मूल्यवान् है। ऐसी सार्थक प्रतिक्रियाएँ लक्ष्य की पूर्णता में तो सहभागी होंगी ही,लेखकों को बल भी प्रदान करेंगी।। आभार!

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